सत्ता के
लिए युद्ध आज भी होते हैं, पर तलवारों से नहीं, स्वयं राजा भी अब युद्ध में प्रत्यक्षतः कहाँ दिखाई देते हैं!
सत्तालोभियों के क्रीतदास पत्थरों, लाठियों, लोहे की छड़ों, तमंचों और पेट्रोल बम से घात लगाकर युद्ध करते हैं । निहत्थी
निरीह प्रजा मारी जाती है, घायल होती है और उनकी
सम्पत्तियाँ जलाकर भस्म कर दी जाती हैं । इन युद्धों को भारत जैसे लोकतांत्रिक देश
में धरना, विरोध-प्रदर्शन और आंदोलन कहा जाता है । युद्ध का नाम और तरीका बदल गया है । इस
युद्ध में लड़ने वाला दूसरा पक्ष नहीं होता, उसके स्थान पर निहत्थे आमनागरिक होते हैं । युद्ध एकपक्षीय होता
है जिसे रोकने के लिए पुलिस और अर्धसैनिक बल डिफ़ेंसिव युद्ध करते हैं ।
दिल्ली कूच
पर निकले ट्रैक्टर-सवार किसान वास्तव में खेतों में पसीना बहाने वाले किसान हैं ही
नहीं, उनके चमचमाते हुए नये और मूल्यवान ट्रैक्टर्स उनके किसान होने
की घोषणा करते हैं पर साधारण किसान को इतनी फ़ुरसत ही कब मिलती है कि महीनों तक
अपने खेतों से दूर रहकर प्रदर्शन करें और वातानुकूलित मूल्यवान टेंट्स में कबाब-बिरियानी
के व्यय का बोझ उठा सकें! फिर कौन हैं ये लोग?
कनाडा से
गुरमीत सिंह पन्नू ने विरोध-प्रदर्शनकारियों से हिंसक होने, अराजकता फैलाने और प्रधानमंत्री की हत्या करने का आह्वान किया
है । किसानों का यह कैसा विरोध-प्रदर्शन है?
आंदोलन के
नाम पर पञ्जाब में रेल यातायात को बाधित कर दिया गया है, पिछली बार महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे ने सारी व्यवस्थाओं को
अस्तव्यस्त करते हुये सिंधुसीमा पर क्या कुछ् नहीं किया! क्या विरोध और प्रदर्शन
के नाम पर किसी को यह अधिकार है कि वह सामान्य जनजीवन की गतिविधियों को बाधित कर
दे!
किसान-आंदोलन के नाम पर पिछली बार टिकैत ने जाटों और सिखों को लेकर जिस तरह का आंदोलन किया उसमें करोड़ों रुपये ख़र्च किये गये थे । ग़रीब किसान के पास इतने रुपये कहाँ से आते हैं ?
*मोदी की कुंडली में कालसर्प योग*
क्या आने
वाले चुनाव में नरेंद्र मोदी की हार कांग्रेस की प्रियंका नेहरू गांढी बढेरा के
हाथों होना तय है? कांग्रेस के पूर्व
मुख्यमंत्री हरीश रावत के अनुसार नरेंद्र मोदी की जन्मकुंडली में कालसर्प दोष है
इसलिए उनकी पराजय प्रियंका के हाथॉं होगी । कुछ लोग मानते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं
होने वाला, फिर कालसर्पयोग का और क्या
परिणाम हो सकता है!
यूँ, मोदी जैसे लोगों की कुण्डली में कालसर्प योग होना ही चाहिए । एक ओर कतर में मोदी को वहाँ के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया, दूसरी ओर कनाडा से पन्नू ने मोदी को मार डालने का संकल्प किया, यह है कालसर्पदोष । जिस मोदी को पिछली बार जाट और सिख महिलाओं ने “हाय-हाय मोदी मर जा तू” गा-गाकर छातियाँ पीटी थीं उसी मोदी का नाम इस बार नोबेल पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया गया है, यह है कालसर्पदोष । मोदी ने अबू धाबी में हिन्दूमंदिर का उद्घाटन किया फिर कतर जाकर नौसैनिकों को मुक्त करवा लिया इधर रौल विंची ने मोदी को अमर्यादित शब्दों के साथ जमकर कोसा, यह है कालसर्पदोष । कालसर्पदोष में मुकाबला फूल और काँटों का नहीं, फूल और भालों का है, वह भी जहर बुझे । ऐसा ही कालसर्पदोष दो-चार और नेताओं की कुण्डली में होता तो भारत का भविष्य उज्ज्वल हो जाता ।
*मज़हब के ख़िलाफ़*
हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और पारसी सहयोग से
संयुक्त-अरब-अमीरात के अबूधाबी में हिन्दू मंदिर का निर्माण हुआ तो भारत सहित
पाकिस्तान के कई मुल्लों-मौलवियों ने विरोध किया, कहा- “यह हमारे मज़हब के ख़िलाफ़ है, किसी मुस्लिम देश में हिन्दूमंदिर नहीं बनना चाहिए” ।
अयोध्या
में श्रीराम मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ तो भारत सहित पाकिस्तान के कई नेताओं ने
इसका विरोध तो किया ही, यह भी कह दिया कि –“इंशा
अल्लाह एक दिन जब हमारी हुकूमत होगी तब हम इस मंदिर को गिरा देंगे और बाबरी मस्ज़िद
को फिर से बना देंगे”।
भारत के
बहुत से लोग समान नागरिक अधिकार का विरोध कर रहे हैं, वे भारत में अलग-अलग समुदायों के लिए अलग-अलग नियम और अधिकार
चाहते हैं । ऐसी विचारधारा स्वतंत्र कबीलों की तो हो सकती है पर किसी सम्प्रभु देश
की नहीं । यह अराजकता, निरंकुश स्वेच्छाचारिता और
अ-राष्ट्रवाद का स्पष्ट संकेत है । क्या मज़हबी उसूलों के नाम पर एक बार फिर
भारतविभाजन की तैयारी हो रही है? कब तक होता रहेगा भारत विभाजन, और क्यों?
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