रूठे राजनेताओं ने राम जी को धमकी दे दी है कि यदि उन्हें अपना अस्तित्व बचाना है और माननीय नेताओं से अपने दर्शन करवाने हैं तो उनके राजमहल आकर या सपने में आकर निमंत्रण दें अन्यथा उनके दर्शन नहीं किये जायेंगे ।
..और बनवाओ अपना मंदिर! बैठे-ठाले काम बढ़ गया न! अब जाओ घर-घर माननीयों को न्योता देने ।
*अविश्वसनीय होते विधायक*
राजनीतिक दलों के मालिक अपने-अपने विधायकों को समय-समय पर
दृष्टिबंध करते रहते हैं, कभी अपने महल में तो कभी अन्य प्रांत के किसी पंचसितारा होटल
में । दृष्टिबंधन में होने वाले व्यय की चिंता किसी को नहीं होती, न मालिक को
और न उस जनता को जिनका पैसा इस तरह उड़ाया जाता है ।
ढोल पीट-पीट कर यह सत्य प्रकाशित किया जा रहा है कि माननीय
विधायकगण अपने मालिकों की दृष्टि में अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं ।
लोकतंत्र की रक्षा के ठेकेदारों के सामने “दृष्टिबंधन” जैसे अलोकतांत्रिक उपायों के अतिरिक्त अब कुछ बचा ही नहीं है । प्रजा बहुत भोली है जिसे अभी भी यह विश्वास है कि विधायकगण जनता के कार्यों के लिये बहुत विश्वसनीय हैं और इस बार उनका भला अवश्य करेंगे । प्रजा मतदान करती रहेगी ...उन्हीं के पक्ष में ...सदा की तरह ।
*आग है कि बुझती ही नहीं*
“अब एक साथ रहना सम्भव नहीं, हमें अपने लिए एक अलग देश चाहिए” –कहकर भारत विभाजन करने वाले
लोग आज भी भारत में क्यों हैं? अब वही लोग फिर कह रहे हैं कि उन्हें भारत की नीतियों-रीतियों
और न्यायालय के निर्णयों का पालन स्वीकार नहीं । यदि उन पर यह सब थोपा गया तो वे
इसे “बर्दाश्त नहीं करेंगे”। स्पष्ट है कि गजवा-ए-हिंद के लिये अब उन्हें पूरा
भारत चाहिये ।
शांत रहने वाले उतराखण्ड में आग यूँ ही नहीं लगी । भारत को मध्य
एशिया बना देने की चाहत रखने वाले लोग पूरे देश को जला देने के लिए उतावले हैं ।
हमें यह स्वीकार करना होगा कि हिन्दूराष्ट्र की सहिष्णु और समावेशी अवधारणा
विभाजनकारी लोगों के असैद्धांतिक विचारों और उद्देश्यों के विरुद्ध है । वे जिस
भी देश में जाते हैं वहाँ की मूल अवधारणाओं को समाप्त कर अपनी अवधारणायें थोप देने
के लिए हिंसा करते हैं । मौलिकता का विरोध, असहिष्णुता, हिंसा और लूटपाट ही उनका जीवन है, यही उनके जीवन का लक्ष्य है । उदारवादी माने जाने वाले यूरोप ने
समझ लिया है, भारत को भी
समझ लेना चाहिए । सनातन परम्परा तुम्हारा विरोध नहीं करती किंतु तुम हमारा विरोध
करो यह हमें स्वीकार नहीं ।
भारत की तरह अब यूरोप भी जलने लगा है, अफ़्रीका के
कुछ देश तो पहले से जल ही रहे थे । अब और क्या समझना शेष है? हम जानते
हैं कि कुछ समुदाय सदा से हिंसक रहे हैं, हर युग में रहे हैं और हर युग में उनके विरुद्ध रचनात्मक
शक्तियों को उठकर खड़े होना पड़ा है । असुर-दानव-राक्षस आदि विचारों का संहार किसी
को तो करना ही होगा, जो उठकर आगे बढ़ेगा वह मनुष्य से ऊपर उठकर देव हो जायेगा । हममें
से कितने लोग देव होने के लिये प्रस्तुत हैं ...और कितने लोग किसी देवशक्ति का साथ
देने के लिये संकल्पित हैं ? …इसका उत्तर हमें बताता है कि यह आग अभी बुझने वाली नहीं है ।
हमारे बीच अभी कई दशानन हैं जो अपने ब्राह्मणधर्म को छोड़कर राक्षसधर्म अपना चुके
हैं । ये राक्षस ही हमारे शांति और समृद्धता के सबसे बड़े बाधक हैं जो भारत में
लूटमार के लिए आयातित साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ खड़े दिखायी देते हैं ।
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