मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

भ्रामक विज्ञापन और बाबा रणछोड़ दास

(औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम १९५४ के संदर्भ में) 

भ्रामक विज्ञापन प्रकाशन के आरोप पर बाबा रामदेव ने पहले तो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर हुंकार भरी जिससे आयुर्वेद को वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति मानने वाले लोग उत्साहित हो गये पर बाबा अपनी हुंकार पर दृढ़ नहीं रह सके और एक-दो बार नहीं बल्कि चार बार क्षमा याचना करने के बाद भी न्यायालय से उन्हें मुक्ति नहीं मिल पा रही है। कुछ वर्ष पहले भी बाबा एक जन आंदोलन में पुलिस से बचने के लिए महिला का सलवार कुर्ता पहनकर भाग चुके हैं। बाबा के चिंतन और आचरण में दृढ़ता का अभाव लोगों को निराश करता है।

बाबा अपनी औषधियों को प्रामाणिक और शोध-आधारित बताते रहे हैं। उनके दावों और क्षमायाचना के बीच कोई तालमेल दिखायी नहीं देता। क्या यह औद्योगिक प्रतिस्पर्धा के दबाव का परिणाम है या सचमुच आयुर्वेदिक औषधियाँ प्रमाण और शोध-आधारित नहीं हुआ करतीं?

पहले हम उस अधिनियम के बारे में चर्चा करना चाहते हैं जिसके अंतर्गत बाबा रामदेव अपयश के भागी हो चुके हैं । आज से ६८ वर्ष पहले   जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष भारत के लिये “ड्रग्स एण्ड मैजिक रेमेडीज़ अधिनियम १९५४” को चिकित्सा व्यवसाय में लागू किया गया था जिसके अनुसार कथित औषधियों का विज्ञापन निषिद्ध घोषित कर दिया गया । लगभग सात दशक व्यतीत हो जाने के बाद भी इस अधिनियम में किसी परिवर्तन का न किया जाना इस बात का प्रमाण है कि इन सात दशकों में विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में कोई शोध या उन्नति नहीं हो सकी और चिकित्सा जगत को चिकित्सा के लिये कई अनुमानों, कल्पनाओं और विरोधाभासों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। यदि सर्वोच्च न्यायालय ऐसा मानता है तो यह बहुत गम्भीर और चिंतनीय स्थिति है क्योंकि इस बीच शोध कार्यों पर अंधाधुंध पैसा व्यय किया जाता रहा है और उनके परिणामों पर मीलॉर्ड ने विचार करना भी उचित नहीं समझा ।      

इस अधिनियम के अनुसार ५४ प्रकार के प्रतिबंधित रोग, विकार या स्थितियों के नाम इस प्रकार हैं

अपेंडिसाइटिस, धमनीकाठिन्य, अंधापन, रक्तविषाक्तता, ब्राइट्स रोग (नेफ़्राइटिस) या यूरेमिया, कैंसर, मोतियाबिंद, बहरापन, मधुमेह, मस्तिष्क के रोग एवं विकार, ऑप्टिकल प्रणाली के रोग और विकार, गर्भाशय के रोग एवं विकार, मासिक धर्म प्रवाह के विकार, तंत्रिकातंत्र के विकार, प्रोस्टेटिक ग्रंथि के विकार, जलोदर, मिर्गी, स्त्री रोग, बुख़ार, फ़िट्स, महिलावक्ष का रूप और संरचना, पित्ताशय की पथरी, गुर्दे की पथरी, मूत्राशय की पथरी, गैंग्रीन, ग्लूकोमा, धेघा, हृदय रोग, उच्च एवं निम्न रक्तचाप, हाइड्रोसील, हिस्टीरिया, शिशु पक्षाघात, पागलपन, कुष्ठ रोग, ल्यूकोडर्मा, लॉक जॉ, लोकोमोटर गतिभंग, ल्यूपस, तंत्रिका सम्बंधी दुर्बलता, मोटापा, पक्षाघात, प्लेग, प्ल्यूरिसी, न्यूमोनिया, गठिया, फ़्रैक्चर, यौन नपुंसकता, चेचक, व्यक्तियों की ऊँचाई, महिलाओं में बाँझपन, ट्रैकोमा, क्षय रोग, ट्यूमर, टाइफ़ाइड, जठरांत्र के अल्सर, यौन रोग (सिफलिस, गोनोरिया, सॉफ़्ट शैकर, वेनेरियल ग्रेन्युलोमा, और लिम्फो ग्रेन्यूलोमा) सम्मिलित हैं । इन व्याधियों/स्थितियों पर वैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश डालने के लिए पृथक से शीघ्र ही एक आलेख के लिये कृपया प्रतीक्षा करें।

औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम संख्या २१(१९५४) के कुछ अंश इस प्रकार हैं –

२ए विज्ञापन में कोई भी नोटिस, परिपत्र, लेबल, रैपर, या अन्य अभिलेख और मौखिक रूप से प्रकाश या धुआँ उत्पन्न करने या प्रसारित करने के लिये किसी भी माध्यम से की गयी कोई भी घोषणा सम्मिलित है ।

(नींद लाने के लिये मॉर्टिन वालों का विज्ञापन चमत्कार से मुक्त है?)

2 सी - जादुई उपचार में सम्मिलित हैं- ताबीज़, मंत्र, कवच किसी भी प्रकार का कोई अन्य आकर्षण जिसमें मनुष्यों या पशुओं में किसी भी रोग के निदान, चिकित्सा, शमन या उपचार या रोकथाम या प्रभावित करने के लिए चमत्कारी शक्तियाँ होने का आरोप लगाया गया है या किसी भी तरह से मनुष्यों या पशुओं के शरीर की संरचना या किसी जैविक कार्य को प्रभावित करने का दावा करना ।

            (रेल के डिब्बे, शौचालय और सार्वजनिक मूत्रालय में चिपके बाबा शेखानी रहमत उल्ला के बाँझपन, प्यार में निराश, खोया प्रेम पाने, मुकदमा जीतने आदि के लिये भभूत और ताबीज के विज्ञापनों पर इस अधिनियम की धारा के अंतर्गत विचार करने के लिये मीलॉर्ड के पास समय नहीं है)

3- प्रतिबंधित विज्ञापन

ए- महिलाओं में गर्भपात की रोकथाम, या महिलाओं में गर्भधारण की रोकथाम; या

बी यौन सुख के लिए मनुष्य की क्षमता का रखरखाव या सुधार; या

सी- महिलाओं में मासिक धर्म सम्बंधी विकार का सुधार; या

डी अनुसूची में निर्दिष्ट किसी रोग, विकार या स्थिति या किसी अन्य रोग, विकार या स्थिति का निदान, चिकित्सा, शमन, उपचार या रोकथाम, जो इस अधिनियम के तहत बनाये गये नियमों में निर्दिष्ट किया जा सकता है ।                                                                                                      

अधिनियम के अनुसार चौव्वन विशिष्ट चिकित्सा स्थितियों के उपचार और इलाज के लिये लक्षित औषधियों का प्रचार स्पष्टरूप से वर्जित घोषित किया गया है किंतु सन् उन्नीस सौ चौव्वन से अब तक देश भर में न जाने कितने फ़र्टिलिटी सेंटर्स खुल चुके हैं जिन पर मीलॉर्ड ने अभी तक कोई संज्ञान नहीं लिया, साथ ही महिलाओं में मासिक धर्म की समस्या को मीलॉर्ड आज भी अचिकित्स्य मानते हैं? चौव्वन व्याधियों में से अधिकांश तो ऐसी हैं जिनका उपचार बंद कर दिया जाय तो हाहाकार मच जायेगा । किसी न किसी मीलॉर्ड जी और उनकी पत्नी जी को कभी न कभी इन चौव्वन में से कोई न कोई व्याधि तो हुयी ही होगी, मीलॉर्ड ने अधिनियम के अंतर्गत पत्नी जी की चिकित्सा नहीं करवायी होगी न! मीलॉर्ड जी को उनके चिंतन और ज्ञान के व्यावहारिक उपयोग के लिये शुभकामनायें!   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.