“आजीवन शोधकार्यों और आविष्कारों में लगे रहने वाले वैज्ञानिकों की बौद्धिक प्रतिभा का व्यवहार अवसरवादी राजनीतिज्ञ और उद्योगपति किया करते हैं या फिर आमजनता करती है जो मूर्ख होती है”। – मोतीहारीवाले मिसिर जी
और भी कई
लोग हैं जो मानते हैं कि – “Indiscriminative
applications of technical devices lead the society uncivilized. Techniques are
scientific but theirs applications may or may not be scientific”.
वैज्ञानिक
आविष्कार करते हैं, उद्योगपति धन उपलब्ध करवाते
हैं, टेक्नीशियन्स उपकरण बनाते हैं और उनका व्यवहार करने वाले लोग उन
उपकरणों का दुरुपयोग करते हैं जिससे समाज और भी असभ्य, क्रूर एवं स्वेच्छाचारी होता जाता है ।
सनातन
विज्ञानमय है पर आवश्यक नहीं कि विज्ञान भी सनातन हो, वह सापेक्ष हो सकता है, सार्वदेशज और सार्वकालिक नहीं । सनातन के मूल में प्रकृतिधर्म
है जो संतुलन बनाये रखने की ओर प्रवृत्त होता है जबकि विज्ञान की गति असंतुलन की
दिशा में भी दिखाई देती है, यही कारण है कि अधर्ममूलक विज्ञान
विश्व को अंततः विनाश की ओर ले जाता है । विकसित सभ्यतायें लुप्त होती रही हैं, आगे भी होती रहेंगी, सभ्यताओं का यही परिणमन है ।
एक प्रश्न
उत्पन्न होता है, क्या तकनीकी उपकरणों के
व्यवहार की अनुमति हर किसी को प्राप्त होनी चाहिये, और यह भी कि क्या नित्यप्रति
व्यवहृत होने वाले इन उपकरणों के व्यवहार के लिए लोगों को प्रशिक्षित नहीं किया
जाना चाहिये? ऐसे प्रशिक्षणों को इसलिए नहीं
नकारा जा सकता कि लोग इन प्रशिक्षणों से कोई सीख नहीं लेंगे । यह सच भी है, फिर भी हम उन्हें वंचित नहीं कर सकते जो अपने स्वास्थ्य के
प्रति गम्भीर हैं ।
इलेक्ट्रॉनिक
उपकरण घातक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन उत्पन्न करने के लिए कुख्यात माने जाते हैं
इसलिए इन उपकरणों के प्रति हमारा व्यवहार बहुत ही संतुलित, आवश्यकतानुरूप, सीमित और वैज्ञानिक तरीके से
ही होना चाहिए अन्यथा हमें कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता
है जो सामान्य से लेकर गम्भीर, और यहाँ तक कि असाध्य भी हो
सकती हैं । विगत वर्षों में सामने आई ऐसी ही समस्याओं को लेकर वैज्ञानिकों में
व्याप्त चिंता के परिणामस्वरूप विज्ञान की एक नई शाखा “एर्गोनॉमिक्स” का जन्म हुआ
है जिसके बारे में अधिकांश चिकित्सकों को भी जानकारी नहीं है ।
हमें लगता
है कि चिकित्साशिक्षा के पाठ्यक्रमों में “एर्गोनॉमिक्स” को प्रीवेंटिव एण्ड सोशल
मेडिसिन के अंतर्गत समावेशित कर पढ़ाया जाना चाहिये ।
क्रमशः ...
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