सोमवार, 18 नवंबर 2024

भारत - स्वाभाविक हिन्दूराष्ट्र या इस्लामिकराष्ट्र

सोनिया संचालित कांग्रेस सरकार ने अपने शासनकाल में वक्फ़ बोर्ड को असीमित शक्तियाँ देकर मुसलमानों को भारत के विशाल भूभाग को शनैः शनैः हड़पने का निरंकुश मार्ग प्रशस्त कर दिया था । इस हड़प-कुनीति से प्रभावित होने वाले केरल के ईसाइयों ने हिन्दुओं के साथ मिलकर इस भू-अतिक्रमण के विरुद्ध न्यायालय की शरण ली है ।

भारत के मुसलमान बांग्लादेश को बहुसंख्यमुस्लिम होने के कारण और भारत को सेक्युलर देश होने के कारण इस्लामिक देश बनाने के लिये चुनौतीपूर्ण एवं हिंसक वक्तव्य देते रहते हैं । मुसलमानों के लिये “चित भी मेरी पट भी मेरी” वाली अकड़ अधिक सुविधाजनक होती है । दुर्भाग्य से भारत के भाजपा विरोधी हिन्दू इस सत्य को स्वीकार नहीं करना चाहते । आश्चर्यजनक रूप से भारत के अच्छे मुसलमान भी (नाज़िया इलाही, याना मीर और अम्बर ज़ैदी जैसे मुट्ठी भर मुसलमानों को छोड़कर) मुस्लिम आतंक, भू-अतिक्रमण, सर तन से जुदा, थूक-जिहाद, मंदिरों और हिन्दू भक्तों पर हिंसक आक्रमणों आदि के विरोध में कभी कुछ नहीं बोलते । कांग्रेसी हिन्दुओं के साथ-साथ मुलायमपुत्र, लालूपुत्र और उनके समर्थक तो मुस्लिम आतंकवाद को सिरे से नकार ही नहीं देते बल्कि हिन्दुओं पर “हिन्दू आतंकवाद से पीड़ित मुसलमान” का मिथ्या आरोप गढ़ने लगे हैं जो उनके नैतिक पतन की पराकाष्ठा है ।

हाल ही में बांग्लादेश में सत्ता अतिक्रमण के बाद से हुये परिवर्तन से उत्साहित वहाँ के अटॉर्नी जनरल अपने संविधान से “समाजवाद” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को हटाकर इस्लामिक मुल्क की स्थापना करने के पक्ष में वातावरण तैयार कर रहे हैं । उनका तर्क है कि वहाँ के नब्बे प्रतिशत निवासी मुसलमान हैं जिससे बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष छवि प्रस्तुत हो ही नहीं सकती इसलिए बांग्लादेश को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया जाना वहाँ के जनमानस की वास्तविक भावना के विरुद्ध है । उन्होंने “इस्लामी राष्ट्रवाद” के पक्ष में “बंगाली राष्ट्रवाद” जैसी अवधारणा का भी विरोध किया है । अटॉर्नी जनरल ने शेख मुज़ीबुर्रहमान को “राष्ट्रपिता” माने जाने का भी विरोध किया है । बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल के विचारों और तर्कों का भारत के संदर्भ में विश्लेषण किया जाना समीचीन है ।

राष्ट्रपिता की उपाधि से जाने जा रहे मोहनदास गांधी को भारत सरकार द्वारा कभी राष्ट्रपिता घोषित नहीं किया गया, वे भारत के राष्ट्रपिता हो भी नहीं सकते फिर भी वे अपनी इसी उपाधि से व्यवहृत होते हैं जबकि बंगबंधु के नाम से जाने जाते रहे मुज़ीबुर्रहमान ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्त करने के लिये युद्ध तक किया पर अब वहाँ की जनता उनके प्रति अपनी कृतघ्नता और घृणा व्यक्त करना चाहती है ।

बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल ने सच ही कहा कि “धर्मनिरपेक्षता” बांग्लादेश की वास्तविक छवि नहीं है, वहाँ की नब्बे प्रतिशत जनता का वास्तविकि स्वरूप इस्लामिक है । बहुसंख्यवाद का यही सिद्धांत भारत के लिये भी उपयुक्त क्यों नहीं स्वीकार किया जाना चाहिये! भारत के अधिसंख्य मुसलमान “हिन्दूराष्ट्र” का विरोध करते हैं, कुछ लोग खुलकर इसे इस्लामिक मुल्क बनाने के लिये षड्यंत्ररत हैं तो कुछ लोग धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगाकर इस्लामिक मुल्क बनाये जाने की भूमिकायें निर्मित करने में लगे हुये हैं । बांग्लादेश के विपरीत भारत, ब्रिटेन, फ़्रांस और अमेरिका आदि पश्चिमी देशों में मुसलमानों की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता मुसलमानों को ईसाइयों और हिन्दुओं से विद्रोह करने, उनका धर्मांतरण करने, उन पर सांस्कृतिक आक्रमण करने और वहाँ की मौलिक पारम्परिक जीवनशैली को समाप्त कर शरीया के अनुरूप जीवनशैली लागू किये जाने के उद्देश्यों को पूरा करने का छद्म मार्ग प्रशस्त करती है । कुल मिलाकर सभी का लक्ष्य एक ही है – पूरे विश्व का इस्लामीकरण । भारत में दो-चार मुसलमान ऐसे भी हैं जो भारत को हिन्दूराष्ट्र घोषित किये जाने के पक्ष में हैं ।

भाजपाविरोधी नेता भारत में साम्प्रदायिक और जातीय ध्रुवीकरण तो करना चाहते हैं पर यदि हिन्दू नीतियों की बात आती है तो वे महँगाई और बेरोजगारी का रोना रोते हुये हिन्दूवादी संगठनों पर “हिन्दू-मुसलमान” करने का आरोप लगाने लगते हैं । वहीं दूसरी ओर वे “हिन्दू-मुसलमान की गंगाजमुनी विरासत” की दुहाई देने से भी नहीं चूकते । मुसलमानों ने अपनी इन्हीं चालों से पूरे विश्व में धर्मांतरण और फिर अलगाववाद को शिखर पर पहुँचाया है ।

मुसलमानों और सेक्युलर हिन्दुओं के लिए गंगा-जमुनी विरासत, साझी संस्कृति, भाईचारा, आपसी मेलजोल और सद्भावना जैसे झूठे शब्द केवल हिन्दुओं के विरुद्ध रचे जाने वाले षड्यंत्रों के साधन भर हैं, इस सत्य को समझने और स्वीकार करने में आड़े आने वाली मूर्ख हिन्दुओं की अदूरदर्शिता शीघ्र ही हिन्दू समुदाय के लिए बड़े स्तर पर आत्मघाती सिद्ध होने वाली है । हिन्दुओं को समझना चाहिए कि आपसी सद्भाव और मेलजोल से रहने की बात यदि सच होती तो राजस्थान में “सारा हिन्दुस्तान हमारा है, हिन्दुस्तान में रहना है तो अल्लाह-हो-अकबर कहना होगा” जैसे उत्तेजक नारे नहीं लगते, सम्प्रदाय के आधार पर भारत का बारम्बार विभाजन नहीं हुआ होता, पर्शिया मुस्लिम देश नहीं बना होता और येरुशलम यहूदियों, मुसलमानों और ईसाइयों के बीच विवाद का विषय न बना होता । यह कैसी दबंगई है कि मुसलमान तो भारत को इस्लामिक देश बनाने की राह पर डायरेक्ट एक्शन डे के दिन से ही चल पड़े पर एक स्वाभाविक हिन्दू देश होने के बाद भी इसे एकमात्र हिन्दू देश घोषित किये जाने का कुत्सित विरोध कर रहे हैं! 

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