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रविवार, 27 नवंबर 2022

जड़ें

जिस वृक्ष की जड़ें भारत से निकालकर अरब में लगा दी गयी हों और उन्हें अरबी पोषण दिया जा रहा हो उस पेड़ के पत्ते, पुष्प और फल भारतीय कैसे हो सकते हैं! यह लाख टके का प्रश्न है जिसकी मिली-जुली संस्कृतिके नाम पर भारत में लगातार उपेक्षा की जाती रही है।मिली-जुली संस्कृतिइस्लामिक विस्तारवादियों का वह बहाना है जो भारत में अरबी मान्यताओं को स्थापित करने और भारतीय मूल्यों को समाप्त करने के लिए गढ़ा गया है।

शाक्य राजकुमार गौतम ने तो बुद्धत्व के लिए राज्य को त्याग दिया पर उनके अनुयाइयों द्वारा बौद्ध मत की स्थापना और राज्यसंचालन में उसके हस्तक्षेप के बाद से हमारी अपनी जड़ों को निरन्तर काटा जाता रहा है। इस काल में हमारी सनातन जड़ों को सत्ता से पोषण भी नहीं मिल सका, उनके रखवाले स्वयं भी कभी निष्क्रिय तो कभी असहाय होते रहे हैं। किसी संस्कृति के अस्तित्व के लिए उसकी जड़ों को काट देने की राज्याश्रित प्रक्रिया भारत के लिए बहुत बड़े संकट का कारण है। 1947 में सत्ता हस्तांतरण के बाद से ये प्रतिकूल स्थितियाँ और भी विकट होती रही हैं।  

जब तक धर्मांतरण को मतांतरण और भारतीय राष्टृवाद से जोड़ कर नहीं देखा जाएगा तब तक भारत पर असुरक्षा और पराधीनता के घनघोर बादल छाए रहेंगे। जिन्हें *भारतीयराष्ट्रवाद* से चिढ़ है उनके लिए हम इसके स्थान पर *मानवीयराष्ट्रवाद* का विकल्प रखना चाहेंगे।

भारतीय मुसलमान और ईसाई की चिंता मक्का-मदीना और येरुशलयीम को लेकर होती है, अयोध्या, काशी और मथुरा को लेकर नहीं। मोहनभागवत जैसे मानसिक पक्षाघात से पीड़ित लोग भारत के लाखों मंदिरों के इतिहास और उनसे जुड़ी भारतीय परम्पराओं को त्याग देने की बात करने लगे हैं। एक सच्चे भारतीय को इन सभी षड्यंत्रों की गहरायी को समझना होगा। नालंदा जैसे कई विश्वविद्यालयों को जलाकर नष्ट कर देने वाली आसुरी परम्परा के लोगों को संरक्षण देना भारत के सर्वनाश को आमंत्रित करना है। भारतीय संस्कृति को बचाये रखने के लिए भारत को अंगोला, स्लोवाकिया, ट्यूनीशिया, इस्तोनिया और आस्ट्रेलिया की नीति पर चलना ही होगा। इसके अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है। जब अंगोला और ट्यूनीशिया जैसे देश असुरत्व को पहचान कर उससे मुक्ति पाने की दिशा में अग्रसर हो चुके हैं तो विश्वगुरु का दम्भ भरने वाले भारत को ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए?  

हम कब तक इस तात्विक सत्य की उपेक्षा करते रहेंगे कि विभिन्न स्थानों और दिशाओं से प्रारंभ होकर एक ही बिंदु और दिशा की ओर होने वाली यात्रायें उन यात्राओं से भिन्न हैं जो एक ही बिंदु और दिशा से प्रारंभ होकर किसी दूसरे बिंदु और दिशा की ओर की जाती हैं। हमें यह झूठ बताया जाता रहा है कि सभी धर्म हमें ईश्वर की ओर ही ले जाते हैं। हम जीवमात्र के कल्याण की दिशा में प्रयत्नशील होते हैं जबकि कुछ लोग हमें देखते ही घात लगाकर मार डालने को अपने जीवन का उद्देश्य बना चुके हैं। हत्या करने वाले और मरने वाले की यात्रा की दिशा और उद्देश्य एकसमान कैसे हो सकते हैं!

सावधान! असुर तो झूठ बोलते रहेंगे, हमें झूठ और सच के अंतर को समझना होगा। 

मंगलवार, 7 जून 2022

भारतीयता क्यों नहीं

         वे भारत के पुरातात्विक सत्य को नहीं मानते, भारत के इतिहास को नहीं मानते, अपने सनातनी पूर्वजों को नहीं मानते, भारत के संविधान को नहीं मानते, भारत की संसद के निर्णयों को नहीं मानते, भारत की संस्कृति को नहीं मानते, भारत की सभ्यता को नहीं मानते, वे भारत और भारत की भारतीयता को भी नहीं मानते किंतु... वे सब मोहन भागवत के भाई-बहन हैं। मोहन भागवत ने भीमराव आम्बेडकर की दूरदृष्टि के विरुद्ध अपने गांधीवादी विचार से भारतीय समाज को उद्वेलित और चकित कर दिया है।   

जो सनातनियों को काफिर मानते हैं, अपने अलावा दुनिया की किसी अन्य सभ्यता या संस्कृति या धर्म का अपमान करना सबब का काम मानते हैं, काफिरों से मेलजोल न रखने की शिक्षा अपने बच्चों को देते हैं, काफ़िरों को “रमजान के पाक महीने के बाद जहाँ पाओ कत्ल कर दो” को ख़ुदा का हुक्म मानते हैं, मोहन भागवत उन्हें अपना भाई मानते हैं। जो शरीयत के कानून को दुनिया के सारे कानूनों से ऊपर मानते हैं, और मनुस्मृति को जूतों तले रौंदते हैं, जो हमारी लड़की तो छल-बल से ले लेते हैं किंतु अपनी लड़की देने के लिए कत्ल पर आमादा हो जाते हैं, जो भारत में इस्लामिक परम्परा लाना चाहते हैं किंतु हम सनातनी सभ्यता और हिन्दुत्व की बात भी करें तो उसे गुनाह समझते हैं, मोहन भागवत उन्हें अपना भाई-बहन मानते हैं। यह कैसी विचित्र गंगा-जमुनी तहज़ीब है और सरकारें इस तहज़ीब की इतनी दीवानी क्यों हैं?

वे भारत में रहना चाहते हैं किंतु भारतीयता को अपना शत्रु मानते हैं। वे भारत को इस्लामिस्तान बनाना चाहते हैं और हिंदुत्व को अपना शत्रु मानते हैं। यह कैसा देश है जहाँ हिन्दुओं को आज भी जजिया देना पड़ता है जिसका उपयोग मुस्लिम धार्मिक कार्यों और उनके अन्य हितों के लिए किया जाता है, किंतु वही हुक्मरान सनातनियों के धर्मिक कार्यों पर सेक्युलर हो जाते हैं?

मौलाना महमूद मदनी जब यह कहते हैं कि हम अपने मुल्क से समझौता नहीं करेंगे, इंशा अल्लाह! हमारा मज़हब अलग है, हमारा लिबास अलग है, हमारी तहज़ीब अलग है, हमारा खाना-पीना अलग है, हमारा सब कुछ अलग है। जिन्हें हमारा मज़हब... हमारे तौर-तरीके पसंद नहीं वे कहीं और चले जाएँतो उनके लिए “अपने मुल्क” का अर्थ भारत नहीं होता बल्कि दारुल हर्ब होता है, एक उर्वर विस्तृत भूभाग होता है जिस पर एक इस्लामिक हुकूमत कायम की जानी है और जिसके आदर्श भारतीय न होकर अरबी होने वाले हैं।  

यह इस्लामिक सभ्यता के वर्चस्व से जूझने और अपनी सभ्यता के अस्तित्व का संघर्ष है। सनातनी इसे कब समझेंगे!

रविवार, 12 सितंबर 2021

इस्लाम नहीं मानने पर हमला होगा– मौलाना अजीज

             “पूरी दुनिया में अब इस्लाम का निजाम क़ायम होने जा रहा है”। पाकिस्तान की लाल मस्ज़िद के मौलाना अब्दुल अजीज ने ऐलान किया है कि अब दुनिया को इस्लामी निजाम मानना होगा, जो इस्लाम नहीं मानेगा उस पर हमला होगा । मौलाना ने बताया कि इस्लाम के लिये पंद्रह से बीस लाख फ़िदायीन तैयार किये जा रहे हैं जो दुनिया भर में उन लोगों पर हमले करेंगे जो इस्लाम को कुबूल नहीं करेंगे ।

दुनिया को छोड़िये, भारत के भी अतिबुद्धिजीवियों को इसमें कुछ भी अन्यायपूर्ण नहीं लगता जबकि भारत को हिंदूराष्ट्र घोषित किये जाने की माँग पर इन्हें सख़्त ऐतराज़ हुआ करता है । “Dismantling Hindutva” के योद्धाओं के लिये मौलाना अब्दुल अजीज के इस ऐलान से ख़ुशी होगी । जो “अतिबुद्धिजीवी” नहीं हैं उन्हें याद करना होगा कि मौलाना की धमकी से पहले अबू-बकर-अल-बगदादी भी ख़ुद को दुनिया का ख़लीफ़ा ऐलान कर चुका था और उसनें हजारों लोगों को कत्ल करने के अलावा लाखों लोगों की ज़िंदगियों को तबाह कर दिया था । बगदादी मर गया, उसका स्थान लेने के लिये मुसलमानों में होड़ लग गयी है, यह विचार कभी ख़त्म नहीं होगा...। अफ़गानिस्तान में निज़ाम-ए-इस्लाम क़ायम करने की क़वायद जारी है । पाकिस्तान और भारत के “कम बुद्धि” वालों को सोचना होगा कि अब अगला नम्बर किसका होगा ।

वामपंथियों को यह पक्का विश्वास है कि हिंदू तो इस्लाम को बदनाम करने के लिये झूठ बोलते रहते हैं । किंतु कोट्टयम के बिशप ने भी “लव-ज़िहाद” और “नारकोटिक्स ज़िहाद” के आक्रमण से ग़ैरमुस्लिमों की रक्षा किये जाने की आवाज़ उठायी है, वामपंथियों के अनुसार शायद यह भी झूठ होगा । केरल के कुछ ईसाइयों को भरोसा है कि अन्य धर्मावलम्बियों की सुरक्षा के लिये भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाना चाहिये अन्यथा यहाँ केवल इस्लाम ही होगा और कुछ भी नहीं ।