वे भारत के पुरातात्विक सत्य को नहीं मानते, भारत के इतिहास को नहीं मानते, अपने सनातनी पूर्वजों को नहीं मानते, भारत के संविधान को नहीं मानते, भारत की संसद के निर्णयों को नहीं मानते, भारत की संस्कृति को नहीं मानते, भारत की सभ्यता को नहीं मानते, वे भारत और भारत की भारतीयता को भी नहीं मानते किंतु... वे सब मोहन भागवत के भाई-बहन हैं। मोहन भागवत ने भीमराव आम्बेडकर की दूरदृष्टि के विरुद्ध अपने गांधीवादी विचार से भारतीय समाज को उद्वेलित और चकित कर दिया है।
जो सनातनियों
को काफिर मानते हैं, अपने अलावा दुनिया की किसी अन्य सभ्यता या संस्कृति या धर्म का अपमान करना
सबब का काम मानते हैं, काफिरों से मेलजोल न रखने की शिक्षा
अपने बच्चों को देते हैं, काफ़िरों को “रमजान के पाक महीने के
बाद जहाँ पाओ कत्ल कर दो” को ख़ुदा का हुक्म मानते हैं, मोहन
भागवत उन्हें अपना भाई मानते हैं। जो शरीयत के कानून को दुनिया के सारे कानूनों से
ऊपर मानते हैं, और मनुस्मृति को जूतों तले रौंदते हैं,
जो हमारी लड़की तो छल-बल से ले लेते हैं किंतु अपनी लड़की देने के लिए
कत्ल पर आमादा हो जाते हैं, जो भारत में इस्लामिक परम्परा
लाना चाहते हैं किंतु हम सनातनी सभ्यता और हिन्दुत्व की बात भी करें तो उसे गुनाह
समझते हैं, मोहन भागवत उन्हें अपना भाई-बहन मानते हैं। यह
कैसी विचित्र गंगा-जमुनी तहज़ीब है और सरकारें इस तहज़ीब की इतनी दीवानी क्यों हैं?
वे भारत
में रहना चाहते हैं किंतु भारतीयता को अपना शत्रु मानते हैं। वे भारत को
इस्लामिस्तान बनाना चाहते हैं और हिंदुत्व को अपना शत्रु मानते हैं। यह कैसा देश
है जहाँ हिन्दुओं को आज भी जजिया देना पड़ता है जिसका उपयोग मुस्लिम धार्मिक
कार्यों और उनके अन्य हितों के लिए किया जाता है, किंतु वही हुक्मरान
सनातनियों के धर्मिक कार्यों पर सेक्युलर हो जाते हैं?
मौलाना
महमूद मदनी जब यह कहते हैं कि “हम अपने मुल्क से समझौता नहीं
करेंगे, इंशा अल्लाह! हमारा मज़हब अलग है, हमारा लिबास अलग है, हमारी तहज़ीब अलग है, हमारा खाना-पीना अलग है, हमारा सब कुछ अलग है। जिन्हें
हमारा मज़हब... हमारे तौर-तरीके पसंद नहीं वे कहीं और चले जाएँ” तो उनके लिए “अपने मुल्क” का अर्थ भारत नहीं होता बल्कि दारुल हर्ब होता है, एक
उर्वर विस्तृत भूभाग होता है जिस पर एक इस्लामिक हुकूमत कायम की जानी है और जिसके
आदर्श भारतीय न होकर अरबी होने वाले हैं।
यह
इस्लामिक सभ्यता के वर्चस्व से जूझने और अपनी सभ्यता के अस्तित्व का संघर्ष है।
सनातनी इसे कब समझेंगे!
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