बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

नक्सलियों से एक अपील

कोई घर बसाकर कभी तुम भी देखो 
बेसहारा किसी को न फिर कर सकोगे /


जां किसी की बचाकर कभी तुम भी देखो 
ये खूं - ख़राबा न फिर कर सकोगे /


ये खूं - ख़राबा , ये दहशत के साए 
कभी माँ से पूछो , कब उन्हें रास आये /


ग़ुल कोई खिलाकर कभी तुम भी देखो 
बर्बाद कुछ भी न फिर कर सकोगे /


आओ मिल- बैठ कर नेक मंथन करें 
चूक गए  ग़र तो कुछ भी न फिर  पा सकोगे /



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