कोई घर बसाकर कभी तुम भी देखो
बेसहारा किसी को न फिर कर सकोगे /
जां किसी की बचाकर कभी तुम भी देखो
ये खूं - ख़राबा न फिर कर सकोगे /
ये खूं - ख़राबा , ये दहशत के साए
कभी माँ से पूछो , कब उन्हें रास आये /
ग़ुल कोई खिलाकर कभी तुम भी देखो
बर्बाद कुछ भी न फिर कर सकोगे /
आओ मिल- बैठ कर नेक मंथन करें
चूक गए ग़र तो कुछ भी न फिर पा सकोगे /
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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.