शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

बस्तर की है माटी न्यारी

कण-कण में बिखरा है जिसके 
भोला-भाला प्यार
बस्तर की है माटी न्यारी
अद्भुत है इसका संसार.
इमली की पाती पर लिख कर 
दिया है उसने 
केवल प्यार
भर कर भी ना पोथी-पोथी 
हो पाए जिसका विस्तार .
वन महुआ, आँगन महुआ
तन महुआ, मन महुआ -महुआ
धरती महुआ, अम्बर महुआ 
महुआई है चाल.
टंगिया, छाता  और लंगोटी
टेढ़ी-मेढ़ी पथरीली पगडंडी
मस्त-व्यस्त हो बढ़ता जाए 
नंगा-भूखा निर्मल प्यार.


तुम सा मेरा रूप नहीं है 
तन उजला 
मन कृष्ण नहीं है 
छलना मत मेरे प्यार को प्यारे 
दोने भर सल्फी की आड़.
पत्थर  भी कोमल पाती से
यहाँ है पाता प्यार-दुलार 
पत्थर से टकराकर पानी 
हंसता
कहता
कर लो प्यार.
चहंक-चहंक कर कहती मैना 
बांटो सबको केवल प्यार.
भूल न जाना 
मडई आना
फिर तुम अगली बार.






चित्रकूट, जगदलपुर 
























      

3 टिप्‍पणियां:

  1. achhi kavita. ise bhi ddekhe.
    http://pratipakshi.blogspot.com/2010/10/blog-post_05.html

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  2. सुन्दर प्रस्तुति. इन्द्रावती क्या सूख गयी है.

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  3. अमितेश जी ! सुब्रमण्यम जी ! बस्तर की माटी के अवलोकन के लिए धन्यवाद ! सुब्रमण्यम जी ! हमने बस्तर के प्रतीकों को समेटने का प्रयास किया है. आज तो हिमालय पोषित गंगा और कालिंद्री का भी अस्तित्व संकट में है, यदि नदियों का अविवेक पूर्ण दोहन यूँ ही होता रहा तो कोई भी नदी सूख सकती है.

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.