दर्द के दरिया में मेरा, आशियाना है बना
जाल ले आये मछेरे, इस हुस्न का अब क्या करूँ ?
आयतें ख़ुदगर्ज़ हैं, इनको पढ़ कर क्या करूँ ?
इन रिवाज़ों से तलाकें, ले के जी पाया है कौन
पढ़ लिया कलमा तेरा, अब और पढ़ कर क्या करूँ ?
एक लम्हां जी लिया, इस उम्र का अब क्या करूँ ?
काज़ल चुरा कर आँख से, वो पढ़ गए मेरी ग़ज़ल
उठ चला लो मैं यहाँ से,ठहर कर अब क्या करूँ ?
काज़ल चुरा कर आँख से, वो पढ़ गए मेरी ग़ज़ल
उठ चला लो मैं यहाँ से,ठहर कर अब क्या करूँ ?
वाह डॉक्टर साहब........बेहद ही खूबसूरत गज़ल .......सीधे दिल से निकल कर कागज पर बिखर गई लगती है.........
जवाब देंहटाएंइश्क तो हरदम कंवारा, क्या तिज़ारत का असर !
एक लम्हां जी लिया, इस उम्र का अब क्या करूँ ?
काज़ल चुरा कर आँख से, वो पढ़ गए मेरी ग़ज़ल
उठ चला लो मैं यहाँ से,ठहर कर अब क्या करूँ
आप गज़ल अच्छी लिखते हैं कौशलेन्द्र जी!
चलते-चलते..........महिला दिवस की शुभकामनाएँ..........
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
जवाब देंहटाएंकाज़ल चुरा कर आँख से, वो पढ़ गए मेरी ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंउठ चला लो मैं यहाँ से,ठहर कर अब क्या करूँ
Baba ...kyaa baat he...........waah waah..kehna eko dil ho aayaaa.......ik dam.jaise ke hmaare punjab kehate hain...ki ik dam mast .Gazal bni he...p..p,,,,
\sach me baba...bdi pyaari gazal hui he
chunidaa sher to khoob he
:)
डॉक्टर साहब! आज तो सुर बदले बदले से हैं... मौसम का असर है या डॉक्टर मरीज़ हो चला है!! :)
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