आज होली में मैं कुछ बहकने लगा
मन मेरा पल्लवी सा थिरकने लगा //
दोष मौसम का या पुष्प की गंध का
अंग-अंग ही लता का महकने लगा //
लाँघ कर देहरी लाज की आज आँचल
वक्ष पर उनके शिशु सा मचलने लगा //
जाने क्यों चल पड़ी आज पागल हवा
कुछ फिसलने लगा कुछ धड़कने लगा //
कुछ निरंकुश हुआ कुछ हठीला हुआ
उनका आँचल मुझे उड़के छूने लगा //
कनखियों से छुआ नेक सा ही तभी
लाज का रंग उन पर बरसने लगा //
रंग का पर्व यह प्रेम का पर्व है
ऐसा अवसर कहाँ और मिल पायेगा //
गोरा तन हो न हो, मन है कोरा तेरा
रंग लूँ जी भर तुझे, आज जी है मेरा //
तोड़ सीमा कहीं, कहीं बंध जाऊँगा
साथ बंधन लिए कहीं उड़ जाऊँगा //
पंछी मन का मेरे, अब फुदकने लगा
गीत चुपके से एक गुनगुनाने लगा //
मुझे पता है मैंने भाँग नहीं पी है ...पर सलिल भैया यही कहेंगे -" क्या बात है डाक्टर साहब ! अभिये से पी लिए हो का ....बुझाता के राउरे ऊपर कुल फागुन आ गइल बा ....डाक्टरे रहि ह भाई मरीज़ झं होइ ह " .
हमेशा चुप रहने वाली हीर मुस्कराकर कहेंगी -"ਓਯ ਹੋ ਯ ......ਆਖਿਰ ਰੰਗ ਚੜ ਹੀ ਗਯਾ ...ਇਸ ਉਮਰ ਮੇਂ" ...अरे वही हीर जिनको मैं डिवाइन सॉन्ग "डायमंड" कहता हूँ .
उधर मालिनी जी भी धीरे से बोलेंगी - " ક્યા બાત હૈ ! આજ તો રંગ બિરંગે લગ રહે હૈન દાકતર સાહબ "
. ..और फिर वेणु क्यों चुप रहने वाली, बोलेगी -" होता है बाबा ! फागुन है न !"
मगर मेरा सबके लिए एक ही ज़वाब है- "अरे भाई ! यह तो बहुत साल पहले लिखी थी... डायरी से पन्ना उड़के यहाँ आके चिपक गया तो मैं क्या करूँ !"
होली की सभी को मंगल कामनाएं, हाँ ! पानी कम बहाइयेगा ...ऊ का है के भुइहाँ मं पनिया कम हो गइल बा.....आ जापान के बिस्फोट के गर्मी हईजो आ गइल बा ...त पनिया बचाए के चाहीं नू !
हमेशा चुप रहने वाली हीर मुस्कराकर कहेंगी -"ਓਯ ਹੋ ਯ ......ਆਖਿਰ ਰੰਗ ਚੜ ਹੀ ਗਯਾ ...ਇਸ ਉਮਰ ਮੇਂ" ...अरे वही हीर जिनको मैं डिवाइन सॉन्ग "डायमंड" कहता हूँ .
उधर मालिनी जी भी धीरे से बोलेंगी - " ક્યા બાત હૈ ! આજ તો રંગ બિરંગે લગ રહે હૈન દાકતર સાહબ "
. ..और फिर वेणु क्यों चुप रहने वाली, बोलेगी -" होता है बाबा ! फागुन है न !"
मगर मेरा सबके लिए एक ही ज़वाब है- "अरे भाई ! यह तो बहुत साल पहले लिखी थी... डायरी से पन्ना उड़के यहाँ आके चिपक गया तो मैं क्या करूँ !"
होली की सभी को मंगल कामनाएं, हाँ ! पानी कम बहाइयेगा ...ऊ का है के भुइहाँ मं पनिया कम हो गइल बा.....आ जापान के बिस्फोट के गर्मी हईजो आ गइल बा ...त पनिया बचाए के चाहीं नू !
कनखियों से छुआ नेक सा ही तभी
जवाब देंहटाएंलाज का रंग उन पर बरसने लगा //
रंग का पर्व यह प्रेम का पर्व है
ऐसा अवसर कहाँ और मिल पायेगा //
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
वाह जी ..इसे कहते हैं होली का रंग ....बहुत सुन्दर रचना ...डायरी का पुराना पन्ना ही क्यों न हो एहसास तो अभी भी है :):)
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनायें
रंगों के त्यौहार में डायरी का रंगीला पन्ना उड़कर यहाँ चिपक गया । अति सुन्दर । आनंद आ गया ।
जवाब देंहटाएंNot fair..........कौशलेन्द्र जी....ये क्या बात हुई.......मेरी प्रतिक्रिया तो आपने चुरा कर पहले से ही लिख दी....अब......मैं तो मौन हूँ......अरे...बुरा मान गये क्या...? चलिये....आज सिर्फ रंगों को ही बोलनें देते हैं ......... HAPPY HOLI.
जवाब देंहटाएंडागडर( हम डाक्टर न बोली पावेनी) बाबू..तानी ध्यान से फुदकिहा कही अईसन न हो की रपटी के बिछिला के केहू दुसरे के बाहीं में गिरला ता भौजी बहुत मारी मरिहे बेलना से..
जवाब देंहटाएंबुरा मत मनिहा होली न आ गइल बा ...
आप सभी को होली की शुभ कामनाएं .....!!!
जवाब देंहटाएं@ मालिनी जी ! बच के रहिएगा ...काशी से चौर्यकला सीखी है .....पता नहीं क्या-क्या चुरा ले जाऊं इस होली के मौसम में .
@ आशु ! काहे तू ना रहिबा का ...जब भउजी बेलना चलिहैं त बचाय खातिर तू त बड़ले बा नू ....हमरा के कौनो चिंता नइखे.....हम त बिछिल के गिरिबे करब .......साल भर के परब बाटे...रोज-रोज ना नू गिरब .....
बहुत सुन्दर रचना| आनंद आ गया|
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएं|
कविता की प्रारम्भिक शब्द-योजना बिलकुल नवीनता और ताजगी से भरपूर है। पर आधे के बाद की कविता में वह बात नहीं आ पायी है। इसका अर्थ यह कदापि न समझें कि कविता अच्छी नहीं है। आपकी कविता होली के रंग में मुझे तो सराबोर कर गयी। कविता बहुत ही मनोहर है। आभार।
जवाब देंहटाएं