कौआ
काले धन वालों को
कभी नहीं काटता काला कौआ
वह तो काटता है
केवल
सच बोलने पर ही.
साहित्यकार जी
वे संवेदनशील हैं
इसलिए 'कलम के सिपाही' हैं
वे 'सिपाही' हैं
इसलिए अपनी पर उतर आते हैं .
सुना है .............
किसी समारोह में पुरस्कार के लिए
लांघ गए थे सारी सीमाएं.
बाध्यता बनाम अधिकार
मतदान
आपका अधिकार है
और कातिलों को मतदान
आपकी बाध्यता.
मालिक
एस. पी. के बेटे
उसके यहाँ तालीम लेने आते हैं.
बड़ी-बड़ी डिग्री वाले भी
खिदमत करने आते हैं .
दरअसल .........
वह एक कोचिंग सेंटर का मालिक है
इससे पहले
इसी शहर का सट्टा किंग था
मार्केटिंग मैनेज़र
वह मार्केटिंग मैनेज़र है
एक बड़े हॉस्पिटल का,
..................................
ये हॉस्पिटल........
मार्केट कब से हो गया ?
कपड़े
जिन कपड़ों में
कोई दीगर लड़की
लगती है बड़ी कामुक
..........
..........
छलकता है भोला बचपन
जब पहनती है उन्हें
मेरी सोलह बरस की बच्ची.
योगायोग
पूरे देश ने सीख लिया है योग
और फेफड़ों की धौंकनी चलाना
इससे हार्ट नहीं होता हर्ट
और अटैक से बचाने में मिलती है मदद
जब पड़ता है
सी.बी.आई.
या
आयकर वालों का छापा.
शौक
जन्म दिन पर हीरों के गहनों की भेंट
उस गरीब ...
और दलित महिला का शौक है
वह शान-ओ-शौकत से रहती है
वह आज भी गरीब और दलित है.
काश ! मैं भी होता
ऐसा ही गरीब और दलित.
उधार
उधार
प्रेम की कैंची है
और कैंची
उधार का प्रेम.
क्षणिकाएँ हैं या व्यंग्य की कटारी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...।
कौशलेन्द्र बाबू!
जवाब देंहटाएंजिनपर यह व्यंग्य वाण बरसाए हैं आपने,ये तो अच्छा है कि उनके पास न तो दिल होता है न दिमाग... वरना इतने तीक्ष्ण वाणों का प्रहार चुल्लू भर पानी में डूबने को बाध्य कर देता उनको!!
बेहतरीन क्षणिकाएँ....कटाक्ष से भरपूर.....हमारे समाज और सामाजिक व्यवस्थाओं पर करारा प्रहार करती हुई...बधाई डॉक्टर साहब...
जवाब देंहटाएंवह हो गया है
बहुत ही प्रसिद्ध
न जाने कितनें ही
वारंट
निकले हुए हैं
उसके नाम पर
कल ही किसी ने
उसे देखा था..
एक पुलिस वाले के साथ
नुक्कड़ पर
चाय पीते हुए
कौशलेन्द्र जी और मालिनी गौतम जी, कलियुग के नाटक का 'सत्य' दर्शाते अनंत में से कुछेक पात्रों का सुंदर वर्णन !
जवाब देंहटाएंझूट बोलने वालों को कव्वा सतयुग में ही शायद काटता हो,,, :)
जे सी जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
कौशलेन्द्र जी के साथ-साथ आपने मेरी पंक्तियों को भी पढ़ा और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की ........अच्छा लगा......आभारी हूँ.....
सत्यता को उजागर करती हुए बहुत ही सुन्दर व्यंगात्मक क्षणिका ....
जवाब देंहटाएंये झरना ऐसे ही अनवरत बहता रहे..
जय श्री राम
कौशलेन्द्र जी, टिप्पणी लिखी किन्तु गूगल महाराज अवकाश में होने के कारण भेज नहीं सका... और अब कम पर तो आगये किन्तु कुछ टिप्पणियाँ नदारद दिख रही हैं ! इस कारण टिप्पणी की प्रतिलिपि प्रस्तुत कर रहा हूँ -
जवाब देंहटाएं" मालिनी गौतम जी, कौशलेन्द्र जी,,, पहले हिन्दू अपने अपने प्रदेश से आ काशी में गंगा के तट पर मिलते थे और 'सत्य' पर चर्चा करते थे... किन्तु कलियुग में, समय की कमी और अन्य कई कारणों से, अब ब्लॉग में ही कुछ भाग्यवान मिल पाते हैं...
मेरा मानना है कि इन बैठकों का जितना संभव हो हमें लाभ उठाना चाहिए,,, मैं फरवरी २००५ से कुछेक ब्लोगों में टिप्पणियाँ अंग्रेजी अथवा हिंदी में लिखते-पढ़ते, और इन्टरनेट की सहायता से भी, बहुत कुछ सीखा हूँ और सीख रहा हूँ,,,
जैसा आज माना जाता है, यदि जीवन ( सिनेमा समान ) केवल ' टाइम पास ' ही है, तो फिर ब्लोगिंग एक अच्छा साधन है,,, इस माध्यम से मुझे कम से कम कौशलेन्द्र जी आदि कई ज्ञानी लोगों से, गुरु लोगों से, अच्छी भाषा सुनने को मिलती है,,, यद्यपि कई बार स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 'सरिता' पत्रिका में पढ़ी एक कहानी, ' हिंदी प्रेमी ', की याद भी आ जाती है जिसकी, तांगा वाले, कुली, अन्य आम रेल कर्मचारी, आदि से क्लिष्ट भाषा के उपयोग होने से, आम बोले जाने वाली भाषा न होने से, ट्रेन छूट जाती है :) "
बहुत खतरनाक लिखते हैं आप
जवाब देंहटाएं- आनंद
हमारे आज के समाज की स्थिति को
जवाब देंहटाएंदर्शाती हुई
अच्छी और सटीक क्षणिकाएं ...
बहुत खूब !!
सभी क्षणिकायें एक से बढ़ कर एक...समाज के विभिन्न पहलुओं पर तीखा कटाक्ष..
जवाब देंहटाएंनिशब्द करती क्षणिकाएं । इतने गहन दर्शन के आगे तो बस मौन हूँ। सार्थक संदेश को ग्रहण किया।
जवाब देंहटाएंअभिवादन स्वीकार करें।
कौशलेन्द्र जी, 'मैंने' इस पोस्ट का आनंद लेते हुए 'सत्य' पर एक टिप्पणी दी थी जो गूगल महाराज खा गए !,,,
जवाब देंहटाएंउस में ' हिन्दू मान्यता ' के आधार पर संकेत किया था काल की उलटी चाल पर, युगों की अपनी अपनी विभिन्न प्रकृति के कारण वर्तमान ' कलियुग ' होने के कारण मानव की कार्य-क्षमता का 'सतयुग' (१००% ज्ञान) की तुलना में कलियुग में अत्यधिक् ह्रास (२५ % से शून्य), अज्ञानी और 'अधर्मी', प्रतीत होना,,, जबकि पृष्ठभूमि में 'प्रकृति' (सौर-मंडल आदि) सतयुग को सदैव दर्शाती, प्रतिबिंबित करती, प्रतीत होती है...
आप सभी लोगों को धन्यवाद ! आदरणीय कैलाश शर्मा जी के प्रथम आगमन पर बस्तर के जंगल में उनका हार्दिक स्वागत है.
जवाब देंहटाएंमालिनी जी ! बचपन में ये चोर सिपाही के खेल वाली परम्परा यूं ही नहीं पड़ गयी होगी. ऐसे दृश्य ही चोर-सिपाही संबंधों पर सही प्रकाश डालते हैं. "सम्बन्ध" क्षणिका को यहाँ साझा करने के लिए धन्यवाद.
दिव्या का अभिवादन तो मैं अगस्त में स्वीकार करना चाहता था ...पर चलो ....पेशगी समझ कर स्वीकार कर लेते हैं. इससे अगस्त वाला भी पक्का हो गया न ?
जे.सी बाबा जी ! ॐ नमोनारायण ! अजी ज्ञानी नहीं हूँ मैं ......बस कुछ अच्छे लोगों की कंपनी मिल गयी है नेट पर....मन बुद्धि को कुंद होने से बचाने का प्रयास कर रहा हूँ. हिन्दी क्लिष्ट भाषा नहीं है. मैंने संपूर्णानंद विश्वविद्यालय के परिसर में लोगों को हिन्दी बोलते सुना है ....अत्यंत प्रभावोत्पादक भाषा है .....और आकर्षक भी ......कुछ आयातित शब्दों को समाहित कर यह और भी समृद्ध हो गयी है. प्रवाहमान भाषा ही जीवित रह पाती है.
धर्म चर्चा के सन्दर्भ में मैंने सापेक्ष शब्द का प्रयोग किया है. सतयुग पूरी तरह कभी समाप्त नहीं होता .....ब्रह्माण्ड में कहीं न कहीं चारों युग अपने अस्तित्व में बने ही रहते हैं ...निरंतर उत्थान और पतन की क्रिया पूरे ब्रह्माण्ड में तभी तो संभव हो पाती है.
बेहतरीन लेखन बेहद अच्छा लगा आपके ब्लाग पर आकर
जवाब देंहटाएंकौशलेन्द्र जी, मेरा यह बिलकुल तात्पर्य नहीं था कि हिंदी भाषा क्लिष्ट है...जब उत्तर भारत में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा होने से इसे राज्य भाषा चुना गया, तभी से कुछ ही वर्षों के भीतर अधिकतर दक्षिण राज्यों में इसका विरोध आरम्भ हो गया, वहां की जनता को लगा इसे उन पर थोपा जा रहा है,,, और कई कारणों से, अँगरेज़ तो यद्यपि चले गए किन्तु भारत में अंग्रेजी का प्रयोग और अधिक हो गया है जिसके कारण हिंदी भाषी प्रदेश वासी भी ठगे से महसूस करते हैं...
जवाब देंहटाएंउधर यूके के टीवी सीरियल 'यस मिनिस्टर' में भी दर्शाया गया कि कैसे लम्बे लम्बे घुमावदार वाक्यों के उपयोग से मंत्री भी भ्रमित किये जाते आ रहे थे! प्रधान मंत्री ने तब छोटे छोटे वाक्य ही प्रयोग करने का आदेश दिया!
भाषा केवल एक माध्यम है अपनी बात अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के सम्मुख प्रस्तुत करने हेतु...यदि उसका उद्देश्य केवल टाइम पास है तो क्या कहा जाता है शायद कोई मायने नहीं रखता, परन्तु यदि आम आदमी के हित में कोई बात की जाए तो आवश्यक है उसको ध्यान में रख भाषा सरल होनी चाहिए...
डॉक्टर साहब
जवाब देंहटाएंक्या बात है !
एक से बढ़ कर एक हर क्षणिका … सचमुच !
बहुत बहुत बधाई और आभार !
हर क्षणिका कुछ न कुछ कह रही है और हर क्षणिका विशेष है !
…इसलिए किसी एक को कोट करना सही नहीं लग रहा …
वाह वाह वाह !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सार्थक, सारयुक्त
जवाब देंहटाएं"धर्म चर्चा के सन्दर्भ में मैंने सापेक्ष शब्द का प्रयोग किया है. सतयुग पूरी तरह कभी समाप्त नहीं होता .....ब्रह्माण्ड में कहीं न कहीं चारों युग अपने अस्तित्व में बने ही रहते हैं ...निरंतर उत्थान और पतन की क्रिया पूरे ब्रह्माण्ड में तभी तो संभव हो पाती है"
आपको आमंत्रण है सुज्ञ पर प्रतिभाव रखने के लिए……
http://shrut-sugya.blogspot.com/2011/05/blog-post_19.html
मतदान
जवाब देंहटाएंआपका अधिकार है
और कातिलों को मतदान
आपकी बाध्यता.
और शायद इसी बाध्यता के कारण हमारा लोकतंत्र अपने अभीष्ट तक नहीं पहुच पा रहा है..... बहरहाल उम्दा रचना .
जन्म दिन पर हीरों के गहनों की भेंट
जवाब देंहटाएंउस गरीब ...
और दलित महिला का शौक है
वह शान-ओ-शौकत से रहती है
वह आज भी गरीब और दलित है.
काश ! मैं भी होता
ऐसा ही गरीब और दलित.
kaash main bhi
अच्छी और सटीक क्षणिकाएं ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!