रविवार, 22 अप्रैल 2012

सुबह-सुबह जंगल की सैर

आज रविवार है सो सूरज निकलते ही हम तो चल दिये जंगल की ओर। आप पूछेंगे कि सूरज निकलने पर ही क्यों, ब्राह्ममुहूर्त में क्यों नहीं ? तो भइया हम बता दें आपको कि सूर्योदय से पूर्व भालू, चीतल, तेन्दुआ आदि जल की तलाश में मानव बस्तियों के पास तक चले आते हैं। आदमी ने वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास और भोजन पर अधिकार कर लिया है शायद इसीलिये मानुष को देखते ही भालू दादा हो जाते हैं कुपित और कर देते हैं उनपर हमला। अब उनसे पंगा कौन ले .....तो हमने इसीलिये सूर्योदय तक की प्रतीक्षा कर लेने में ही भलाई समझी अपनी ।   
भालू तो मिले नहीं लम्बी पूँछ वाले काले बन्दर ज़रूर मिल गये

पिछली बार हमने प्रियाल(चार या चिरौंजी) के पुष्प दिखाये थे आपको। वे पुष्प अब खट्टे/मीठे प्रियाल में बदलते जा रहे हैं। प्रियाल के कच्चे फलों का रंग हरा होता है और स्वाद बहुत खट्टा ....
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प्रियाल के फल तो लग गये किंतु इनपर पहला अधिकार जिनका है उनसे कुछ बच पाये तब तो मिले आपको। ये देखिये खाये कम तोड़कर फेके ज्यादा.....और कौन! वही..जिनसे ऊपर भेंट हो चुकी है आपकी..
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प्रियाल के पके फल काले होते हैं और मीठे इतने कि क्रिमि बहुत ज़ल्दी लग जाते हैं। मीठा फल खाने के बाद बेर की तरह कठोर आवरण वाला बीज मिलता है जिसे तोड़ने से चिरौंजी का वह स्वरूप सामने आता है जिससे आप सब सुपरिचित हैं।

कच्चा काजू पक्का काजू, डाल-डाल पर छाया काजू


फल के नीचे कठोर आवरण और दाहक तेल युक्त काजू है जिसे भून कर ही खाने योग्य बनाया जाता है। किंतु ऊपर पीले, स्पंजी और मधुर रस से भरे सुगन्धित फलों को चूसकर खाया जा सकता है। इनकी सुगन्ध बहुत अच्छी होती है।   

लो जी! झुमके पहन लिये अमलतास ने........कैसे लगे आपको?

आरग्वध यानी आपका अमलतास(Casia fistula) जंगल की शान तो है ही कई रोगों की औषधि भी है जैसे कि ज्वर,भगन्दर,मलविबन्ध(Constipation) आदि

 शिवप्रियम बिल्व पत्रम बिल्व फलम च ...
पर बेल ही क्यों?
शिव ने हलाहल पान किया था, और बेल के पत्र विषघ्न होते हैं। शिव के पुत्र लम्बोदर गणेश जी को कैथा और जामुन पसन्द था, भक्तों ने बेसन के लड्डू खिला-खिला कर डायबिटीज कर दी उन्हें तो वैद्य जी ने कैथा और जामुन के साथ बेल पत्र स्वरस भी पीने के लिये कहा उनसे। बेल पत्र एंटीडायबिटिक भी हैं।
बेल के कच्चे फलों का गूदा क्रॉनिक डिसेंट्री की औषधि के लिये सुविख्यात है। "विल्वावलेह"  नाम से इसकी औषधि मेडिकल स्टोर में उपलब्ध है।   


भीनी ख़ुश्बू और ख़ूबसूरत फूल वाले इस वृक्ष से अपरिचित हूँ मैं, आपको पता हो तो बताइये न!



17 टिप्‍पणियां:

  1. पहली बार देखा काजू का फूल और काजू लगा हुआ.आभार.

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  2. वाह !!!!!! बहुत बढ़िया प्रस्तुति, कौशलेन्द्र जी,....
    आपका फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,...
    मेरे पोस्ट पर आइये आपका स्वागत है,...आभार

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...

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  3. सुंदर, मनोरम चित्रावली।
    फल भी सरस, वर्णन भी सरस .

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  4. nice clicks......
    कहाँ के जंगल हैं ये???
    याने बस्तर में कहाँ????

    अनु

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  5. क्षेत्रफल में केरल राज्य से भी बड़ा है बस्तर। राज्य विभाजन के पश्चात से अब तक बस्तर को कई जिलों में बाटा जा चुका है, उन्हीं में से एक है उत्तर बस्तर जिसका जिला मुख्यालय है कांकेर। ये जंगल कांकेर के हैं।

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  6. ख़ूबसूरत चित्र और रोचक जानकारी| बेलपत्र, कैथा जामुन के प्रिय होने का लोजिक भी अच्छे से समझाया आपने|

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  7. कांकेर वनों की सुहानी सुबह के दर्शन कराने का आभार कौशलेन्द्र जी।

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  8. ग़ज़ब का पोस्ट है दादा। बहुत ही मनोरम फोटो हैं। लगा आपके साथ हम भी घूम आए।
    हम भी सूर्योदय के बाद ही निकलते हैं सैर करने को। उसके पहले महानगर में कुत्तों का आतंक रहता है।

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    1. भइया जी! महानगरों में सूरज निकलने पहले चोरों का, सूरज निकलने के बाद नेताओं का और सूरज की परवाह किये बिना घोटालेवाज़ों का आतंक रहता है। हमारे बस्तर में एक और अतिरिक्त आतंक रहता है जिसे लोग बनाये रखना चाहते हैं ...नक्सलवाद!

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  9. बेहद खूबसूरत फोटोग्राफ्स कौशलेन्द्र जी......और क्यों न हों.....आप एक बेहतरीन फोटोग्राफर जो हैं....काजू और प्रियाल के दर्शन यहाँ नहीं होते हैं...मगर ये काले मुँह वाले बंदर मेरे नीम के पेड़ पर अक्सर बैठे रहते हैं....अमलतास और बेल के वृक्ष यहाँ भी बड़ी तादाद में हैं....

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  10. उफ़, इतना प्यारा बस्तर झुलस रहा है नक्सलवाद से

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  11. बहुत ही मनमोहक तस्वीरें हैं...हमने भी जंगल की सैर कर ली...चिरौंजी के पेड़ पहली बार देखे..'प्रियाल' नाम से भी पहली बार परिचय हुआ.

    अमलतास तो यहाँ हमारी कॉलोनी में भी खूब खिला है..सुबह सड़क के किनारे चादर सी ही बिछी होती है...केरल के विशु (नव वर्ष ) त्योहार में अमलतास के फूल भगवान को जरूर चढ़ाए जाते हैं.

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  12. मन को और आंखों को सुख मिला.

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  13. बंदर भी नक्सलवादियों की तरह खतरनाक लग रहे हैं। सुंदर तश्वीरें। कैमरा तो अच्छा है ही आप भी मेहनत किये हैं।..शुक्रिया।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.