मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

चौपाल की चखचख ...१

यह कैसा राष्ट्र प्रेम ?

बस्तर के दक्षिणी भाग में स्थित नव निर्मित जिला सुकमा के कलेक्टर एलेक्स मेनन को दो दिन पूर्व ग्राम सुराज अभियान की एक सभा में से नक्सलियों ने अगवा कर लिया। नक्सलियों ने उनके दो अंगरक्षकों की ह्त्या भी कर दी।  भारतीय प्रशासिक सेवा के युवा कलेक्टर मेनन बहुत ही समर्पित और कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारी हैं। उनके विवाह को अभी एक माह भी पूरा नहीं हुआ है। प्रभावशील लोगों का अपहरण कर सरकार पर दबाव बनाना और अपनी नाजायज़ मांगों को मनवाना नक्सलियों की रणनीति का एक हिस्सा है। जगह-जगह लोगों ने मेनन की रिहाई के लिए स्वस्फूर्त प्रदर्शन किये और चर्च में उनकी सलामती के लिए प्रार्थनाएं कीं। बस्तर में ऐसी घटनाएँ आम हो चली हैं। जहाँ तक मुझे स्मरण है, उग्रवादियों द्वारा महबूबा मुफ्ती की रिहाई के लिए सबसे पहले इस फार्मूले का सफल प्रयोग किया गया था। अब  यह एक कारगर फार्मूला बन गया है। इस पूरे घटना क्रम ने कुछ प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
१- नक्सली संगठन आदिवासी और सर्वहारा के हित और उत्थान  की बात करते हैं। उनके अनुसार उनके सारे अभियान देश में शोषित वर्ग के सर्वांगीण विकास के लिए चलाये जा रहे हैं। अर्थात उन्हें भारत से प्रेम है, जिसके लिए वे स्कूलों को बम से उड़ा देते हैं, सड़कें और अस्पताल नहीं बनाने देते, रेलें अपनी मर्जी से चलवाते हैं, छोटे कर्मचारियों को भयभीत करते हैं जिससे वे शासकीय कार्य न कर सकें, व्यापारियों से भारी टैक्स बसूलते हैं, बर्बर सभाओं, जिन्हें वे अपनी जन अदालत कहते हैं, में लोगों की पीट-पीट कर निर्ममता से ह्त्या कर देते हैं और पूरे गाँव के लोगों को यह घटना देखने के लिए बाध्य करते हैं, किशोर वय बालक-बालिकाओं को नक्सली बनाने के लिए उठा ले जाते हैं .....
राष्ट्र प्रेम के ये तरीके आपको कितने पसंद आये? 
२- अमेरिका स्थित विश्व व्यापार केंद्र के भवन को धराशायी करने के बाद से वहाँ आतंकी हमले की पुनरावृत्ति  नहीं हुयी। भारत में ऐसी घटनाओं के अभ्यस्त हो चले हैं लोग। स्वतन्त्र भारत की सरकार इतनी पंगु क्यों है कि चीन द्वारा पोषित एक आयातित उग्र विचारधारा के लोग भारत के कुछ हिस्सों में अपनी एक समानांतर सरकार चला पाने में सक्षम हो पा रहे हैं? नक्सलियों द्वारा शासित क्षेत्र में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। क्या भारत का भविष्य तिब्बत की तरह होने वाला है? 
हमारी सरकार का यह राष्ट्र प्रेम आपको कैसा लगा ?
३- अब से पहले और भी कई सरकारी अधिकारियों का नक्सलियों द्वारा अपहरण किया जाता रहा है, किन्तु कभी चर्च द्वारा उनकी सलामती के लिए प्रार्थनाएं नहीं की गयीं। क्या राष्ट्र प्रेम के लिए किसी धर्म विशेष का होना आवश्यक है? क्या अब से पहले अपहृत किये गए लोग इस देश के नागरिक नहीं थे? और क्या उनकी सलामती के लिए चर्चों में प्रार्थनाएं नहीं की जानी चाहिए थीं?
धर्मंनिरपेक्ष देश में धार्मिकों का यह आंशिक राष्ट्रप्रेम किस अवधारणा का पोषक है?
४- अपने नागरिकों की सुरक्षा कर पाने में संप्रभुता संपन्न यह राष्ट्र कितना सफल हो पा रहा है? क्या कोई भी उग्रवादी संगठन सरकारों को इसी तरह ब्लैकमेल करता रहेगा ? 
क्या यह देश एक बार फिर विदेशी आततायियों के लिए निर्विरोध आमंत्रण की पृष्ठभूमि तैयार करने लगा है?  
   

2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.