हाय पैसा...हाय पैसा ....दिन का चैन गया रात की नींद गयी ....ब्रिटेन में अम्बानियों का घर रहने के लिये कितना छोटा है! और इनका घर! ...कितना विस्तृत ! जहाँ छाँव वहीं ठाँव .....भला जीने को और क्या चाहिये !
लक्सर जंक्शन । पेड़ की छाँव तले एक बंजारा परिवार
ज़रा और क़रीब से देखिये इनकी गृहस्थी .....और चेहरे की ख़ुशी भी ........
बंजारों का स्नानघर
ऊपर आग उगलता सूरज, नीचे तपती धरती.....पर पेट की आग में झोंकने को कुछ तो चाहिये न!
गरमी का उपहार ...रसीले-मीठे शहतूत ....कुछ तो आग बुझेगी इनसे भी
क्षमा किया जाय! दोनो अलग-अलग हैं। अभी थोड़ी देर पहले फ़ालसे के शर्बत की बात हो रही थी ...लिखते समय भी मन में फ़ालसा ही बना रहा ...त्रुटि का सुधार किया गया है। ध्यानाकर्षण के लिये आभारी हूँ। धन्यवाद।
ये परिवार शायद बंजारे जाति के हैं.. पर यहाँ मुंबई में तो गाँव में अच्छा खासा घर पीछे छोड़कर बंजारों की तरह रहने को मजबूर हो जाते हैं हर जाति के लोग. और ऐसे में इन देश के नेताओं पर बहुत क्रोध आता है...अगर गाँवों का विकास किया गया होता तो यूँ लोग बड़े शहरों में पलायन नहीं करते और सडकों पर रहने को मजबूर नहीं होते.
मुम्बई का आकर्षण कुछ अलग ही है ....यहाँ तो रहने के लिये कोई भी ख़ुशी-ख़ुशी बंजारा बन जाना चाहेगा..... परिहास किया मैने। ...सच कहा आपने, सरकार की मेहरबानी के कारण ही तो दुनिया के सबसे बड़े स्लम धारावी का जन्म हुआ है। वैसे देखा जाय तो मुम्बई की लगभग पूरी आबादी के लोग अपने फ़्लैट होते हुये भी रात को सोने के अलावा शेष पूरे दिन तो बंजारे जैसे ही रहते हैं न!बोरीवली स्टेशन पर लोग पाव-भाजी खाते हुये...भागते-भागते ट्रेन में चढ़ते-उतरते नज़रआते हैं! ...इस सबके बाद भी मुम्बई मेरी पहली पसन्द है:))
बंजारे सी ज़िन्दगी - मुझे हमेशा इसका आकर्षण रहा है , धरती बिछौना, आकाश सुरक्षा , प्रकृति का साहचर्य - सूरज की पहली किरणें , विहग जीवन .... कम से कम पता तो है कि आज यहाँ कल वहाँ होना है
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.
सच है बंजारों का जीवन देख लालच बड़ा आता है...मगर और भी लालसाएं जो पलती हैं मन में........बस बेडियाँ डल जातीं हैं...
जवाब देंहटाएंशहतूत ही फालसा है....पता नहीं था!!!!!!
अच्छी फोटोग्राफी....
आभार....
क्षमा किया जाय! दोनो अलग-अलग हैं। अभी थोड़ी देर पहले फ़ालसे के शर्बत की बात हो रही थी ...लिखते समय भी मन में फ़ालसा ही बना रहा ...त्रुटि का सुधार किया गया है। ध्यानाकर्षण के लिये आभारी हूँ। धन्यवाद।
हटाएंये परिवार शायद बंजारे जाति के हैं..
जवाब देंहटाएंपर यहाँ मुंबई में तो गाँव में अच्छा खासा घर पीछे छोड़कर बंजारों की तरह रहने को मजबूर हो जाते हैं हर जाति के लोग.
और ऐसे में इन देश के नेताओं पर बहुत क्रोध आता है...अगर गाँवों का विकास किया गया होता तो यूँ लोग बड़े शहरों में पलायन नहीं करते और सडकों पर रहने को मजबूर नहीं होते.
मुम्बई का आकर्षण कुछ अलग ही है ....यहाँ तो रहने के लिये कोई भी ख़ुशी-ख़ुशी बंजारा बन जाना चाहेगा.....
हटाएंपरिहास किया मैने। ...सच कहा आपने, सरकार की मेहरबानी के कारण ही तो दुनिया के सबसे बड़े स्लम धारावी का जन्म हुआ है।
वैसे देखा जाय तो मुम्बई की लगभग पूरी आबादी के लोग अपने फ़्लैट होते हुये भी रात को सोने के अलावा शेष पूरे दिन तो बंजारे जैसे ही रहते हैं न!बोरीवली स्टेशन पर लोग पाव-भाजी खाते हुये...भागते-भागते ट्रेन में चढ़ते-उतरते नज़रआते हैं!
...इस सबके बाद भी मुम्बई मेरी पहली पसन्द है:))
बंजारे सी ज़िन्दगी - मुझे हमेशा इसका आकर्षण रहा है , धरती बिछौना, आकाश सुरक्षा , प्रकृति का साहचर्य - सूरज की पहली किरणें , विहग जीवन .... कम से कम पता तो है कि आज यहाँ कल वहाँ होना है
जवाब देंहटाएंबंजारा जीवन का मुझे भी आकर्षण रहा है ...यूँ इस जीवन की मुश्किलें भी कुछ कम नहीं ...फिर भी ये तो मन का आकर्षण है!
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन हकीकत वयां करते चित्र
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
बोलते हुए चित्र ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर