इंदरसिंह नामधारी के साले साहब चर्चा में हैं, क्यों न हों, उनकी सालाना आय २३८ करोड़ रुपये जो है। वे इससे मंदिर बनवाना चाहते हैं ताकि उनके बाद भी उनकी आत्मा मंदिर में विराजमान रहे और लोगों पर कृपा बरसाती रहे। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि केवल एक साल की कमाई से मंदिर बनेगा या पूरी ज़िंदगी की कमाई से, और केवल एक मंदिर बनेगा या पूरे देश में बहुत सारे? ( एक बात यह भी ध्यातव्य है कि भारतीय आर्ष परम्परा में लोगों ने अपने नाम को अमर करने के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किये, आज तो लोग मरने के बाद अपनी मूर्ति भी मंदिर में रखकर पुजवाना चाहते हैं। ईश्वर बनने के लिए कितना लालायित है मनुष्य !.....निर्लज्जता की सीमा तक )
निर्मल बाबा अपनी कृपा बरसाने वाले टी.वी. कार्यक्रमों के विज्ञापनों द्वारा प्रचार करते हैं, कृपा बरसाने के लिए प्रति व्यक्ति दो हज़ार रुपये प्रवेश शुल्क लेते हैं जिसका वे आयकर भी चुकाते हैं, और कृपा बरस जाने के बाद सम्बंधित की आय का दस प्रतिशत दान भी प्राप्त करते हैं।
निर्मल बाबा बड़े ही सहज तरीके से कृपा बरसाते हैं जैसे कि चटनी, समोसा, ब्रेड, काला पर्स, कुत्ते की टेढ़ी पूंछ, केला, अंडा आदि के माध्यम से। लोगों को ये सहज तरीके बड़े ही लुभावने लगते हैं। एक पढीलिखी महिला ने तर्क दिया, कहा कि यज्ञ और मन्त्र के पाखण्ड की अपेक्षा ये तरीके पाखण्ड रहित और निश्चयात्मक रूप से लाभकारी हैं।
पूरे देश के लोग उनके समागमों में आते हैं, अधिकाँश लोग पहले से ही कृपा पाए हुए होते हैं, वे सिर्फ इस कृपा के कांटीन्यूशन की विनती करने आते हैं। कई लोग भावुक होकर रोने लगते हैं, कइयों के गले अश्रु से अवरुद्ध हो जाते हैं, क्योंकि केवल और केवल बाबा की कृपा के कारण उनकी बेटी की शादी हो जाती है या उनका प्रमोशन हो जाता है, या उनका लड़का अच्छे नंबरों से परीक्षा में पास हो जाता है, या नौकरी मिल जाती है , या उनका व्यापार अच्छी कमाई देने लगता है........। दैनिक जीवन के कई कार्य जो पुरुषार्थ की अपेक्षा करते हैं बिना पुरुषार्थ किये ही मात्र बाबा की कृपा से सम्पन्न हो जाते हैं। बाबा अन्तर्यामी हैं और चमत्कार के द्वारा कृपा बरसा देने की विशेषज्ञता से लबालब हैं -ऐसा दृढ विश्वास बाबा के भक्तों को है। दूसरे शब्दों में कहें तो बाबा ईश्वर के अवतार हैं जो केवल अपने भक्तों पर ही कृपा बरसाते हैं। देश के भ्रष्टाचार, घोटालों, बलात्कारों, बिकती हुई न्याय व्यवस्था, घूसखोरी आदि पापों से निरपेक्ष बाबा की कृपा सभी पर बरसती रहती है क्योंकि बाबा समदर्शी हैं। ईश्वर को समदर्शी होना ही चाहिए।
कुछ लोगों को आपत्ति है कि ऐसे बाबा धर्म के मार्ग को विकृत कर रहे हैं और अपरिपक्व बुद्धि के लोगों का भावनात्मक शोषण करके उन्हें ठग रहे हैं। वे केवल आर्थिक समृद्धि की बात करते हैं। निर्मल बाबा मन को निर्मल करने के लिए कोई साधना मार्ग नहीं बताते। साधना मार्ग अति कठिन जो हैं, कठिनता कब किसे भाई है?
मुझसे पूछा जाय तो मैं निर्मल बाबा को न तो अवतार मानता हूँ, न कोई चमत्कारी। वे एक चालाक व्यक्ति हैं, जिसे बिना काम किये नाम चाहिए और दाम भी। उनकी अतिमहत्वाकांक्षा को भारत की अकर्मण्य और चमत्कारप्रिय जनता की भौतिक लोलुपता ने उर्वर भूमि उपलब्ध करा दी है...और निर्मल सिंह नरूला का यह चमत्कार का व्यापार चल निकला है।
अब इस पूरे व्यापार को लेकर चर्चा हो रही है बाज़ार में। इसका तात्कालिक प्रभाव तो यह पडा है कि तीसरी आँख की शक्ति प्राप्त निर्मल सिंह नरूला की आय में भारी गिरावट आ गयी है और उनके अवतारत्व पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। पर उनके समर्थक हतोत्साहित नहीं हैं, बाबा के भक्त उन्हें अवतार सिद्ध करके ही मानेंगे, दुनिया की कोई ताकत उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं सकेगी। भ्रष्ट तरीकों से अर्जित संपत्ति के ज़खीरे हैं भारत में जो किसी को भी अवतार सिद्ध कर देने में समर्थ हैं।
मुझे किसी डाकू की अपेक्षा उन स्वेच्छया लुट जाने वाले तर्कशून्य लोगों की बुद्धि पर तरस आता है जिनमें कई लोग उच्चशिक्षित और उच्च पदाधिकारी भी हैं। भौतिक उपलब्धियों के लिए पुरुषार्थ करने की अपेक्षा चमत्कार चाहने वाले ये अकर्मण्य लोग कितने धार्मिक हो सकते हैं यह देश के शेष समाज को तय करना है। जी हाँ! तय करना ही होगा...समाज की हर हलचल समाज की दिशा तय करती है, समाज का मानसिक स्वास्थ्य तय करती है, समाज का भविष्य तय करती है और उस समाज की सभ्यता को इंगित करती है। बाबा की कृपा की वारिश चाहने वाले किसी भी व्यक्ति ने देश से भ्रष्टाचार की समाप्ति की ऐषणा नहीं की अभी तक, किसी घोटालेवाज को दंड दिए जाने की चाहना नहीं की, ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने की चाहना नहीं की .......हर किसी को केवल और केवल अपने स्वार्थ की चाहना है। यह कैसा आध्यात्म है जो केवल पैसे की बात करता है? यह कैसा धर्म है जो किसी शोषण की बात नहीं करता? यह कैसा समागम है जिसमें किसी भी बात का कोई तर्क ढूंढें भी नहीं मिल पाता? ये कैसे उच्च शिक्षित भक्त हैं जो आस्था के नाम पर विज्ञान के तत्वों को सिरे से खारिज कर देते हैं?
मैं निर्मल बाबा के तौर तरीकों से बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ इसलिए इस पूरे व्यापार की कटु निंदा करता हूँ। इस निंदा के लिए मैं चमत्कारी निर्मल बाबा से मुझे कठोर श्राप देने के लिए अनुरोध भी करता हूँ। निर्मल जी! अपनी तीसरी आँख खोलिए, छठी इन्द्रिय को जागृत करिए और मुझे अपनी निंदा के लिए श्राप दीजिये।
आखिर आप से भी रहा नहीं गया। पड़ ही गये निर्मल बाबा के पीछे। पड़ गये तो हाथ धो के पीछे पड़िये। आधे अधूरे मे मजा नहीं आया। बाबा कैसे का करते हैं यह तो सभी को पता हो गया है। सिर्फ निंदा करने से काम नहीं चलेगा। अब ई उपाय बताइये कि ई चालाक व्यक्ति की नंगाझोरी कैसे हो ?
जवाब देंहटाएंनंगाझोरी कइसे होई हो पांडे जी! जब तक तर्कशून्य शिक्षितगण के बहुलता रही समाज में तब तक कुच्छो ना हो सकी, हम आप केतना हू मूड़ी पटकीं। नरूला के भक्तन मं केमिस्ट्री आ फ़िजिक्स के पोरफ़ेसरो बाड़ेन,इंजीनियरो बाड़ेन। का पता डॉक्टरो होइहन .....उनकरा से कइसन निपटल जाई?
जवाब देंहटाएंसाधु-साधु आभार है, लेखक बारम्बार ।
जवाब देंहटाएंढोंगी बाबा के मिटें, ये बिजनेस दरबार ।
http://dcgpthravikar.blogspot.in/2012/04/blog-post_15.html
ऐसे आस्था-चोर बाबाओं की आपकी यह निंदा यथार्थ चिंतन पर आधारित है।
जवाब देंहटाएंअन्यथा लोग इस निर्मल के बहाने हिन्दु व्यवस्था पर आक्रमण करने को उद्धत है, इसी बहाने ईश्वर को शुद्ध धर्म को कटघरे में खड़ा कर अपनी कुटिल और मलीन विचारधारा का आरोपण करने की मंशा से नये दौर सुधारक उबल बाहर आ जाते है।
कुछ लोग और घटनाएँ सिर्फ इग्नोर करने के लिए होती हैं.. न ज़िन्दगी कोई फेसबुक है, न ये घटनाएँ कोई स्टेटस कि लाइक करना ही हो.. इग्नोर भी तो कर सकते हैं!! सोये को जगाया जा सकता है, मूर्छित को होश में लाया जा सकता है.. लेकिन अंध आस्था की अफीम के नशे में धुत्त व्यक्ति को जब नाली में गिरे तभी होश आता है!!
जवाब देंहटाएंहमारी बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार कीजिए.
जवाब देंहटाएंbaba........suchhhhhh a grattt..post.......aur merii ik aunty ji..to inki itnii pakki bhakt hain....ki pure sector ko inkeeeeeee piche lgwana chahii hain..........grtttt post baba
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