मंगलवार, 27 नवंबर 2012

काश! मुझे भी ईश्वर नें बनाया होता

तो मौत के बाद कोई ठिकाना तो मिला होता। 

 

यूँ न इतराओ अपनी ख़ूबसूरती पे

कसम से ....कभी हमारे भी जलवे हुआ करते थे 

 

आकाश भी हमारा न रहा

यहाँ भी बिछा दिया सामान .....हमारी मौत का 

 

सल्फ़ी ने बाँध लिये ......सिर पे फिर सेहरे

 

सिर रहे न रहे पर झुकेंगे नहीं। दम हो तो झुका के दिखाये कोई।

 

कट गया धान ...अब हमारी बारी।

 

एइलेंथस एक्सेल्सा ...ज्वरनाशक है स्टेम बार्क का जूस।

 

2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.