सोमवार, 7 जनवरी 2013

यौनअपराध पर नियंत्रण हेतु पुलिस की विवेचना एवं दण्ड प्रावधान में परिवर्तन हेतु सुझाव।


प्रिय बन्धुओ!  जस्टिस वर्मा समिति को लिखे गये पत्र की प्रति आप सभी लोगो के विचारार्थ सादर प्रस्तुत है। हम चाह्ते हैं कि इस तरह के पत्र हम लोग माननीय राष्ट्रपति महोदय को भी प्रेषित करें।
 
16 दिसम्बर 2012 को भारत की राजधानी की सड़कों पर चलती बस में कुछ लोगों द्वारा एक लड़की के साथ किये गये यौनदुष्कृत्य की नृशंस घटना और उसके बाद लड़की की क्रूर हत्या ने न केवल पूरे देश की संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया है अपितु भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। इस घटना से पूरे विश्व में यह संदेश पहुँचा कि भारत में स्त्रियों के सम्मान, उनकी यौन निजता और प्राणों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं है।
यौनदुष्कृत्य मनुष्य समाज का क्रूरतम और घृणित अपराध है अतः इसके लिये पृथक से कठोरदण्डविधान किया जाना इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिये आवश्यक है। इस विषय में हमारा विनम्र अनुरोध है कि पीड़ित को न्याय दिलाने के लिये घटना की पुलिस विवेचना एवं दण्डविधान में आवश्यक परिवर्तन करते समय निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देने की कृपा करें-
(अ)  घटना की विवेचना के सन्दर्भ में आवश्यक सुझाव -
1-      थाने में पीड़िता की प्राथिमिकी तत्काल अंकित की जाकर अविलम्ब ही दक्ष पुलिस अधिकारियों द्वारा घटना की विवेचना कराये जाने को अनिवार्य किया जाय, तथा प्राथिमिकी अंकित करने में उपेक्षा करने वाले पुलिस कर्मचारियों पर यौन दुष्कृत्य को छिपाने में सहयोग करने एवं आरोपियों को संरक्षण देने का वाद आरोपित कर उनके विरुद्ध भी न्यायिक एवं अनुशासनिक कार्यवाही की जाय।
2-      प्राथमिकी का अंकन निजता की रक्षा करते हुये पीड़िता/ उसके अभिभावक के ही शब्दों में एवं भाषा में किया जाय तथा अंकन के पश्चात पीड़िता और उसके स्वजनों को लगायी गयी धाराओं की जानकारी अर्थ सहित दी जाय। ऐसा वातावरण निर्मित किया जाना चाहिये जिसमें पीड़िता भयमुक्त हो कर सम्मानजनक तरीके से स्पष्ट शब्दों में घटना का विवरण बता सके। 
3-      महिला पुलिस अधिकारियों को यौनदुष्कर्म की घटना की विवेचना के लिये फ़ोरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा विशेष प्रशिक्षण दिलाया जाय जिससे विवेचना में कोई तकनीकी बिन्दु उपेक्षित न रह जाय।  
4-      यौनदुष्कृत्य के मामले में जैविक साक्ष्यों के संग्रहण में तत्परता दिखाते हुये फ़ोरेंसिक विशेषज्ञ की सेवायें अनिवार्य रूप से ली जाएं क्योंकि सही एवं पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में वाद शिथिल हो जाता है जिसका लाभ अपराधी को मिल जाता है।
5-      ऐसे उपयुक्त एवं भयमुक्त वातावरण का निर्माण किया जाना सुनिश्चित किया जाय जिससे यौनदुष्कर्म की प्राथमिकी अंकित कराने के लिये लोग खुल कर सामने आ सकें।  
 
(ब) यौनदुष्कर्मी हेतु दण्डप्रावधान के सन्दर्भ में आवश्यक सुझाव -
1-      यौनदुष्कृत्य के अपराधी के लिये वयस्क और अवयस्क की सीमा रेखा समाप्त की जाय। मतदान के लिये वयस्कता और यौनदुष्कृत्य के लिये वयस्कता का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है; क्योंकि मतदान हेतु बुद्धि की निर्णयक्षमता का विकास अपेक्षित होता है जबकि यौनदुष्कृत्य में शारीरिक क्षमता की भूमिका होती है। अतः यौनदुष्कृत्य के अपराधी को अवयस्कता की किसी भी शिथिलता से मुक्त रखा जाना चाहिये। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिये कि अपराधी की यौनदुष्कृत्य की घटना विशेष में सहभागिता एवं क्रूरता की कोटि क्या और कितनी है। दामिनी प्रकरण में सर्वाधिक क्रूर एवं नृशंस कृत्य उसी तथाकथित आरोपी का है जिसे अवयस्क बताया जा रहा है। यौनदुष्कृत्य एवं हिंसा के मामलों में किसी आरोपी के अवयस्क होने से घटना की न तो क्रूरता कम होती है और न पीड़िता की पीड़ा कम होती है। ऐसी घटनायें पूरी चेतना के साथ की जाती हैं अतः यह नहीं कहा जा सकता कि अवयस्क आरोपी अपने विवेक का प्रयोग करने में अपनी अवयस्कता के कारण सक्षम नहीं था और वह दुष्कृत्य के अन्य पक्षों से अनभिज्ञ था। किसी कुशाग्र बुद्धि अवयस्क को उसकी विशेष बौद्धिक क्षमता के कारण उम्र सीमा में शिथिलता प्रदान करते हुये विश्वविद्यालय के स्नातक एवं परास्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया जाना विवेक सम्मत है उसी तरह दुष्कृत्य के मामले में भी अवयस्क को उम्र सीमा में शिथिलता देते हुये उसे किसी वयस्क जैसा ही माना जाना विवेकसम्मत है।
2-      यौनदुष्कृत्य के अपराधी को ऐसा दण्ड दिया जाना चाहिये जिससे अन्य लोगों में ऐसे कृत्य के प्रति भय उत्पन्न हो और वे हतोत्साहित हों। दण्ड का अभिप्राय यह सन्देश देना है कि घटना की पुनरावृत्ति न हो साथ ही समाज में एक सुधारात्मक प्रक्रिया विकसित हो। 
3-      अपराधी को अपनी स्वाभाविक मृत्य तक के लिये सश्रम कठोर कारावास हो साथ ही उसका शल्य कर्म द्वारा ही पुंसत्व समाप्त किया जाय। रासायनिक चिकित्सा द्वारा पुंसत्वनाश कुछ समय पश्चात पूर्ववत हो जाने से तथा मनोविकार उत्पन्न करने के कारण उपयुक्त पद्ध्यति नहीं है।
4-      दण्डविधान का दुरुपयोग न हो इसलिये वाद मिथ्या पाये जाने पर यही दण्ड वादी के लिये भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
5-      यौनदुष्कृत्य पीड़िता की शिक्षा एवं पुनर्वास की व्यवस्था सम्मानजनक तरीके से की जाय जिसके लिये पृथक से केन्द्र शासन के अधीन एक विभाग सृजित किया जाय और उसका विस्तार प्रत्येक राज्य एवं केन्द्रशासित राज्य में हो। 
6-      ऐसे अपराधियों के हिस्से की सम्पत्ति राजसात की जाकर कुर्क की जाय।   
(ब) यौनदुष्कर्म की घटनाओं को रोकने के सन्दर्भ में आवश्यक सुझाव
1- प्रत्येक राज्य में विशेषज्ञों का एक विशेष प्रकोष्ठ बनाया जाय जो प्रत्येक घटना के विभिन्न पक्षों पर शोधपूर्ण अध्ययन कर अपने सुझाव प्रस्तुत कर सके। अपराधी की शैक्षणिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक आदि स्थितियों का गम्भीर अध्ययन करते हुये घटना के कारकों एवं उत्प्रेरक घटकों का विवरण प्रस्तुत किया जाना चाहिये जिससे पुनरावृत्ति को रोकने एवं सामाजिक सुधार की प्रक्रिया को विकसित करने जैसे रचनात्मक उपाय किये जा सकें।  
हम आशा करते हैं कि महोदय उपरोक्त बिन्दुओं पर ध्यान दे कर मानवसभ्यता को कलंकित करने वाले यौनदुष्कृत्य के अपराधियों के लिये युक्तियुक्त विवेचना एवं दण्डविधान का प्रावधान करने की कृपा करेंगे।



11 टिप्‍पणियां:

  1. जस्टिस वर्मा जी के पास यदि इस जैसे विचार न हों .... तो जरूर आपके इन सभी विचारों को अपना मानेंगे। आपके सभी सुझावों को अमलीजामा पहनाने की जल्द ही जरूरत है अन्यथा ये क्रम रुकने वाला नहीं।
    रॉबर्ट वाड्रा ने ऐसे ही अपराधों से अपराधी के आसानी से छूट जाने के कारण ही भारत को 'बनाना रिपब्लिक' कह दिया था।
    जब तक क़ानून लचीले होंगे और न्यायप्रक्रिया बहुत लम्बी होगी तब तक अपराधियों के हौसले बुलंद रहेंगे।

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    1. कमेटी की सिफ़ारिशों को मानने के लिये सरकार बाध्य नहीं है। ऐसे में यह एक छलावा भी हो सकता है। इसीलिये मैंने कहा कि हमें इसके लिये अभियान शुरू करना होगा।

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  2. डॉक्टर साहब!! न्यूनाधिक यही विचार मैं इस घटना और इसके पूर्व में हुई अन्यान्य घटनाओं के सन्दर्भ में व्यक्त करता रहा हूँ!! आपने जिस प्रकार व्यवस्थित रूप में इसे प्रस्तुत किया है, काश "उनके" कानों में रूई न भरी हो!! और वो भी इतनी ही संवेदनशीलता से इसकी आवश्यकता अनुभव करें!!

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    1. देश के संवेदनशील लोगों को सरकार पर दबाव बनाना होगा। हम ऐसा ही एक पत्र माननीय राष्ट्रपति महोदय को भी प्रेषित करेंगे। यह एक अभियान है जिसमें आप सबकी सहभागिता प्रार्थनीय है।

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  3. आपके सभी सुझाओं से मैं सहमत हूँ .मैंने भी कुछ सुझाव जस्टिस वर्मा कमिटी को भेजा है इसे आप http://vicharanubhuti.blogspot.in "कानून का प्रावधान क्या हो " देख सकते है.

    New post: अहँकार

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  4. (ब) यौनदुष्कर्मी हेतु दण्डप्रावधान के सन्दर्भ में आवश्यक सुझाव -
    1-3- अपराधी को अपनी स्वाभाविक मृत्य तक के लिये सश्रम कठोर कारावास हो साथ ही उसका शल्य कर्म द्वारा ही पुंसत्व समाप्त किया जाय। रासायनिक चिकित्सा द्वारा पुंसत्वनाश कुछ समय पश्चात पूर्ववत हो जाने से तथा मनोविकार उत्पन्न करने के कारण उपयुक्त पद्ध्यति नहीं है। यौनदुष्कृत्य के अपराधी के लिये वयस्क और अवयस्क की सीमा रेखा समाप्त की जाय। मतदान के लिये वयस्कता और यौनदुष्कृत्य के लिये वयस्कता का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है; क्योंकि मतदान हेतु बुद्धि की निर्णयक्षमता का विकास अपेक्षित होता है जबकि यौनदुष्कृत्य में शारीरिक क्षमता की भूमिका होती है। अतः यौनदुष्कृत्य के अपराधी को अवयस्कता की किसी भी शिथिलता से मुक्त रखा जाना चाहिये। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिये कि अपराधी की यौनदुष्कृत्य की घटना विशेष में सहभागिता एवं क्रूरता की कोटि क्या और कितनी है। दामिनी प्रकरण में सर्वाधिक क्रूर एवं नृशंस कृत्य उसी तथाकथित आरोपी का है जिसे अवयस्क बताया जा रहा है। यौनदुष्कृत्य एवं हिंसा के मामलों में किसी आरोपी के अवयस्क होने से घटना की न तो क्रूरता कम होती है और न पीड़िता की पीड़ा कम होती है। ऐसी घटनायें पूरी चेतना के साथ की जाती हैं अतः यह नहीं कहा जा सकता कि अवयस्क आरोपी अपने विवेक का प्रयोग करने में अपनी अवयस्कता के कारण सक्षम नहीं था और वह दुष्कृत्य के अन्य पक्षों से अनभिज्ञ था। किसी कुशाग्र बुद्धि अवयस्क को उसकी विशेष बौद्धिक क्षमता के कारण उम्र सीमा में शिथिलता प्रदान करते हुये विश्वविद्यालय के स्नातक एवं परास्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया जाना विवेक सम्मत है उसी तरह दुष्कृत्य के मामले में भी अवयस्क को उम्र सीमा में शिथिलता देते हुये उसे किसी वयस्क जैसा ही माना जाना विवेकसम्मत है।

    3- अपराधी को अपनी स्वाभाविक मृत्य तक के लिये सश्रम कठोर कारावास हो साथ ही उसका शल्य कर्म द्वारा ही पुंसत्व समाप्त किया जाय। रासायनिक चिकित्सा द्वारा पुंसत्वनाश कुछ समय पश्चात पूर्ववत हो जाने से तथा मनोविकार उत्पन्न करने के कारण उपयुक्त पद्ध्यति नहीं है।
    बढ़िया .
    .

    सहमत आपके अमूल्य सुझावों से .

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  5. उत्तर
    1. जस्टिस वर्मा समिति की सिफ़ारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं। हो सकता है कि यह भी सरकार का एक छल हो। हम इससे बहुत आशान्वित नहीं हैं तथापि हमें प्रयास करते रहना चाहिये। हम ऐसा ही एक पत्र राष्ट्रपति महोदय को भी लिख रहे हैं। आप लोग भी अपने-अपने स्तर से प्रयास करते रहिये।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.