शनिवार, 27 दिसंबर 2014

औरत


स्त्री
पश्चिम में
स्वच्छन्द भोग की सामग्री हुयी ।
मध्यपूर्व में
युद्ध की विजित वस्तु होकर यौनदासी हुयी ।
कभी वह धर्म से अनुशासित हुयी
तो कभी फ़तवों से त्रस्त हुयी ।
पुरुष के समान
अधिकारों को पाने के लिये
संघर्ष करती नारी
कभी पुरुष की क्रूर हिंसा का शिकार हुयी
तो कभी आधुनिक होते-होते
“तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त” के छलावे में फसकर
‘विश्वसुन्दरी’
और
‘सबसे सेक्सी स्त्री’ की
कामुक उपाधियों से प्रसन्न होती हुयी
अंततः
“चीज” की मनोवृत्ति से
उबर नहीं पा रही है ।
आत्मनिर्भरता,
स्वाभिमान,
स्त्रीशक्ति,
समानाधिकार जैसे शब्द चीखते रहते हैं ....
संघर्ष चलता रहता है
और असुरक्षित स्त्री
ढेरों आश्वासनों के बाद भी
यौनहिंसा की शिकार होती रहती है ।
आधुनिकता,
विकास,
समानता,
अहिंसा और न्याय जैसे शब्द
अनैतिकता के घुन से खोखले हो चुके हैं ।
स्त्री की तलाश

अभी भी जारी है ...  

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