सुबह-सुबह, कोहरे में लिपटा सोनपुर जब जगने की तैयारी में था ठीक तभी कोहरे को चीरती हुयी हमारी ट्रेन सोनपुर पहुँची । बाहर आकर हमने पहलेजा के लिये ऑटो रिक्शा लिया और चल पड़े ।
पहलेजा पहुँचकर लगा किसी नये स्थान पर आ गये हैं । पहलेजाघाट रेलवे स्टेशन के स्थान पर अब एक बस्ती थी । सामने श्री गंगाजी के दर्शन न हुये होते तो विश्वास नहीं हो पाता कि हम पहलेजा में हैं ।
कोहरा अभी भी था । सूरज आज अंगड़ाई तक लेने के मूड में नहीं लग रहा था । हो सकता है कि बस्ती के लोगों को हाज़त रफ़ा करने के लिये गंगाजी के किनारे लोटा लेकर जाते हुये देखने से बचने के लिये सूरज ने कोहरे की चादर ओढ़ रखी हो ।
अंततः सूरज को बाहर आना ही पड़ा, अलसाये से सूरज ने मुझे
देखा तो बोल पड़ा –"अरे ! कहाँ रहे अब तक ?"
उत्तर में मैं केवल मुस्कराया भर ।
शीत कितनी भी हो, गंगास्नान करने वाले ब्राह्ममुहूर्त में ही पहुँच जाते हैं ।
कोहरे से भीगी ठंडी रेत और गंगाजी के भक्त ....
मुखारी करने सूरज भी पहुँच ही गया ....
मुखारी के बाद गंगाजी के जलदर्पण में अपना मुखड़ा देखता सूरज
गंगास्नान के बाद भी मेरी आँखें रेल की पटरियों और प्लेटफ़ॉर्म को खोजती रहीं । लेकिन बस्ती उसे न जाने कब का निगल चुकी थी ।
अंततः एक झोपड़ी के पीछे मिल ही गया रेलवे स्टेशन का एक भरापूरा प्रमाण ....पानी की टंकी
और ये रहा वह प्लेटफ़ॉर्म ...जहाँ अब सड़क है ।
गाँव ने शहर के कपड़े पहन लिये हैं ...लेकिन गाँव की ख़ुश्बू अभी भी बाकी है
ठण्ड में अपने-अपने स्वीटर पहने सुबह का पहला नाश्ता करते गाय-गोरू
और लीजिये .....हम आ गये मेले में ...
मेले की एक दीवार पर चित्रकारी
कभी यह मेला पशुओं के लिये प्रसिद्ध था, आज काम करने वाले पशुओं का स्थान मशीनों ने ले लिया है और दूध का स्थान नकली दूध ने ...इसलिये मेले में भरमार है मनुष्य नामक प्राणी की जो आजकल अक्सर बद से बदतर हो जाया करता है ।
मेला स्थल के पास ही गज-ग्राह की कथा को चित्रित करता यह शिल्प । इस कथा के कारण ही इस स्थान का नाम पड़ा हरिहर क्षेत्र ।
मेले में मिठाइयाँ और पिज्जा ही नहीं सत्तू भी है और लिट्टी-चोखा भी । बिहार आज भी कई प्रकार के सत्तुओं के लिये प्रसिद्ध है । भई हमारा तो मानना है कि बिहार में जब तक सत्तू और लिट्टी-चोखा है तब तक बिहार की ख़ुश्बू बरकरार है । यूँ भी डायबिटीज़ के रोगियों के लिये सत्तू से उत्तम आहार और क्या है !
हरिहर क्षेत्र में गंगा जी का तट
गंगा जी का जल निर्मल है यहाँ ..
मेले के बाहर रस्सी पर चलती नन्हीं सी जान
सोनपुर मेले के डांस थिएटर अक्सर सुर्खियों में रहते हैं ।
मेले में पशुविभाग की एक प्रदर्शिनी । सामने मंच पर पॉवर प्रज़ेंटेशन की तैयारी में व्यस्त हैं डॉ. महेश जी
मेले में मिल गये पंतनगर से ग्रेज़ुएट पशुचिकित्सक डॉ. महेश जी
..और हाँ, तीसरी कसम की याद दिलाती ये लाठियाँ आज भी हैं ।
घूम लिया मेला ...चलो अब चलें घर ...
तोता सचमुच चिंतित है मनुष्य के भविष्य को लेकर ..
bahut rochak aalekh.....chitr bhi shaandar..
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