शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

कौवों के कुनबे

नदी पियासी तड़प रही है सूरज हुआ उदास
कर धान के वादे मरुथल से, है मेघों में उल्लास ॥

आग जलाने नदी निचोड़ी
बालू में से तेल
अँधियारों ने डाल दिया 
किरणों को फिर से जेल ।
शोधपत्र ले चोर हैं बैठे सिर पर धारे ताज 
हाथ भेड़ियों के तलवारें भेड़ें हुयीं उदास ॥

जौहरियों को काम मिला  
देने फूलों को पानी
स्वर्ण हार बनाने बैठे
हैं बगिया के माली ।
बाबा जी की कुटिया जैसे राजा का प्रासाद
रम्भा घिरी भीड़ से कोई ना सीता के पास ॥

ठग्गू-भग्गू के है ज़िम्मे
देना सबको उपदेश
धोबी करे किसानी, हो गये
पंडित जी रंगरेज ।
क़ातिल को मिल गयी सुरक्षा मृतकों को कुछ लाख

है कौवों के कुनबों में रौनक, हैं हंस बिचारे दास ॥     

बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

The cosmic dance of matter and energy…


बहुरूपिया ब्रह्म कई रूपों में प्रकट होते ही नृत्य करने लगा, जैसे कृष्ण नाच रहे हों... हर गोपी के साथ, एक ही समय में । विभिन्न शैलियों में... विभिन्न मुद्राओं में... किंतु एक सुनिश्चित् अनुशासन में ब्रह्म के सभी रूप नृत्य में अहर्निश लीन हैं । कोई स्पिन कर रहा है, कोई एण्टीस्पिन, कोई हाफ़ स्पिन, कोई ओस्सीलेशन के ठुमकों में ही मस्त है तो कुछ को स्केटरिंग पसन्द है । कोई वर्टिकल नाच रहा है तो कोई होरिज़ेण्टल... अद्भुत् है यह नृत्य ।
परमाणु के भीतर अद्भुत् नृत्य चल रहा है । आकाशगंगाओं में वृहदाकार पिण्डों में नृत्य चल रहा है । नृत्य उनके भीतर भी है और उनके बाहर भी । सब अपने-अपने ऑर्बिट में नाच रहे हैं... कोई क्लॉक वाइज़ तो कोई एण्टीक्लॉक वाइज़ । यहाँ मैटर है, एण्टीमैटर है... सब अपने-अपने जोड़ों में, बिना जोड़ीदार के कोई भी इस नृत्य में भाग नहीं ले सकता । यहाँ अप है... यहाँ डाउन है, यहाँ पॉज़िटिव है... यहाँ निगेटिव है । सबकी युति है, अद्वैत ब्रह्म द्वैत रूप में प्रकट हुआ है ।
यहाँ प्रकाश देने वाले सूर्य हैं और अदम्य भूख से पीड़ित ब्लैक होल्स भी... जो सब कुछ निगल जाने के लिये तैयार बैठे हैं । यहाँ फ़ोटोंस हैं जो श्रृंग और गर्त बनाते हुये ऊर्ध्वाधर नृत्य करते हुये यात्रा कर रहे हैं । वे श्रृंग और गर्त की स्थितियों में भी एक संतुलन बनाये हुये हैं । और एक हम हैं जो सुख और दुःख में संतुलन नहीं बना पाते ।  

अव्यक्त से व्यक्त होने की प्रक्रिया में एक स्थिति है तन्मात्रा । तद् मात्रा, उसकी... ब्रह्म की मात्रा, अव्यक्त के गुणों की मात्रा । वैशेषिक दर्शन में पञ्चतन्मात्राओं का उल्लेख किया गया है । यह शब्द दुरूह है तो आप पेण्टाक्वार्क्स का चिंतन कर सकते हैं । एण्टी मैटर और पैरालल वर्ल्ड का सत्य हमें द्वैत के रहस्य के समीप ले जाता है । पॉज़िटिव और निगेटिव, तमस और प्रकाश, स्पिन और एण्टीस्पिन... यह श्रृंखला कभी समाप्त ही नहीं होती... नेति नेति ब्रह्माण्ड...
आकाश गंगाओं की संरचना से लेकर सौर्यमण्डलों और परमाणुओं... अंतरपरमाणुओं की संरचना तक के पैटर्न में कितनी अद्भुत् समानता है ! पुरुषोऽयं लोक संमितः... 
प्रकाश को प्रकट होना होता है, अंधकार को प्रकट होने की आवश्यकता नहीं.. वह तो विद्यमान है सर्वत्र । दोनों का संघर्ष इसीलिये है... दोनों अपना-अपना वर्चस्व बनाये रखना चाहते हैं । जगत् के लिये इनर्शिया भी उतनी ही आवश्यक है जितनी कि गति । हम इनर्शिया या गति में से किसी एक को चुन लेते हैं अपने लिये... दोनों के परिणाम भिन्न-भिन्न हैं इसलिये चुनने वाले को उनके भोग के लिये भी तैयार रहना चाहिये । 




Inside the small nutrino 


रविवार, 2 अक्टूबर 2016

ब्रह्म की आशिकी...


रति वर्जना नहीं, अनिवार्य है सृजन के लिये । रतिक्रीड़ा से कोई विरत नहीं, यह जितना अद्भुत् है उतना ही अपरिहार्य भी । जब प्रथम् बार यदृच्छा का स्पन्दन हुआ तो ब्रह्म जाग्रत होते ही आदिरति के उपक्रम में प्रवृत्त हुये । 
पिछली बार जब ब्रह्मरात्रि का अवसान हुआ तो भोर होते ही पूर्णमदः ने एक स्पन्दन का अनुभव किया । यह स्पन्दन और कुछ नहीं, यदृच्छा थी, ब्रह्म का महत् तत्व था जिसे आपने संज्ञा दी “अहं” । ब्रह्म के जागरण के साथ ही अहं की तरह काल भी अपने अस्तित्व में आया । काल को दिक् की अपेक्षा थी, दिक् के लिये सृष्टि की आवश्यकता थी । अस्तु आदिब्रह्म को सृष्टि के लिये प्रवृत्त होना पड़ा । ब्रह्म ने अभिलाषा की – “एकोऽस्मि बहुस्यामः”।
“बहु” होने के लिये विवेक की आवश्यकता थी, ब्रह्म विवेकी हुआ । विवेक ने स्वीकार और निषेध को अपना सहयोगी नियुक्त किया । रतिक्रीड़ा के लिये स्वीकृति आवश्यक थी ।
ब्रह्म के विवेकी होते ही विविधता प्रकट हुयी, विविधता से तन्मात्रायें (बोसोन यथा- फ़ोटॉन, ग़्ल्यूऑन, मेसॉन आदि) अस्तित्व में आयीं । वे प्रसन्न थीं और रति के लिये उत्सुक भी । तन्मात्राओं के द्रुत नृत्य से आकर्षण उत्पन्न हुआ, ब्रह्म आकर्षित हुआ और उसने तन्मात्राओं से रतिक्रीड़ा की । ब्रह्म विवेकी न हुआ होता तो तन्मात्रायें अस्तित्व में न आ पातीं, तन्मात्रायें अस्तित्व में न आ पातीं तो ब्रह्म रति में प्रवृत्त न हो पाता । ब्रह्म की यह दीर्घ रति है जो उसके जागने से लेकर सोने तक निरंतर चलती रहती है । आदिब्रह्म की आदिकामाग्नि ने उसे चिर आशिक़ बना दिया, ब्रह्म अपनी रचनाओं से रति करता है, रति से पञ्चमहाभूत उत्पन्न हुये, पञ्चमहाभूतों की पारस्परिक रति से फ़र्मियॉन्स उत्पन्न हुये और इलेक्ट्रॉन, पॉज़िट्रॉन, प्रोटोन, न्यूट्रॉन, न्यूट्रिनो, बेरियॉन आदि ब्रह्म के विविध स्वरूप अस्तित्व में आये ।
किसी रसिक ने परिहास किया – “ओह ! तो ब्रह्म ने अपनी ही पुत्री से सम्भोग किया !” जिनके लिये केवल अभिधा शक्ति ही ग्राह्य है वे ब्रह्म को बलात्कारी मान बैठे... ठीक अपनी तरह, जो अज्ञानवश अपनी ही बुद्धि से बलात्कार करते रहने के अभ्यस्त हैं ।       

परमाणुओं का विवाह और इलेक्ट्रॉन्स का लास्य नृत्य...

पिता ने पुत्री का विवाह किया, वह ससुराल चली गयी, देने वाला पिता अब निगेटिव हो गया है । पति ने नवविवाहिता का पाणिग्रहण किया, वह पॉज़िटिव हो गया... किंतु दाता अकिंचन हो गया ! इस विवाह का हर कोई साक्षी है । इलेक्ट्रॉन का एनर्जी स्टेट पॉज़िटिव है, दूसरों को एनर्जी देकर उसका इलेक्ट्रिक चार्ज़ निगेटिव हो जाता है । प्रोटॉन का एनर्जी स्टेट निगेटिव है, दूसरों से एनर्जी लेकर उसका इलेक्ट्रिक चार्ज़ पॉज़िटिव हो जाता है । अद्भुत् !

जब निर्गुण ब्रह्म सगुण ब्रह्म के रूप में अवतरित हुआ तो उसे मात्रा की आवश्यकता हुयी थी । ब्रह्म ने मात्रा को उत्पन्न किया, गुण और मात्रा का फ़्यूज़न हुआ । यह क्वार्क्स थे जो जन्म लेते ही नृत्य करने लगे । नृत्य प्रारम्भ हुआ तो लास्य उपजा, लास्य उपजा तो संघात हुआ, राग हुआ... ईर्ष्या भी हुयी... जड़ता भी हुयी । आदि शक्तियाँ प्रचण्ड संघात से रतिक्रीड़ा में लिप्त हुयीं । 
ब्रह्म की रास लीला (रहस्य लीला) अद्भुत् है, वह अपनी ही रचनाओं से रति करता है । रति उसकी विवशता है, सृष्टि की अपरिहार्य आवश्यकता है । प्रोटोन्स बड़े रसिक हैं, उनका सेल्फ़ ग्रेविटेशनल फ़ोर्स इलेक्ट्रॉन्स को दीवाना बना देता है । वे उन्मत्त भाव से प्रोटोन्स के चारो ओर चिर लास्यनृत्य में प्रवृत्त होते हैं गोया कृष्ण को घेर कर नृत्य में लीन हों गोपियाँ । ब्रह्म का प्रथम् भौतिक अस्तित्व परम अणु के रूप में प्रकट हुआ । प्रारम्भ में परमाणु उदास थे, वे बड़ी व्यग्रता से ब्रह्माण्ड में इतस्ततः भ्रमण करने लगे । ब्रह्म ने अपने विवेक से इसका समाधान पूछा तो उत्तर मिला कि परम अणु अन्य परम अणुओं से रति के अभिलाषी हैं । ब्रह्म ने स्मित हास्य से परमाणुओं को रति की अनुमति दी, परमाणुओं ने परस्पर विवाह किये । विवाह के पश्चात् एक परमाणु के इलेक्ट्रॉन्स को दूसरे परमाणु के अन्य इलेक्ट्रॉन्स से समझौता करना पड़ा । मानव समाज में यह प्रथा आज भी चल रही है, पटरानियों को आपस में समझौता करना ही पड़ता है ।
परमाणु रति में रत हुये तो अणुओं का जन्म हुआ । परमाणु की तरह अणु भी गुरुता की अभिलाषा में इतस्ततः नृत्य करने लगे, तुम इसे ही तो ब्राउनियन मूवमेण्ट पुकारते हो ।
अणु भी रति के अभिलाषी हो रति में प्रवृत्त हुये तो कण और विभिन्न कम्पाउण्ड्स बने । एक ब्रह्म बड़ी तीव्रता से बहु होता जा रहा था । ब्रह्म का विस्तार हुआ और एक विविधता सम्पन्न ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आ गया ।
किंतु रेण्डम नहीं है ब्राउनियन मूवमेण्ट । ब्रह्म जटिल है, ब्रह्म की सृष्टि जटिल है, उसका जागरण और शयन भी जटिल है... यह जटिलता सुनिश्चित् है, सुनिर्धारित है । तभी तो मैं ब्राउनियन मूवमेण्ट को रेण्डम नहीं स्वीकार कर पाता । यह जो रेण्डमनेस है वह हमारी अज्ञानता है । अणुओं के नृत्य का यह पैटर्न समझना होगा आपको ।
शिव कल्याण है, शिव सृष्टि है, शिव नृत्य है, शिव जागरण है, शिव शयन है ।
उमा ऊर्ध्वशक्ति है, शक्ति के अभाव में शिव शव है । उमा परमाणु की पोटेंशियल एनर्जी है, शिव का संयोग होता है तो पोटेंशियल एनर्जी कायनेटिक एनर्जी बन जाती है । शिव नृत्य करते हैं तो ऊर्जा उत्पन्न होती है, उस ऊर्जा से ही तो ब्रह्म मैटर बनकर साकार हो पाता है  
यह उमा है जो शिव को ताण्डव नृत्य के लिये प्रेरित करती है । शिव जब लास्य ताण्डव नृत्य करते हैं तो सृष्टि अस्तित्व में आती है, और जब वे रुद्र ताण्डव नृत्य करते हैं तो सृष्टि ब्रह्म को समर्पित होती है । तुम इसे प्रलय और महाप्रलय जान कर भयभीत होते हो, किंतु यह भूल जाते हो कि दिन भर के नृत्य और सृष्टि के पश्चात् यह उनके शयन का काल है । ब्रह्म का जागरण और शयन एक अनिवार्य प्रक्रिया है, शाश्वत और सुनिश्चित् ।