वे तीन
थे, दो लड़के और एक लड़की, लड़के
तेरह-चौदह के आसपास और लड़की नौ-दस के आसपास । लड़के आपस में दोस्त थे और लड़की उनमें
से एक की बहन । दोनों लड़के सामान्य थे किंतु लड़की गज़ब की सुन्दर थी । यदि वह केवल
नहा-धोकर साफ कपड़े भर पहन लेती तो कोई नहीं जान पाता कि वह अपने भाई के साथ कचरा
बीनने का काम करती है । शहर में किसी को उनसे कोई मतलब नहीं था किंतु कई मोहल्लों
के कुत्ते उनसे परिचित थे । शहर में यत्र-तत्र बिखरे कूड़े-कचरे के ढेरों पर वे लोग
समानाधिकार से विचरण करते और अपने-अपने मतलब की चीजें खोजा करते ।
मैंने
देखा, कचरे से
बीनी गयी उपयोगी चीजों से भरे हए तीन बोरे नीचे रखे थे, शायद
उनका आज का काम ख़त्म हो गया था इसीलिये तीनों फ़ुरसत में नगरपालिका के स्कूल की टूटी
बाउण्ड्रीवाल पर बैठकर गीत गा रहे थे । लड़की प्लास्टिक की एक टूटी केन को छड़ी से
पीटे जा रही थी और दोनों लड़के चिल्ला-चिल्लाकर गीत गाये जा रहे थे । तीनों मस्ती
में थे, गीत-संगीत
में डूबे हुये, उनके
आनंद की सीमा नहीं थी । उनके गीत में साहित्य नहीं, गायन
में सुर नहीं, वादन
में ताल नहीं फिर भी वे आनंदित थे । आनंद के मार्ग में व्याकरण, सुर और
ताल पराजित हो चुके थे ।
घण्टे
भर बाद तीनों नीचे उतरे, लड़की ने
एक झोले में रखी पॉलीथिन से खाने का कुछ सामान निकाला फिर तीनों हँस-हँस कर
बतियाते हुये खाने लगे । निश्चित् ही उनके पास व्यंजन नहीं थे किंतु जो भी था उससे
मिलने वाली संतुष्टि का भाव उनके चेहरों
पर देखा जा सकता था ।
दो दिन
बाद तीनों फिर नज़र आये । पीठ पर गंदे बोरे लादे तीनों बड़ी हैरत से बैंक के बाहर
सड़क तक लगी लम्बी कतारें देख रहे थे । उन्हें कोई ज़ल्दी नहीं थी इसलिये वे हँसते
हुये सड़क के पार जाकर एक जगह अपने-अपने बोरों को नीचे पटक उनसे पीठ टिकाकर बैठ गये
और भीड़ को देखने लगे । उनके आनंद के विषय बहुत मामूली से थे, जिनमें
दूसरों को ढूँढने से भी कुछ नहीं मिलने वाला था । लाइन में लगे लोग, उनके
खड़े होने और बतियाने का तरीका, बीच-बीच
में लाइन को लेकर चूँ-चपड़, व्यवस्था
बनाते वर्दी पहने बैंक के गार्ड, लड़कियों
के हेयर स्टाइल और कपड़े… बहुत
कुछ था जो उनके लिये आकर्षक था और आनंद का विषय भी । शायद वे आज रात के सपने के
लिये दृश्यों को बटोर रहे थे... उनके
लिये दुनिया में यही तो था जो बिना पैसे खर्च किये लिया जा सकता था ।
मुझे नहीं
पता कि कल सुबह इन बच्चों को खाना मिलेगा या नहीं किंतु इतना अवश्य पता है कि राष्ट्र
के निर्माण में भारत की भीड़ और इन तीन बच्चों के योगदान के तुलनात्मक अध्ययन पर
कभी कोई थीसिस नहीं लिखी जायेगी ।
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