वहाँ...
ब्रह्माण्ड
में
जहाँ
तमस ने
डाल रखा
है अपना डेरा
एक
कृष्णविवर हो गया है,
भूखा
इतना
जैसे कि
जन्म-जन्म से कुछ न खाया हो ।
मरभुखे
ने
आज फिर
निगल लीं
प्रकाश
की कुछ किरणें
और
उदरस्थ
कर उजास को
कहने
लगा है दम्भ से
स्वयं
को नक्षत्र ।
किरणें
विवश हैं
उस
दम्भी को प्रणाम करने के लिये
गोया
बिछ गया
हो लोकतंत्र
किसी
दुष्ट राजा के चरणों पर ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.