प्रश्न – जो हिन्दूधर्म
है वही सनातनधर्म है क्या? क्या निराकार ईश्वर की मूर्ति बनाकर पूजा करना हिन्दूधर्म
का अनुकरणीय पथ है ? क्या हिन्दूधर्म में बलिकर्म के लिये बलपूर्वक लाये गये मूक
पशु-पक्षियों की हत्या करना फिर प्रसाद रूप में मांस-मदिरा का सेवन करना ईश्वरीय
पूजा का शास्त्र सम्मत विधान है? क्या देवी की विशाल मूर्तियाँ बनाकर उनके सम्मुख
मद्यपान कर ध्वनिप्रदूषण करते हुये कामुक नृत्य करना हिन्दुओं का धार्मिक अनुष्ठान
है ?
उत्तर – हे वत्स ! भारत
में यह जो स्थूल नेत्रों से दृष्टिगोचर हो रहा है वह सब हिन्दू धर्म है, और जो
दृष्टव्य नहीं है, प्रत्युत चेतना के विषयरूप में अनुभवगम्य है वही सनातन धर्म है
। दुर्गा देवी के मूर्ति विसर्जन में मद्यपान कर “कामुक नृत्य” करते
किशोर-किशोरियों के झुण्ड अपना परिचय हिन्दू धर्मानुयायी कहकर देते हैं किंतु
“ब्राउनियन मूवमेंट” नृत्य की वे मुद्रायें हैं जो केवल सनातन ही हो सकती हैं ।
परमाणु के ऑर्बिट्स में इलेक्ट्रॉन्स का सतत नृत्य सनातन है । शिव का लास्य और
रौद्र ताण्डव सनातन है जो डार्क-मैटर और एनर्जी की माया का खेल खेलता है । मूर्ति
... जो दृष्टव्य है ... वह उनके लिए है जिनके लिए सूक्ष्म अकल्पनीय है । मूर्ति का
नाम है, सूक्ष्म का कोई नाम नहीं होता । हे वत्स ! जिसका नाम है वह हिन्दू है और
जिसका कोई नाम नहीं है वह सनातन है ।
हे प्रिय
जिज्ञासु ! सनातनधर्म चराचर जगत का वह आदिधर्म है जो सामान्य है और इस सम्पूर्ण सृष्टि
के लिए अपरिहार्य है । उस धर्म के पालन से ही परमाणु के अन्य अवयव अपना संयुक्त परिवार
बना सके हैं और हिग्स बोसॉन अन्य सदस्यों को सत्तावान बना सकने में समर्थ हो पाते हैं
। सूक्ष्मातिसूक्ष्म अवयवों में संयोग और वियोग की अद्भुत् क्रियायें सनातनधर्म के
प्रभाव से ही सम्भव हैं । कोई भी रासायनिक क्रिया शिव के लास्य नृत्य का ही प्रकट रूप
है । यह जो हाइड्रोजन बम है, इसके विस्फोट की व्याख्या शिव के रौद्र नृत्य के बिना
सम्भव नहीं ।
प्रिय वत्स
! सनातनधर्म को किसी विशिष्टता में बांधा नहीं जा सकता । नदी के प्रवाह की प्रक्रिया,
पुष्पों के खिलने की प्रक्रिया, ऋतुओं का आवागमन, आकाशीय पिण्डों की जीवन गाथा... क्या
ये सब किसी नियम का पालन नहीं करते ? यह जो नियम है जिसके अनुपालन में यह सम्पूर्ण
लीला घटित होती है ... वही तो सनातन है । प्राणियों के शरीर की अद्भुत् संरचना और कोशिकाओं
से लेकर तंत्रांगों तक की फ़िज़ियोलॉजी में जिस अनुशासन और सहकारिता के दर्शन होते हैं
वही तो है सनातन धर्म ।
हे वत्स
! जो साकार है वह निराकार का ही तो स्वरूप है । आपने मैटर, डार्क मैटर और एनर्जी के
पारस्परिक सम्बन्धों और उनके रूपांतरण को समझने का प्रयास किया है । आपने अपनी स्थूल
प्रयोगशालाओं में स्थूल माध्यमों से अपनी निराकार हाइपोथीसिस को साकार सिद्ध करने का
प्रयास किया है । स्थूल और सूक्ष्म, साकार और निराकार ...वे स्थितियाँ हैं जिनसे होता
हुआ कोई वैज्ञानिक अपनी ज्ञानयात्रा के पथ पर आगे बढ़ता है । वैज्ञानिकों को इन दोनों
स्थितियों से सामना करना ही होगा । किंतु जो वैज्ञानिक नहीं हैं, सामान्य व्यक्ति हैं
वे भी साकार और निराकार का सामना अपने विवेक के अनुसार करते हुये ज्ञानयात्रा के पथ
पर आगे बढ़ते जा रहे हैं । कोई आगे है, कोई पीछे है । कोई साकार में उलझा है तो कोई निराकार
की ओर बढ़ चला है । कोई एनर्जी में खोया हुआ है तो कोई डार्क मैटर के पीछे पड़ा हुआ है,
तो हिग्स बोसॉन के पीछे पड़ने वाले भी कम नहीं हैं । जो साकार मूर्ति पर ही रुक गया
है ...उसे अभी बहुत लम्बी यात्रा करनी होगी । मूर्ति से आगे बढ़ना होगा, आगे बढ़ने के
लिए मूर्ति को छोड़ना होगा, मूर्ति को छोड़ने के लिए हिग्स बोसॉन को भी छोड़ना होगा ...उससे
भी आगे ...निराकार की यात्रा करनी होगी । यह यात्रा सनातन है, यह यात्रा वह धर्म है
जिसके बिना किसी की कोई गति नहीं । हे पथिक ! चन्द्रमा को समझने के लिए उसके दूसरे
पक्ष को भी देखना होगा । शब्दों की माया अनंत है, शब्द जब ध्वनि में अनूदित होते हैं
तो अद्भुत् प्रभाव उत्पन्न करते हैं । यह प्रभाव ही सनातन धर्म है ।