तुम नहीं समझे “आज़ादी”
मैंने समझा है उसे
इसीलिये जी पाती हूँ
जी भर “आज़ादी” ।
तुम ठहरे “आज़ादी” के
शत्रु
इसीलिये करते रहते हो
मेरी बारबार हत्या ।
तुम ईर्ष्यालु हो ...
और मूर्ख भी
दुष्ट वैदिक ऋषियों की
बनायी
दास परम्परा में जीने
के अभ्यस्त
तुम क्या जानो
“आज़ादी” का अर्थ !
तुम क्या जानो
विविधतापूर्ण
अनुभूतियाँ
स्वच्छन्द सहवास की
तुम क्या जानो
आनन्द मदिरापान का
या मस्ती कोकीन की
और क्या जानो
वह चरमानंद
जो मिलता है
अपने पूर्वजों की
छीछालेदर करने में
देश के हजार टुकड़े
करने का
संकल्प लेने में
और करने में नृत्य
बोन-फ़ायर की हल्की
रोशनी में
भारत के शत्रुओं के
साथ ।
तुम शत्रु हो
मेरी स्वच्छन्दता के
तुम शत्रु हो
उस आज़ादी के
जो दिलायी है मुझे
मेरे मार्क्स बाबा ने
।
बलात्कारी वैदिक
ऋषियों के दास !
मैं यूँ ही करती
रहूँगी तुम्हें बदनाम
लगा-लगा कर ऐसे आरोप
जो होंगे दूर ... बहुत
दूर
तुम्हारी
कल्पना से भी ।
बाबा और भी हैं :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जी :)
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