गुरुवार, 9 नवंबर 2017

रूसी साम्यवादी क्रांति के एक सौ वर्ष पूरे होने पर बस्तर में ज़श्न का हुक्म



उत्तर बस्तर के गोंडरी गाँव में 7 नवम्बर से 13 नवम्बर तक “रूसी साम्यवादी क्रांति समारोह” आयोजित किये जाने के हुक्म से स्थानीय ग्रामीण ज़श्न की जगह दहशत में डूब गये हैं । रूसी बोल्शेविक क्रांति के एक सौ साल पूरे होने पर बस्तर के माओवादियों द्वारा यह हुक्म ज़ारी किया गया है । मज़े की बात यह है कि अक्टूबर क्रांति के नाम से चर्चित रूस की बोल्शेविक क्रांति जिस 25 अक्टूबर 1917 को हुयी थी उस दिन वास्तव में ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार नवम्बर माह की 7 तारीख़ थी । क्रांति के बाद ब्लादिमीर लेनिन ने जूलियस सीज़र द्वारा प्रारम्भ किये गये जूलियन कैलेंडर को भी रूस से निकाल दिया ।
सर्वहारा के मसीहा ब्लादिमीर लेनिन ने श्रम सुधार के नाम पर तत्कालीन रूस में तीस हजार गुलाग कैम्प खोले थे जहाँ बन्दी श्रमिकों को प्रतिदिन चौदह घण्टे काम करना होता था । लेनिन के बाद सर्वहारा के मुक्तिदाता ज़ोसेफ़ स्टालिन ने गुलाग शिविरों को बलात् श्रम शिविरों में प्रोन्नत कर दिया जो शीघ्र ही यातना, भुखमरी और हत्या शिविरों के लिए कुख्यात हो गए ।
सर्वहारा की साम्यवादी क्रांति के स्वप्न 26 दिसम्बर 1991 को टुकड़े-टुकड़े हो गये जब यू.एस.एस.आर. के15 टुकड़े हो गये । बस्तर के माओवादिओं को अक्टूबर क्रांति याद है किंतु उन्हें 26 दिसम्बर के सोवियत विघटन की याद नहीं है । बोल्शेविक क्रांति के बाद स्थापित साम्यवादी शासन सौ वर्ष भी पूरे नहीं कर सका ।

सोवियत रूस के गुलाग श्रमिक शिविर... अर्थात् एक शातिराना झूठ । Gulag एक संक्षिप्त नाम है Glavnoe Upravlenie Ispravitel’no-trudovykh Lagerei का जिसका अर्थ है “main administration of corrective labor camps.” किंतु इन शिविरों में कैदी होते थे जिनसे बलपूर्वक श्रम कार्य लिया जाता था ।

सोवियत रूस के तथाकथित गुलाग (श्रमिक सुधार शिविरों) में लेनिन और स्टालिन के राजनीतिक विरोधी और उनके समर्थक होते थे जो कैदी के रूप में वहाँ लाये जाते थे और उनसे प्रतिदिन 14 घण्टे काम करवाया जाता था । उन्हें तौलकर निर्धारित मात्रा में भोजन दिया जाता था, यानी 3-4 लोगों के एक परिवार के लिए मात्र 140 ग्राम ब्रेड । स्त्री और पुरुष एक ही बैरेक में रखे जाते थे, साम्यवादी समानता के लिए ऐसा करना अनिवार्य है ।   
उल्लेखनीय है कि लेनिन और स्टालिन ने अपने प्रबल राजनीतिक विरोधियों को, जिनमें शिक्षक, वैज्ञानिक या उन जैसे अन्य बुद्धिजीवी हुआ करते थे, धारा 38 के अंतर्गत गिरफ़्तार करने के बाद बिना कोर्ट ट्रायल के गोली मार देने की परम्परा डाली जो साम्यवादी सिद्धांतों के क्रियान्वयन के लिए एक आवश्यक अनुष्ठान है । इन दोनों महान साम्यवादी नेताओं के नाम रूस की तीन करोड़ आबादी की हत्या कर देने के पुण्य का श्रेय भी है । 


गुलाग में कैदी   

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