बुधवार, 29 नवंबर 2017

माओवादी नहीं चाहते बस्तर में रेल चले...

माओवादी नहीं चाहते कि जगदलपुर से रायपुर को जोड़ने वाली प्रस्तावित दल्लीराजहरा-जगदलपुर रेल लाइन का निर्माण हो इसलिए वे आये दिन हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ करके बाधा उत्पन्न करते रहते हैं । 25 नवम्बर 2017 को माओवादियों ने कोसरोंडा (ताड़ोकी) में रावघाट रेल परियोजना में कार्यरत ठेकेदार सहित अन्य छह श्रमिकों की पिटायी की फिर ठेकेदार के बेटे को अगवा कर अपने साथ ले गये जिसकी बाद में हत्या कर दी गयी ।
इस रेल लाइन का मुख्य उद्देश्य लोह अयस्क का परिवहन करना है, जनता को मिलने वाली सुविधा तो केवल बाय-प्रोडक्ट है । दल्ली राजहरा और बैलाडीला के पहाड़ों से लोह अयस्क समाप्त हो चुका है और अब सरकार की दृष्टि लगी है रावघाट के पहाड़ों पर । बस्तर का कुछ लोह अयस्क भिलाई स्पात संयंत्र जाता है और कुछ जापान । रावघाट से लोह अयस्क को भिलाई और जापान तक पहुँचाने के लिए जगदलपुर-दल्लीराजहरा रेल लाइन का निर्माण आवश्यक है जिसका जल-जंगल-जमीन पर आदिवासियों के हकऔर पर्यावरणके बहाने से माओवादियों द्वारा हिंसक विरोध किया जा रहा है । वास्तव में माओवादियों के विरोध का असली कारण यह नहीं है बल्कि अपने लाल-गलियारे को होने वाली क्षति है जो रेल लाइन के बन जाने से होने वाली है । बस्तर के माओवादियों में पड़ोसी प्रांतद्वय तेलंगाना और आन्ध्रप्रदेश के लोगों का वर्चस्व है, जिसका संचालन आन्ध्रप्रदेश के माओवादी संगठन की जनताना सरकारद्वारा किया जाता है ।
जगदलपुर से रावघाट होते हुये दल्ली राजहरा के मार्ग का पूरा क्षेत्र माओवादियों के कब्ज़े में पिछले कई दशकों से है । वर्तमान में यह क्षेत्र सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है जिस पर माओवादियों का पूरा नियंत्रण है । इस रेल लाइन के निर्माण से होने वाली यातायात और पुलिस की सुगमता माओवादी गतिविधियों के लिए बाधक है जिसे रोकने के लिए माओवादी आये दिन हिंसक घटनाएं कर श्रमिकों और ठेकेदारों में दहशत फैलाना चाहते हैं ।
माओआदियों का काल्पनिक लाल गलियारा नेपाल से प्रारम्भ होकर कर्नाटक तक विस्तृत है जो भारत के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों को शेष भारत से पृथक करने की योजना का एक भाग है । यहाँ यह ध्यातव्य है कि चीन शंघाई से ल्हासा होते हुए काठमांडू तक पहले ही सड़क मार्ग से जुड़ चुका है और इसी वर्ष, यानी 12 मई 2017 को चीन के राजदूत यू होंग एवं नेपाल के विदेश सचिव शंकर दास बैरागी ने काठमाण्डू में प्राचीन “ल्हासा-काठमांडू-पटना रेशम मार्ग” को पुनः प्रचलित करने के उद्देश्य से “वन बेल्ट वन रोड (OBOR)” योजना के एक अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किए हैं । ल्हासा से तिब्बत के दूसरे सबसे बड़े नगर शिगात्से तक 253 किमी. लम्बी रेल लाइन पहले ही निर्मित हो चुकी है जिसे अब केरुंग होते हुए नेपाल के रसुआगढ़ी तक ले जाने और फिर अगले चरण में काठमाण्डू से लुम्बिनी तक ले जाने की योजना है । नेपाल का कोदरी ही एक मात्र वह स्थान है जो नेपाल और चीन के मध्य सड़क मार्ग से आवागमन का माध्यम है । नेपाल का अर्निका राजमार्ग मेतारी पुल से होते हुये चीन के राष्ट्रीय राजमार्ग 318 को जोड़ता है ।
वास्तव में चीन पूर्वी-पश्चिमी और दक्षिणी एशिया से ही नहीं बल्कि अफ़्रीका और योरोप तक भी सड़क एवं रेल मार्ग से अपने व्यापारिक वर्चस्व को विस्तार देने की अतिमहत्वाकांक्षी योजना पर कई दशकों से काम कर रहा है ।

बस्तर में माओवादी जनताना सरकार एक अतिवादी संगठन है जो पिछले कई दशकों से लोकतांत्रिक सरकारों के लिए चुनौती बनी हुयी है । जिसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि जनताना सरकार ने स्वयं को एक समानांतर सरकार के रूप में स्थापित कर लेने में सफलता प्राप्त कर ली है जो उनके संगठन की दृढ़ता, व्यवस्था और युद्ध संचालन की दक्षता को प्रदर्शित करती है । अब प्रश्न यह उठता है कि कोई आतंकवादी संगठन एक समानांतर व्यवस्था निर्मित करने में सफल कैसे हो जाता है ? वे कौन लोग हैं जो इस संगठन की व्यवस्था का संचालन करते हैं और उन्हें भारी धनराशि निरंतर उपलब्ध करवाते रहते हैं ? इसी सन्दर्भ में यह प्रश्न भी प्रासंगिक है कि कोई बाबा या बाई स्वयम्भू भगवान या देवी बनकर कैसे एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लेता है और अपने भक्तों के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को ध्वस्त करने का दुस्साहस कर पाता है ?

पिछली कई शताब्दियों से हम असामाजिक और अराजक तत्वों से घिरे रहे हैं, उनकी भरमार हमारे चारों ओर है, कभी वे हमें राजनीति में दिखायी देते हैं, कभी व्यापार में, कभी धर्म-कर्म में, कभी विश्वविद्यालयों में तो कभी जनताना सरकार के रूप में ।


नेपाल के कादरी नगर को चीनी आधिपत्य वाले तिब्बत के झांग्मू नगर से जोड़ने वाला मितेरी पुल जिसके बायीं ओर है नेपाल और दाहिनी ओर चीन 

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