रामायण में उल्लेख मिलता है कि त्रेतायुग में राक्षसों ने ऋषियों-मुनियों
का जीना मुश्किल कर रखा था । किंतु वे तो तपस्वी थे और ज्ञान की साधना में लीन रहते
थे फिर ऐसा क्या था कि राक्षस उनकी साधना में आये दिन विघ्न ही नहीं उत्पन्न करते बल्कि
उन्हें प्रताड़ित भी करते रहते थे । इस प्रश्न का उदाहरण सहित उत्तर इसरो के वैज्ञानिक
एस. नंबी नारायणन की प्रताड़ना कथा में मिल जायेगा । यह प्रताड़ना कथा कलियुग के ईसा
वर्ष 1994 में प्रारम्भ हुयी थी जो 24 वर्ष तक निरंतर चलती रही ।
एशिया महाद्वीप के प्राचीन आर्यावर्त्त में कलियुग
के प्रभाव से एक देश में दो देश एक साथ अस्तित्व में आ गये जिनमें से एक है भारत और
दूसरा है इण्डिया । दूसरा देश यानी इण्डिया प्रबल है, जबकि भारत को अपने अस्तित्व के लिए कड़े संघर्ष से
गुजरना पड़ रहा है । इसी इण्डिया ने अपने दबंग स्वभाव के कारण एक दिन भरपूर क्रूरता
के साथ भारत की एक शीर्ष वैज्ञानिक प्रतिभा की सामाजिक और चारित्रिक हत्या कर दी ।
...क्योंकि इण्डिया के लोगों को यह गवारा नहीं था कि इसरो का एक भारतीय वैज्ञानिक स्वदेशी
क्रायोजेनिक इंजन बनाये । केरल की तत्कालीन सरकार ने उन पर झूठे और गम्भीर आरोप लगाकर
एक भारतीय प्रतिभा की सामाजिक हत्या कर दी । देशी क्रायोजेनिक इंजन बनाने का काम रुक
गया और अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत की प्रगति को इण्डिया द्वारा अपूरणीय
क्षति पहुँचाई गई ।
यूँ अदालत ने उस प्रतिभा को 24 साल बाद बाइज़्ज़त
बरी कर दिया ...सभी आर्थिक लाभों और मुआवज़े की रक़म के साथ, किंतु इस बीच भारत कई सौ साल पीछे चला गया । इसलिए
तिरुनेलवेली के वैज्ञानिक एस. नंबी नारायणन की कहानी भारत के युवा वैज्ञानिकों के साथ-साथ
देश के हर नागरिक को भी जाननी ही चाहिए ।
वर्ष1970 के प्रारम्भ में ही तरल ईंधन रॉकेट प्रणाली
को भारत में विकसित करने वाले और स्वदेशी तकनीक से निर्मित क्रायोजेनिक इंजन “विकास”
को विकसित करने में लगे नारायणन को जासूसी करने और तकनीक शत्रु देश को बेचने के झूठे
आरोप में वर्ष 1994 में ग़िरफ़्तार कर लिया गया । इण्टेलीजेंस ब्यूरो के अधिकारियों ने
नारायणन को इतनी शारीरिक और मानसिक यतानायें दीं कि उन्हें अस्पताल में रखना पड़ा, बाद में उन्हें पचास दिनों तक जेल में भी रखा गया
। यह एक ऐसी घटना थी जो भारत के युवा वैज्ञानिकों को बुरी तरह दहशत में लाने और उन्हें
हतोत्साहित करने वाली थी । किंतु जब झूठ का साम्राज्य व्यवस्थित हो तो रोशनी की नन्हीं
किरण को भी विवश होना पड़ता है । ब्लैक होल से कब कोई फ़ोटॉन जीत सका है !
किंतु नारायणन ने हार नहीं मानी और वे न्याय पाने
के लिये चौबीस वर्षों तक निरंतर संघर्ष करते रहे, इस बीच उन्हें सामाजिक और मीडिया की यातनाओं से भी गुजरना पड़ा, किंतु वे रुके नहीं । अंततः नंबी नारायणन को न्यायालय से दोषमुक्त कर दिया
गया किंतु उनके जीवन पर चौबीस साल तक लगे रहे ग्रहण को कैसे मुक्त किया जा सकेगा ?
नंबी नारायणन अदालत से दोषमुक्त तो हो गए किंतु
उनके विरुद्ध रचे गये षड्यंत्र के सबूत मिल जाने के बाद भी ज़िम्मेदार अधिकारियों के
ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की गई । हमारे देश में ऐसा ही होता है, पीड़ित को दोषमुक्त होने के लिए अपने जीवन का एक
लम्बा हिस्सा स्वाहा करना पड़ता है, दूसरी ओर इस सबके लिए उत्तरदायी
लोगों के विरुद्ध कोई दण्डात्मक कार्यवाही न होने से इस तरह की घटनाओं पर आज तक विराम
नहीं लग सका है, आगे भी नहीं लग सकेगा । ऐसी पंगु न्याय व्यवस्था
निष्ठावान लोगों में प्रतिक्रियात्मक आक्रोश उत्पन्न करती रही है, आगे भी करती रहेगी ।
वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में यह एक अत्यंत
क्रूर और घृणास्पद घटना है जिस पर भारत को चिंतित होना चाहिए था, किंतु भारत चिंतित नहीं हुआ, बिल्कुल भी नहीं हुआ । ट्रक के नीचे किसी जाति विशेष के व्यक्ति की मुर्गी
कुचल जाने पर हल्ला करने वाली मीड़िया और तथाकथित मानवाधिकारवादियों ने भी इस पर कोई
चिंता व्यक्त नहीं की । क्या हम इसी तरह विश्वगुरु बनने का सपना देख रहे हैं ? यह इण्डिया में होने वाली अत्यंत क्रूर घटनाओं में से एक है ...जिसके
लिए भारत सरकार को उनसे और पूरे देश से माफ़ी माँगनी चाहिए । हम इस घटना से दुःखी हैं, और इससे भी अधिक दुःखद यह है कि भारतीय मीडिया ने
इस प्रकरण को उतनी गम्भीरता से नहीं लिया जितना लिया जाना चाहिए था । यह घटना देश के
युवा वैज्ञानिकों को हतोत्साहित करने वाली है । क़माल है इतनी तेज तूफ़ान आया और देश
में एक पत्ता तक नहीं हिला ! यह पूरे भारत के लिए घोर शर्मिंदगी और आत्मग्लानि का विषय
है ।
भर्त्सना करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं ।
मुझे लगता है कि जिस समाज में प्रतिभाओं की क्रूर सामाजिक और चारित्रिक हत्या कर दी
जाती हो और समाज कामोश बना रहने का अभ्यस्त हो उस समाज और देश का परित्याग कर देना
चाहिए ।
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