शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

‘मी टू’ के बाद अब ‘मी टू पार्ट टू’ की बारी


एफ़.टी. की दुनिया में चल रही ग़र्म हवा पहली बार नहीं चली है । पहले भी तेज हवाओं से अचानक खुल गई खिड़की से लोगों ने कॉस्टिंग काउच को देखा है । राजनीतिक गलियारों में इस तरह की हवा को “प्रायोजित” और “षड्यंत्र” कह कर तर्कों के साथ कुछ प्रश्न भी उठाए जा रहे हैं । किंतु एफ़.टी. की रंगीन दुनिया में इस ग़र्म हवा को “प्रायोजित” और “षड्यंत्र” स्वीकार करने का कोई उचित कारण नहीं है ।

निश्चित ही एफ़.टी. की महिलाओं के साहस का स्तर हमारी अपेक्षा बहुत उच्च है । मी टू कहने वाली स्त्रियों को एक भी शब्द बोलने से पहले कितने अंतर्द्वंद्वों और आंतरिक झंझावातों से से होकर आगे बढ़ना होता है, इसकी कल्पना ही पसीना ला देने के लिए काफी है । मी टू महिलाओं के अपने अंतर्द्वंद्व से बाहर निकलने का आंदोलन है, यौन अत्याचारों के ख़िलाफ बगावत का ऐलान है, विवश मौन को स्वर देने की क्रांति है । मुझे लगता है कि रिश्वत और भ्रष्टाचार के मामले में अब मी टू पार्ट टू की बारी पुरुषों की होनी चाहिए । आख़िर हम कब तक भ्रष्टाचार के शिकार होते रहेंगे । मैं रिश्वखोरी की बात कर रहा हूँ । क्या हमें मी टू की स्त्रियों की तरह भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के ख़िलाफ भी खुलकर अपनी आवाज़ नहीं उठानी चाहिए ?
        रिश्वतखोरी के मामले में व्याप्त हो चुकी सामाजिक मानसिकता का विश्लेषण हमारे सामने एक भयानक चित्र उपस्थित करता है । विद्यार्थियों को छोड़ दिया जाय (क्योंकि वे अभी किसी जॉब में नहीं हैं) तो शायद ही कोई मिले जो रिश्वतखोरी के समर्थन में तर्क करते हुए जरा भी हिचकता या शर्माता हो । देखिए, रिश्वत के पक्ष में क्या है आम धारणा -
1- रिश्वत एक सुविधा शुल्क है, इसे निगेटिव रूप में नहीं लेना चाहिए ।
2- दूध का धुला कौन है ? पेट तो हमारा भी है न !
3- जो रिश्वत लेते-देते हैं वे सुखी हैं और उन्नति कर रहे हैं, उनके प्रमोशन भी हो रहे हैं और उनके गोपनीय प्रतिवेदन भी बहुत अच्छे लिखे जाते हैं । इसमें बुरा क्या है ?
4- रिश्वत यदि इतनी बुरी चीज है तो सरकार रोक क्यों नहीं पा रही इसे ? कानून बनाने से कुछ नहीं होता । कानून तो बलात्कार के लिए भी है, लेकिन रुक पाया क्या ? जो प्रचलन में है वह बुरा कैसे हो सकता है ?   
5- हम जी-तोड़ मेहनत करते हैं, रिश्वत हमारा हक़ है ।
6- इसे रिश्वत न कहिए, व्यावहारिकता कहिए, सिद्धांत और नैतिकता का औचित्य भाषणों के बाद नहीं होता । यदि मुश्किलों से बचना चाहते हैं तो आपको व्यावहारिक बनना होगा ।
7- समय-समय पर रिश्वत देते रहोगे तो उच्चाधिकारियों से सम्बंध अच्छे बने रहेंगे और कभी कोई परेशानी नहीं होगी ।
8- लेन-देन तो हर कोई करता है । रिश्वत अब समाज में स्वीकृत आचरण है इसे सरकार द्वारा भी मान्यता मिल जानी चाहिए ।
9- क्या कीजिएगा, लेन-देन के बिना कोई काम नहीं होता, जो रिश्वत लेते हुए पकड़े जाते हैं वे रिश्वत दे कर छूट भी जाते हैं । जैसी बहै बयार पीठ तब तैसी दीजै – यही है सफलता का सूत्र ।


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