गुरुवार, 8 नवंबर 2018

संविधान-प्रतिसंविधान


-कई बार सुसाइडल नोट संघर्ष का वह अंतिम तरीका होता है जिसके बल पर कोई आत्महत्या करने वाला मृत्यु के बाद भी अपने संघर्ष को न्याय मिलने की आशा से जारी रखना चाहता है । ...किंतु यह अंतिम उपाय भी यदि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाय तो इसे सभ्य समाज की क्रूरष्ट धृष्टता और उन तमाम तंत्रों की धूर्तता माना जाना चाहिए जिसमें कोई व्यक्ति जीने में असफल रहने के बाद आत्महत्या के लिए विवश हो जाता है ।

-पिछले महीने एक अधिकारी ने आत्महत्या कर ली । सुसाइडल नोट में उसने अपने विभाग के कई उच्चाधिकारियों को अपनी आत्महत्या के लिए उत्तरदायी ठहराया था । पुलिस ने सुसाइडल नोट बरामद किया किंतु रसूखदारों पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी ।

-किसी को जीने का अधिकार कौन देता है ? कौन है वह अधिकारी जो दूसरों के लिए जीने के अधिकार तय करता है ?
-सभ्य समाज के मनुष्य ने बड़े गर्व से यह घोषणा करने में तनिक भी विलम्ब नहीं किया कि उसका लिखा संविधान हर किसी को जीने का अधिकार देता है ।
-गाँव के एक असभ्य ने जिज्ञासा से पूछा – “क्यों ? संविधान में न लिखा होता तो क्या हर किसी को जीने का अधिकार नहीं मिलता”?
-महानगर के सभ्य ने कहा – “मनुष्य निर्मित संविधान सर्वोपरि है, हमने इसे धर्म और ईश्वर निरपेक्ष बनाया है । संविधान का सम्मान और पालन करना हर मनुष्य के लिए अनिवार्य है । संविधान का उल्लंघन करने वाला दंड का भागी होता है” ।
-असभ्य ने पुनः जिज्ञासा की –“संविधान तो ईश्वर का भी है किंतु उसने इसे लिखने की कभी आवश्यकता नहीं समझी ...दण्ड वह भी देता है ...बिना किसी पक्षपात के । किंतु तुम ईश्वर के संविधान को क्यों नहीं मानना चाहते”?
-सभ्य ने कहा –“क्योंकि वह अलिखित है, और जो अलिखित है उसका कोई अस्तित्व नहीं”।
-असभ्य ने पुनः पूछा –“अलिखित तो ग्रेट ब्रिटेन का संविधान भी है, क्या उसका भी कोई अस्तित्व नहीं”?

-सभ्य को असभ्य के बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर खोजने होंगे । 
-असभ्य ने तर्कों से सिद्ध होना पाया कि ईश्वर सर्वोपरि है और धर्म है उसका संविधान ।
-सभ्य ने भी अपने तर्क विकसित कर लिए हैं कि ईश्वर एक अनावश्यक कल्पना है और धर्म एक ऐसा पाखण्ड ... जिसकी मनुष्य समाज के लिए कोई उपादेयता नहीं है ...और इसीलिए मनुष्य को ईश्वर और धर्म निरपेक्ष होना चाहिए । ईश्वर और धर्म मनुष्य निर्मित संविधान से ऊपर नहीं हो सकते ।

-असभ्य यह जाना चाहता है कि ठेकेदार संविधान के होते हुये भी लोग आत्महत्यायें क्यों कर लिया करते हैं ? संविधान के होते हुये भी वह कौन सी व्यवस्था है जो संविधान से भी ऊपर है और जो किसी को आत्महत्या के निर्णय तक पहुँचने के लिए विवश कर दिया करती है ?
-असभ्य्य यह भी जानना चाहता है कि जिस संविधान को सर्वोपरि घोषित कर दिया गया, उसे कोई अलिखित प्रतिसंविधान प्रतिक्षण कैसे और क्यों आँख दिखाता रहता है ?
-क्या अलिखित प्रतिसंविधान डार्क मैटर का ही एक प्रभावी स्वरूप है ?

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