मंगलवार, 13 नवंबर 2018

सबरमलय



नवम्बर 2018 की एक सुबह उत्कल प्रांत के रायगढ़ा नगर की एक गली में मेरी भेंट होती है नागेंद्र साय से । रायगढ़ा में काले परिधान और माथे पर चंदन का लेप लगाये कई लोगों को आते-जाते देखा तो मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं सका । मैं एक छोटी सी दुकान में पहुँचता हूँ जहाँ काले कपड़े पहने नागेंद्र साय ने अभी-अभी अपनी दुकान खोली है । बातचीत हुयी तो उन्होंने बताया कि वे कन्नी (पहली बार अनुष्ठान करने वाले) हैं और अय्यप्पा स्वामी की पूजा के लिए 41 दिनों का अनुष्ठान (मण्डलम्) कर रहे हैं । इस अनुष्ठान के बाद वे सह्याद्रि पर्वतमाला के एक हिस्से में स्थित सबरीमाला (सबरमलय) के मंदिर में अय्यप्पा स्वामी के दर्शन करने जायेंगे । यहाँ वर्ष भर चलने वाली सामान्य पूजा को कुमकुम पूजा, वैशाख में होने वाली को विषुपूजा, माघ में होने वाली को मण्डलपूजा और मकर संक्रांति के दिन होने वाली पूजा को मकरविलक्कु पूजा कहते हैं ।

नागेंद्र साय 
पिछले कुछ दिनों से अक्षर से प्रारम्भ होने वाले सबरीमाला, स्वामी अय्यप्पा, स्त्री प्रवेश और सुप्रीम कोर्ट जैसे शब्द बहुत अधिक चर्चा में रहे हैं । मैंने तुरंत सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बारे में कन्नी स्वामी की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने कहा – “सबका अपना-अपना विचार है, दस से पचास आयु वर्ग की महिलाओं को यदि लगता है कि अय्यप्पा स्वामी के नियम को भंग करना उचित है तो यह उनका व्यक्तिगत मत है । मंदिर तो हर किसी के लिए खुला है, कोई भी जा सकता है किंतु मंदिर की आस्था के विषय पर लोगों को विचार करना चाहिये । मंदिर में प्रवेश करना और आस्था के साथ प्रवेश करना, दोनों अलग-अलग विषय हैं । पूजा के लिए प्रवेश करना है तो आस्था अनिवार्य है । आस्था के अभाव में केवल प्रवेश करने के हठ को पूरा किया जा सकता है किंतु तब पूजा की विधि और उद्देश्य कुछ भी पूरे नहीं हो सकेंगे । किसी भी देवस्थल में हठ, अहंकार, विद्रोह और नियमभंग जैसे विकारों का कोई स्थान नहीं होता । अय्यप्पा स्वामी ब्रह्मचारी हैं और पूजा के लिए सात्विक अनुष्ठान का विधान करते हैं”।
नागेंद्र साय ने अधिक जानकारी के लिए बाहर निकलकर आवाज़ दी – “गुरु स्वामी....”
गुरु स्वामी एक युवक हैं जो पिछले कई वर्षों से अय्यप्पा स्वामी के लिए अनुष्ठान करते आ रहे हैं । नागेंद्र जी उन्हीं की देखरेख में अपना अनुष्ठान कर रहे हैं ।
मैंने अपना प्रश्न गुरुस्वामी के सामने भी रखा । उन्होंने भी बिना किसी उत्तेजना के अपनी प्रतिक्रिया दी – “मंदिर के अपने नियम हैं, भक्तों को सोचना चाहिए कि वे नियम का पालन करें या नहीं, नियम भंग करने से उन्हें क्या उपलब्ध होगा! निषेध स्त्रियों का नहीं बल्कि केवल एक निश्चित आयु वर्ग की स्त्रियों का है । इसलिए सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के हठ पर सर्वाधिक चिंतन तो प्रवेशार्थी स्त्रियों को ही करना चाहिए”।
सबरीमाला के अय्यप्पा स्वामी की पूजा एक कठिन साधना (मण्डलम्) के साथ प्रतिवर्ष कार्तिक मास के कुछ दिन पहले से प्रारम्भ हो जाती है । पहली बार साधना करने वाले को कन्नी स्वामी कहा जाता है जिन्हें 41, 61 या 108 दिन तक पूरी तरह सात्विक जीवन व्यतीत कर स्वयं को सबरीमाला मंदिर में स्वामी अय्यप्पा के समक्ष प्रस्तुत होने के लिए पात्रता प्राप्त करनी होती है । यह एक कठिन अनुष्ठान है जिसमें पत्नी एवं घर की सभी स्त्रियों का योगदान भी समान होता है । यह सात्विक जीवन जीने का एक अभ्यास है जिससे सात्विकता के मानदण्ड स्थिर बने रहते हैं । गुरुस्वामी ने बताया कि साधक एक कच्चे नारियल में छेद कर उसके पानी को निकालकर उसे घी से भर कर पूजा सामग्री (नैवेद्य आदि) के साथ पोट्टली (इरामुडी) में रखकर मंदिर जाता है । नारियल फोड़ने पर यदि जमा हुआ घी नारियल के आकार का प्राप्त होता है तो इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है ।
और मजे की बात यह है कि अय्यप्पा स्वामी के मंदिर के पास एरुमेल्लि में वावर का एक मक़बरा भी है जिसके दर्शन के बिना स्वामी अय्यप्पा की पूजा पूरी नहीं मानी जाती ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.