सोमवार, 20 मई 2019

विभाजन


बलात् कब्ज़ा वाले कश्मीर के भी दो टुकड़े हो गये एक पी.ओ.के. और दूसरा ख़ूबसूरत हुंजा घाटी वाला गिलगित-बाल्टिस्तान । पाकिस्तान सरकार द्वारा किया गया यह बटवारा केवल चीन को ख़ुश करने के लिये है ।  जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर एक नया राज्य बनाये जाने की बहुत दूरदर्शी आवश्यकता है ...पता नहीं राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से इस पर कोई विचार हो भी रहा है या नहीं ! बुरा विभाजन हो गया, अच्छे विभाजन के बारे में हम कब सोचेंगे?  



मुझे पता है, इस विषय पर कश्मीरी अलगाववादी और उनके समर्थक धारा 370 की ढाल लेकर सामने आ जायेंगे । ढाल लेकर टूट पड़ने वाले बुद्धिजीवी और नीतिकार शिमला समझौते के परिप्रेक्ष्य में तब कोई प्रतिरोध नहीं करते जब पाकिस्तानी हुक्मरान गिलगित-बाल्टिस्तान को एक अलग सूबा बना देते हैं । यानी दुनिया की आँखों में धूल झोंकते हुये शिमला समझौते का उल्लंघन किया जा सकता है, कश्मीर घाटी में एथनिक जेनोसाइड किया जा सकता है, महबूबा और शबनम लोन जैसे लोग कश्मीर को भारत से अलग कर लेने की धमकी दे सकते हैं ...लेकिन भारत की बेहतरी के लिये धारा 370 समाप्त करने या लद्दाख को एक नया प्रांत बनाने के बारे में कोई पहल नहीं की जा सकती ।
हम भारतीय आत्ममुग्धता से पीड़ित रहने वाले लोग हैं इसलिये हमें बारबार इतिहास के पन्ने पलट कर देखने की आवश्यकता है । मेरा संकेत भारत विभाजन की ओर है ।  
तत्कालीन ब्रिटिश भारत में धार्मिक बहुलता के आधार पर भारत विभाजन की माँग की गयी थी । भारत विभाजन हो गया अब इस बात की क्या सुनिश्चितता कि स्वतंत्र भारत में धार्मिक समीकरण बदलने पर यह इतिहास कभी पुनः दोहराया नहीं जायेगा जबकि कई मुस्लिम नेता पिछले एक दशक से एक और भारत विभाजन की धमकी देते रहे हैं । मोहम्मद अली जिन्ना किसी समय भारतीय एकता के समर्थक हुआ करते थे, किंतु बाद में सत्ता और धार्मिक पहचान की अदम्य भूख के आगे वे झुक गये और भारत विभाजन की ज़िद पर अड़ गये । क्या यही इतिहास उन लोगों द्वारा नहीं दोहराया जा सकता जो आज भारत के समर्थक हैं ? मत भूलिये कि पिछले एक दशक से टी.वी. डिबेट्स पर आने वाले लोगों ने एक और भारत विभाजन के बीज बोने शुरू कर दिये हैं ।

जिन्हें यह भरोसा है कि अब भारत का और विभाजन नहीं होगा उन्हें इतिहास स्मरण रखने की आवश्यकता है ।
जब हिंदू और मुसलमान एक साथ मिलकर आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे थे तो किसी ने नहीं सोचा था कि कभी भारत का विभाजन भी होगा, किंतु विभाजन हुआ और वह भी बहुत नृशंसतापूर्वक । वर्ष 1947 में किसी ने नहीं सोचा था कि पाकिस्तान कश्मीर पर आक्रमण करके उसका एक बड़ा हिस्सा हड़प लेगा, किंतु ऐसा हुआ । वर्ष 1948 में किसी ने नहीं सोचा था कि पाकिस्तान कलत पर आक्रमण कर उसे पाकिस्तान में मिला लेगा, किंतु ऐसा हुआ और आज पूरा बलूचिस्तान पाकिस्तान से आज़ाद होने के लिये हाथ-पाँव मार रहा है । वर्ष 1962 में किसी ने नहीं सोचा था कि चीन कभी भारत पर आक्रमण भी कर सकता है, किंतु आक्रमण हुआ और हमने भारत के लिये सामरिक महत्व का दो हजार वर्ग किलोमीटर का लद्दाखी भूभाग अक्साई-चिन खो दिया । वर्ष 1965 में किसी ने नहीं सोचा था कि जरा सा पाकिस्तान भारत पर आक्रमण करने का कभी दुस्साहस भी कर सकेगा किंतु यह दुस्साहस हुआ । और इससे भी पहले 1919 में जब ब्रिटिश हुकूमत ने गांधी जी से प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीयों को ब्रिटेन की ओर से युद्ध में सम्मिलित होने का सहयोग माँगा और पुरस्कार में भारत को आज़ाद कर देने का वादा किया तब भी किसी ने नहीं सोचा था कि ऊधम सिंह, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों की हिंसा का विरोधी और अहिंसा का पुजारी महात्मा भारतीय जवानों को हिंसा करने के लिये ब्रिटेन का साथ देने की घर-घर जाकर वकालत करेगा और युद्ध के बाद अंग्रेज़ अपने वादे से पूरी तरह मुकर जायेंगे । यहाँ यह भी स्मरणीय है कि जो गांधी देश की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेज़ों के विरुद्ध हथियार उठाने को हिंसा मानते थे वही गांधी आज़ादी का पुरस्कार पाने के लिये भारतीय जवानों को विश्वयुद्ध में अंग्रेज़ों की ओर से हथियार उठाकर हिंसा करने की प्रेरणा देने को उचित मान रहे थे ।

इतिहास में कुछ और पीछे चलते हैं, वर्ष 1905 में जब लॉर्ड कर्ज़न ने धार्मिक बहुलता के आधार पर बंगाल का विभाजन किया तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह 1946-47 के भारत विभाजन का पूर्वाभ्यास है और हिंदूबहुल पश्चिमी बंगाल आगे चलकर मई 2019 में एक बार फिर इस्लामिक बहुल प्रांत बनने की ओर तीव्रता से बढ़ता दिखायी देगा और हमारी माननीया सांसद श्रीमती साज़दा अहमद बंगाल में न केवल रामनाम और हिंदूवाद के पूर्ण बहिष्कार की घोषणा कर देंगी बल्कि बंगाल में रोहिंग्या मुस्लिमों को बसाने की सार्वजनिक प्रतिज्ञा भी करेंगी, किंतु यह सब हुआ ।   

1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.