सेक्युलरिज़्म
यानी सिलेक्टिव धार्मिक असहिष्णुता, …कम से कम भारत में तो सेक्युलरिज़्म
का अभी तक यही स्वरूप हम सबके सामने प्रकट होता रहा है । भारतविरोधी लोग सेक्युलरिज़्म
को नई पीढ़ी के बीच आधुनिक फ़ैशन के रूप में स्थापित करने में कामयाब हुये हैं । आज़ादी
के बाद से ही हमारी नई पीढ़ियाँ सेक्युलरिज़्म को हुलसते हुये आगे बढ़कर स्वीकार करती
रही हैं और इसे सनातनधर्म एवं भारतीय मूल्यों के विरुद्ध एक कुत्सित और हिंसक आंदोलन
के रूप में अपनाती रही हैं । हमारी नयी पीढ़ियाँ हमारे विरुद्ध बड़ी उग्रता के साथ
उठकर खड़ी होती रही हैं । यह भारत पर इण्डिया की बहुत बड़ी जीत है जिसके दूरगामी
परिणाम शुभ नहीं हैं । इसीलिए भारत में सेक्युलरिज़्म के औचित्य ने मुझे हमेशा
परेशान किया है । सेक्युलरिज़्म की सिगरेट भारत के फेफड़ों को लगातार खोखला करती जा
रही है और हमें इस सिगरेट की लत लग चुकी है ।
हिंदी में
यदि सेक्युलरिज़्म का अर्थ “धर्मनिरपेक्षता” है तो यह एक बहुत बड़ा वैचारिक छल है
। धर्मनिरपेक्ष कुछ भी नहीं होता, न मनुष्य और न ब्रह्माण्ड के
अन्य सजीव और निर्जीव तत्व । ब्रह्माण्ड की हर चीज किसी न किसी वैज्ञानिक सिद्धांत
के सापेक्ष ही अपने अस्तित्व में रह पाती है । धर्म को बहुत व्यापक अर्थों और संदर्भों
में ग्रहण किया जाना चाहिए । यह बात अलग है कि आमतौर पर धर्म को बहुत ही संकुचित अर्थों
में ग्रहण किया जाता है जो अन्ततः कलह और युद्धों के रूप में ही फलित होता है । मध्य
एशियाई और पश्चिमी देशों का इतिहास धार्मिक उत्पीड़न की क्रूर घटनाओं से भरा पड़ा है
। स्वाधीनता के समय से ही पाकिस्तान में निरंतर हो रहे हिंदुओं के धार्मिक उत्पीड़न
और पालघर में हिंदू-विरोध की आग में क्रूरतापूर्वक झोंक दिए गये संतों के संदर्भ में
आज मैं व्यथित होकर धर्म के इसी संकुचित स्वरूप पर सोचने के लिए विवश हुआ हूँ । भारत
में ओढ़ ली गई धर्मनिरपेक्षता के औचित्य पर भी आज पूरे भारत के लिए चिंतन का अवसर है
।
सनातन धर्म
अपने आप में उदार, समावेशी और सहिष्णु जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करता है जिसके कारण भारत में
सेक्युलरिज़्म की आवश्यकता का कोई सैद्धांतिक और व्यावहारिक औचित्य नहीं बनता । यह छद्म
राजनीतिज्ञों की एक निकृष्ट आवश्यकता हो सकती है किंतु तब धर्म से इसका कोई वास्तविक
सम्बंध नहीं हो सकता सिवाय इसके कि विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच वैमनस्यता उत्पन्न
कर खण्डित कर दिए गए समाज पर अपनी हुक़ूमत क़ायम की जाय ।
पिछले
पाँच-छह सालों से मुसलमानों के दिल-ओ-दिमाग में इण्डियन राजनीतिज्ञ यह भरते रहे
हैं कि मोदी इण्डिया को भारत बनाना चाहते हैं और फिर भारत को एक हिंदू राष्ट्र ...जहाँ
मुसलमानों को उत्पीड़ित किया जायेगा और उनका जीना मुश्किल हो जायेगा । भारत से लेकर
विदेशों तक मोदी की हर नीति का अंधविरोध प्रदर्शन इनकी इसी रुग्ण मानसिकता का प्रतीक
है ।
जिस भारत
ने विभाजन के समय मुसलमानों को अपनी ज़मीन के दो हिस्से दे देने के बाद भी भारत न छोड़ने
के लिए विनती की उस भारत पर इस तरह का आरोप मढ़ना अकृतज्ञता और धूर्तता का ही द्योतक
हो सकता है । आख़िर हिंदुओं के प्रति इतनी नफ़रत क्यों ? मुसलमानों
का एक उग्र समूह इण्डिया को मुस्लिमराष्ट्र बनाने की घोषणा करता है, शरीयत कानून लागू करने की माँग करता है, इण्डिया के संविधान
और अदालत को मानने से इंकार करता है ...और निर्लज्जतापूर्वक यह दुष्प्रचार करता है
कि वह भारत को हिंदूराष्ट्र नहीं बनने देगा । यानी यह गैंग इण्डिया को इस्लामिक राष्ट्र
बनाने के लिए ख़ून बहा देगा लेकिन उसे न तो भारत बनने देगा और न हिंदू राष्ट्र । यह
कैसी ज़िद है, आख़िर हिंदुस्थान को हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं होना
चाहिए ? हिंदुओं को उनकी राष्ट्रीय पहचान क्यों नहीं मिलनी चाहिये
?
मैं स्पष्ट
कर दूँ कि सेक्युलरिज़्म के निर्लज्ज छलावे के बाद अब इण्डिया को हिंदूराष्ट्र बनाना
वर्तमान विषाक्त कर दिए गए समय की विवश माँग हो गयी है और यह माँग इण्डिया में रह रहे
सभी धार्मिक समुदायों के हित में होगी । इस्लाम को बचाने के लिए इस देश को “सनातनधर्मी
हिंदूराष्ट्र भारत” बनाना आवश्यक है अन्यथा अन्य मुस्लिम बहुल
देशों की तरह यहाँ भी कभी शांति नहीं स्थापित हो सकेगी ।
“सनातनधर्मी हिंदूराष्ट्र भारत” की परिस्थितिजन्य
वर्तमान अवधारणा सच्चे अर्थों में एक ऐसे राज्य की स्थापना करना है जहाँ रहने वाले
सभी लोगों का जीवन अपने-अपने धर्मों के अनुरूप धर्मसापेक्ष होगा और हर नागरिक परधर्मों
के प्रति सहिष्णु तो होगा किंतु कलियुग के पापाचार को देखते हुये इस नये भारत में अन्य
धार्मिक समुदायों के बीच जाकर अपने धार्मिक विचारों का प्रचार नहीं कर सकेगा ।
भारत ही नहीं दुनिया के किसी भी देश में अपने धार्मिक सिद्धांतों और विचारों को
अन्य धार्मिक समुदायों के बीच जाकर प्रचारित करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा
जा सकता । ऐसा करने से सुख-शांति स्थापित करने के स्थान पर अशांति और उपद्रव का
वातावरण ही निर्मित होता है । दुनिया भर में होते रहने वाले धार्मिक दंगों और
युद्धों का इतिहास इस बात का साक्षात प्रमाण है । किसी भी राष्ट्र की शांति के लिए
आवश्यक है कि धार्मिक प्रचार और धर्मांतरण के कृत्य पूरी तरह धार्मिक और सामाजिक अपराध
माने जायँ ।
यह एक
गम्भीर वैचारिक त्रासदी है कि दुनिया भर में सेक्युलरिज़्म की दूषित और विषाक्त ढाल
के सहारे पारम्परिक स्वधर्मों के प्रति धार्मिक विद्वेष उत्पन्न करते हुये परधर्म को
स्वीकार करने के लिए लोगों को प्रेरित किए जाने की निकृष्ट परम्परा स्थापित कर दी गयी
है । जब हम अन्य धर्मावलम्बियों के बीच जाकर अपने धर्म विशेष का प्रचार करते हैं और
लोगों को अपना पारम्परिक धर्म छोड़कर धर्मांतरित हो जाने के लिए प्रेरित करते हैं तो
उसी क्षण धर्म की पवित्रता और परधर्म के प्रति सहिष्णुता का अंत हो जाता है । धार्मिक
प्रचार के दौरान लोगों के मन में धार्मिक भेदभाव के विद्वेषपूर्ण बीजारोपण की घटनाओं
की पुनरावृत्तियों की उपेक्षा नहीं की जा सकती । दुर्भाग्य से, सेक्युलरिज़्म
का यही स्वरूप पूरी दुनिया वर्षों से देखती आ रही है ।
आख़िर
धर्मांतरण के लिए किसी को प्रेरित करने की आवश्यकता ही क्या है ? आप
किसी समुदाय के धर्म को निकृष्ट और अपने धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास
करके धर्मों के प्रति किस सहिष्णुता का प्रदर्शन करते हैं ? सनातनधर्मी
हिंदुओं ने कभी भी किसी समुदाय की धर्मालोचना करते हुये धार्मिक अविश्वास उत्पन्न करने
और सनातनधर्म के प्रति अन्य धर्मावलम्बियों को सम्मोहित करने का कोई प्रयास नहीं किया
क्योंकि ऐसा करना सनातनधर्म की अवधारणा और पवित्रता के विरुद्ध है । भारत को हिंदू
राष्ट्र बनाने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि यहाँ अन्य धर्मावलम्बियों के साथ किसी
तरह का कोई भेदभाव किया जायेगा या उन्हें उत्पीड़ित किया जायेगा । हिंदू राष्ट्र की
स्थापना का अभिप्राय केवल इतना है कि भारत के लोग अपनी धार्मिक विरासत, आदर्शों और जीवनमूल्यों पर छलपूर्वक किए जाने वाले आघातों और आक्रमणों को
रोक सकें और भारत भूमि को अब और खण्डित होने से बचा सकें ।