गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

भारत पर बलोचों और पख़्तूनों का ऋण...


पैंतीस साल की तरुणी क़रीमा बलोच अब इस दुनिया में नहीं है । पाकिस्तानी सेना द्वारा की जा रही बलोचों के साथ अमानवीय प्रताड़नाओं और निर्दोष युवाओं की हत्या के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाली बलोच एक्टीविस्ट क़रीमा बलोच को अपहरण और तीन दिन तक प्रताड़नाओं के बाद कनाडा में मार दिया गया । करीमा की किस्मत महबूबा मुफ़्ती जैसी नहीं थी । दोनों विरोध के स्वर उठाती रही हैं किंतु करीमा को मार दिया गया, जबकि भारत में रहते तक महबूबा की ज़िंदगी को कोई ख़तरा नहीं है । करीमा ने उस देश की सेना के अत्याचारों का विरोध किया जिसने उसके देश पर हमला करके उसे बलात अपने कब्ज़े में ले लिया है । महबूबा अपने ही देश की उस सेना का विरोध करती रही हैं जो उन्हें संरक्षण देती रही है । करीमा आक्रमणकारी देश पाकिस्तान से आज़ादी चाहती थीं । महबूबा अपने ही देश भारत से आज़ादी चाहती हैं । करीमा का विरोध क्रांति है, महबूबा का विरोध बगावत है । करीमा की क्रांति उस बलोच समाज के लिये है जो निर्दोष है और जिसके अधिकारों को पिछले तिहत्तर सालों से कुचला जाता रहा है । महबूबा की बगावत उस देश के विरुद्ध है जिसने उन्हें वह सब कुछ दिया जिसकी वह कभी वास्तविक हकदार नहीं रहीं ।

भारत और पाकिस्तान में यह भी एक मौलिक अंतर है कि वहाँ विरोध के स्वरों को बुरी तरह कुचल दिया जाता है जबकि भारत में विरोध के स्वर रातोरात सेलिब्रिटी हो जाते हैं और उन्हें वी.आई.पी. सुविधायें दे दी जाती हैं ।

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान की तरह करीमा भी भारत को बलोचों का कर्ज़दार बनाकर विदा हो गयीं । इसी साल रक्षाबंधन पर करीमा ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राखी भेजकर बलोचों की आवाज़ की रक्षा की याचना की थी ।

अखण्ड भारत के पक्षधर रहे ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को पाकिस्तान सरकार ने जेल में डाल दिया । लगभग दो दशक तक पाकिस्तान की जेल में रहने के बाद जेल से छूटते ही सीमांत गांधी 1970 में सबसे पहले भारत ही आये थे और उन्होंने पख़्तूनों को पाकिस्तान से आज़ादी दिलाने की लड़ाई में साथ देने की अपील की थी । भारत के स्वतंत्रता आंदोलन संग्राम में उनके योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता । ख़ान को अपने अंतिम दिनों तक भारत से एक ही मार्मिक शिकायत रही थी – “हमें भेड़ियों के लिये छोड़ दिया”।

मोतीहारी वाले मिसिर जी मानते हैं कि करीमा से बहुत पहले बादशाह ख़ान भी जाते-जाते शेष भारत को पख़्तूनों का कर्ज़दार बना गये थे । इस तरह अखण्ड भारत की माँग करने वाले बलोचों और पख़्तूनों का अपने मातृदेश भारत पर बहुत बड़ा ऋण है । बलोचों और पख़्तूनों के प्रति उनके मातृदेश भारत का नैतिक दायित्व बनता है जिसे गम्भीरता से पूरा किया जाना चाहिये ।   

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