धूप में
तपिश
तब भी
थी, आज भी है
हवायें
तब भी
चलती थीं, आज भी चलती हैं
जल
तब भी
प्यास बुझाता था, आज भी बुझाता है
चिड़ियाँ
तब भी
कलरव करती थीं, आज भी करती हैं
केवल समय
कुछ और
आगे बढ़ गया है ।
गर्भ
में
आशाओं
का भण्डार लिये
एक कली
लिखकर
अपने पीछे एक उत्तराधिकार
मुरझा
कर
झर चुकी
है
झरी
हुयी पंखुड़ियों को
अब कुछ
भी अच्छा नहीं लगता
न धूप, न हवा, न जल और न चिड़ियों का कलरव ।
काल
सापेक्ष है यह सम्पूर्ण यात्रा
मिलन और विरह की तरह ।
वाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
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