रविवार, 5 दिसंबर 2021

मानसिक पक्षाघात

         पाकिस्तान की एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में काम करने वाले श्रीलंका के एक अधिकारी की, ईशनिंदा का आरोप लगाने वाली भीड़ ने क्रूरतापूर्वक पिटायी की और फिर उसे सार्वजनिकरूप से जीवित ही जला दिया । उधर, छोटी जोत के किसान, मथुरानिवासी डॉक्टर सुभाष गौतम कृषि कानूनों को निरस्त किये जाने से दुःखी हैं तो वहीं मथुरा जिले के ही जाटवबहुल गाँव के एक किसान ने कैमरे के सामने टीवी वालों को बताया कि रोटी के लिये वह इस्लामिक सत्ता को स्वीकार करेगा । उसकी दृष्टि में रोटी के सामने धर्म, देश, संस्कृति आदि मूल्यहीन बातें हैं । मोतीहारी वाले मिसिर जी इस बात से बहुत क्षुब्ध और निराश हैं कि भारत का हिन्दू अपने ही सांस्कृतिक मूल्यों के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ है ।

शायद यह दुनिया का एकलौता ऐसा अभियान है जो पिछले डेढ़ हजार साल से अनवरत चला आ रहा है । साम्राज्यों और शासनतंत्रों की उथल-पुथल के प्रतिकूल प्रभावों से यह अभियान हर काल में अछूता रहा । इस बीच मानसिक पक्षाघात के बारम्बार आक्रमण से दुनिया भर की विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों में बड़ी उथल-पुथल होती रही, जिसके परिणामस्वरूप सभी महाद्वीपों के विभिन्न देशों की भौगोलिक और राजनीतिक सीमायें बनती, बिगड़ती और सिमटती रहीं । इस बीच यहूदियों ने अपने मानसिक पक्षाघात से उबरने का संकल्प किया और स्वस्थ ही नहीं हुये बल्कि अपने अस्तित्व का परचम भी लहराया । फ़ारस, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड और भारत जैसे देशों ने न तो इस पक्षाघात से उबरने का कोई संकल्प किया और न जीवित रह सके । परिणामस्वरूप इन देशों पर इस्लामिक विचारधारा अपना प्रभाव जमाती चली गयी और इण्डोनेशिया को छोड़कर शेष कई देशों ने अपने मूल्य खो दिये । भारत ने अपने कई टुकड़े हो जाने दिये, भारत के खण्डित होने की प्रक्रिया अभी तक थमी नहीं है ।

हम डेढ़ हजार साल से अनवरत चले आ रहे एक सुनियोजित अभियान के शिकार होते रहे । वे अपने असहिष्णु मूल्यों के साथ हिंसा के पथ पर अग्रसर होते रहे और शेष दुनिया को तलवार के आगे झुकने के लिये विवश करते रहे । हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक और अध्यात्मिक आदि परम्पराओं पर एक-एक कर अतिक्रमण होता रहा और हम इस अतिक्रमण का परिणामकारक प्रतिरोध नहीं कर सके । उन्होंने हमारे आराधना स्थलों को तोड़ा और उनके ऊपर अपने आतंकी केंद्र स्थापित कर लिये, हम सहिष्णु के नाम पर कायर बने रहे । आज भी धर्म के बहाने आतंकी गतिविधियों के लिये शासकीय भूमि पर उनके कब्ज़े हो रहे हैं और हम रोटी के लिये आज भी मुसलमान बनने के लिये तैयार हो रहे हैं ।

ईशनिंदा को लेकर धरती के एक कुनबे ने अपने हिस्से में असीमित अधिकार बटोर लिये हैं । आज तक किसी ईश्वर ने अपनी निंदा पर कोई विरोध नहीं किया इसलिये कुछ लोगों ने स्वयं को ईश्वर का ठेकेदार मानते हुये ईशनिंदकों को क्रूरतापूर्वक दण्ड देने की अपनी स्वच्छिक शक्ति को अपनी धार्मिक शक्ति घोषित कर दिया है ।   

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