शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

सच्चे राष्ट्रसेवक के निधन पर ख़ुशी?

         दिनांक 8 दिसम्बर 2021 का दिन भारत में रह रहे कुछ अभारतीयों के लिये ख़ुशी का पैगाम ले कर आया जब सी.डी.एस. बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधूलिका रावत सहित ग्यारह अन्य सैन्य अधिकारियों ने अप्रत्याशितरूप से स्वर्गारोहण किया । कुन्नूर में उनका चोपर दुर्घटनाग्रस्त हो गया और पल भर में ही सभी लोग आग की गोद में समा गए, यह सब बहुत ही पीड़ादायक था । भारत के लिये यह एक बहुत बड़ी क्षति है । देश के सच्चे सपूत अब हमारे बीच नहीं हैं, जबकि एक सैन्य अधिकारी अभी भी जीवन और मृत्यु के बीच संघर्षरत हैं ।

इस पीड़ादायी दुर्घटना से जहाँ देश-विदेश के लोग अवाक और दुःखी हुये, वहीं घटना के बाद सोशल मीडिया पर प्रकाशित कुछ लोगों की नकारात्मक टिप्पणियों ने भारत को और भी अवाक एवं दुःखी कर दिया । इन नकारात्मक टिप्पणियों ने भारत को सूचित कर दिया है कि भारत में भारत के शत्रु कितने निर्लज्ज और दुस्साहसी हो गये हैं । भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और कनाडा सहित पूरी दुनिया ने देखा कि भारत में भारत की जड़ें खोदने वाले लोग कितनी जड़ें खोद चुके हैं ...और कितनी अभी खोद रहे हैं ।

वीर बलिदानी बिपिन रावत के निधन से भारत के कुछ नेता, कुछ अभिनेता, कुछ पत्रकार, इस्लाम समर्थक कुछ सेक्युलर्स और कुछ इस्लामिक ज़िहादी परम प्रसन्न हुये, उन्होंने घोर निर्लज्जता का डंका बजाते हुये भारतीय सेना, वीर बिपिन रावत, वीर सैन्य अधिकारियों और प्रधानमंत्री के बारे में अपमानजनक टिप्पणियाँ करते हुये अपनी प्रसन्नता व्यक्त की । हर किसी ने बड़ी हैरानी से भारत में पल रहे विषैले नागों को भारत के विरुद्ध सोशल मीडिया पर विषवमन करते हुये देखा । देश के सच्चे सपूत बिपिन रावत के निधन पर जब कोई कहे – “हिसाब चुकता”, तो इन दो शब्दों के निहितार्थ की अनदेखी नहीं की जा सकती । क्या ऐसे किसी भी व्यक्ति को भारत में रहने का कोई अधिकार होना चाहिये?

ओस्मानिया विश्वविद्यालय के प्राध्यापक मुस्तफ़ा रियाज़ हैदराबादी ने सोशल मीडिया पर लिखा – “मर गया, अब मोदी की बारी है, इंशाअल्ला”। विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले एक प्राध्यापक की यह भाषा उसके उन कुसंस्कारों की झलक दिखाती है जो भारत और भारतीय सेना के विरुद्ध नफ़रत से भरी हुयी है । भारत की रक्षा के लिये अपना सर्वस्व समर्पित कर देने को हर पल तैयार रहने वाले बिपिन रावत के प्रति इतना विषवमन क्या हमें भारतविरोधियों की दुष्ट योजनाओं और उनके अभियानों के प्रति आगाह नहीं करते हैं!  

भारत के एक अन्य नागरिक आसिफ़ मियाँ ने ख़ुशी व्यक्त की – “दुःखी होने का कोई कारण नहीं क्योंकि यह एक मिनी ईद की तरह है”।

जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1938 में स्थापित इण्डियन नेशनल कांग्रेस के नियंत्रण वाली कम्पनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेडसे प्रकाशित होने वाले चर्चित समाचारपत्र नेशनल हेरल्ड, जिसका स्वामित्व यंग इण्डिया लिमिटेड कम्पनीके पास है, की वर्तमान सम्पादिका ऐश्लिन मैथ्यू ने सैन्य अधिकारियों के निधन को दैवीय हस्तक्षेपनिरूपित करते हुये अपनी ख़ुशी की अभिव्यक्ति – “Devine interventions” लिखकर की ।

कांग्रेस नेता अशोक सिंह गार्चा ने फरमाया – “सेना प्रमुख (बिपिन रावत) संघी प्रमुख बन गये और उन्होंने देश के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार के साथ विश्वासघात किया”।

ऐसे लोगों की दृष्टि में धर्मनिरपेक्षता का केवल एक ही अर्थ होता है, इस्लाम का निरंकुश विस्तार । भारत और भारतीयता के इन शत्रुओं से हजार कदम आगे बढ़कर सेना से सेवानिवृत्त हुये कर्नल बलजीत बक्शी निर्लज्जतापूर्वक लिखते हैं – “Karma has its own way of dealing with people”.

एक और पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ़्टीनेंट कर्नल अनिल दुहून भारत की तीनों सेनाओं के सर्वोच्च अधिकारी के निधन पर बगावती तेवर में अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुये लिखते हैं – “Karm always hits back”.

भारत के इन पूर्व सैन्य अधिकारियों का आरोप है कि भारतीय सेना के जवानों ने बिपिन रावत के नेतृत्व में कश्मीर में पत्थरबाजों और अलगाववादी आतंकियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करते हुये कश्मीर पर पाकिस्तान का अधिकार नहीं होने दिया । इन पूर्व सैन्य अधिकारियों ने तब कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की जब कश्मीरी युवा सेना पर पत्थर बरसाते थे और पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी सेना पर घातक हमले करते थे । हम अनुमान कर सकते हैं कि इस तरह के सैन्य अधिकारियों ने अपने सेवाकाल में देश के साथ क्या-क्या नहीं किया होगा! इन पूर्व सैन्य अधिकारियों की निर्लज्ज अभिव्यक्ति हमें सावधान करती है और हैरान भी ।

सेना प्रमुख के निधन के बाद इस तरह की विश्वासघाती प्रतिक्रियाओं पर आम नागरिकों की प्रतिक्रिया वातावरण को उत्तेजना से भर देती है, आम नागरिक चाहता है कि ऐसे लोगों को देशद्रोह के आरोप में फाँसी की सजा होनी ही चाहिये, अन्यथा यह विषबेल बढ़ती ही रहेगी । पूर्व सैन्य अधिकारियों और उच्चशिक्षित लोगों की विश्वासघाती टिप्पणियाँ हमें आहत करती हैं, हमारा धैर्य चुक गया है, हमारी सहनशीलता को ललकारा जा रहा है । हम ऐसे विश्वासघाती और भारतविरोधी भारतीयों को भारत का नागरिक होने के योग्य नहीं मानते । 

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