शनिवार, 28 मई 2022

मंदिर-मस्ज़िद विवाद का समाधान

सुश्री अम्बर जैदी ने अपने खुले मंच पर “मंदिर-मस्ज़िद विवाद के समाधान” पर लोगों के विचारों का आह्वान किया है। भारत के गिने-चुने राष्ट्रवादी मुसलमानों में सौम्य स्वभाव वाली अम्बर जैदी का अपना एक अलग स्थान है। बहुत से लोग उन्हें परिवर्तनकारी मानते हैं जो भारत के लिए आवश्यक है। 

धार्मिक-स्थलों का विवाद एक वैश्विक समस्या है। येरुशलम को लेकर यहूदियों और मुसलमानों में एक बार फिर ठन गयी है। हमें धार्मिक स्थलों के स्पिरिचुअल या रिलीजियस नहीं, बल्कि सांसारिक स्वरूप पर विचार करना होगा।

येरुशलम कभी यहूदियों का तीर्थस्थल हुआ करता था, यही उसकी प्राचीनता और ऐतिहासिक मौलिकता है। क्रिश्चियनिटी के आगमन के साथ उसका एक हिस्सेदार और हो गया, फिर इस्लाम के आगमन के साथ उसका एक तीसरा हिस्सेदार भी हो गया। आज यह तीन हिस्सेदारों के बीच विवाद का स्थल है। ये हिस्सेदार कौन हैं? कहाँ से आये हैं? इनकी मौलिकता क्या है? एक के धर्मस्थल पर दूसरे का अतिक्रमण क्यों हुआ? नवागंतुकों ने अपने धर्मस्थल अविवादित स्थल पर क्यों नहीं बनाए? नवागंतुकों ने दूसरे धर्मस्थलों पर अतिक्रमण क्यों किया? स्पष्ट उत्तर वाले इन प्रश्नों को विवाद के जंगल में धकेला जा सकता है और फिर इन विवादों को अदालत में ले जाया जा सकता हैइस सिद्धांत धता बताते हुये कि जहाँ धर्म है वहाँ विवाद नहीं हो सकता, जहाँ विवाद है वहाँ धर्म नहीं ठहर सकता।

आज तो भारत के हजारों धार्मिकस्थलों से धार्मिकता का लोप हो चुका है। वहाँ जो है वह वर्चस्व और पहचान का संघर्ष है, सत्ता का संघर्ष है। धार्मिकता का उससे कोई लेना-देना नहीं है।

इस बात के कई साक्ष्य हैं कि इस्लामिक आक्रांताओं ने सनातनी धार्मिक-स्थलों को लूटा, तोड़ा और उन पर मस्ज़िद, मज़ार या दरगाह जैसी कुछ इमारतें खड़ी कीं। भारत के मुसलमान सनातन पर इस्लामिक विजय का प्रतीक मानते हुये इन्हें बनाए रखना चाहते हैं। मुसलमानों के लिए भारत में जो विजय के प्रतीक हैं वही सनातनियों के लिए उनके पराभव के प्रतीक हैं। दोनों अपनी पहचान को लेकर संघर्षरत हैं। इस पहचान के सहारे वे आगे की यात्रा तय करना चाहते हैं, जिसका लक्ष्य है सत्ता की प्राप्ति। एक को शरीया चाहिए, दूसरे को सनातन की सुरक्षा और स्वाभिमान चाहिये।

हमें यह भी सोचना होगा कि भारत में पारसी भी हैं, भारत के विकास में उनकी सबसे बड़ी भूमिका आज भी बनी हुयी है, उन्हें लेकर कभी कोई धार्मिक विवाद क्यों नहीं होता!

सनातनियों को यदि उनके धार्मिक स्थल वापस न मिले तो भारत का इतिहास समाप्त हो जायेगा, भारतीयता की पहचान समाप्त हो जायेगी, वे सारी चीजें... वे सारे मूल्य समाप्त हो जाएँगे जिनके बल पर भारतीय सभ्यता को विश्व की प्राचीनतम सभ्यता और श्रेष्ठतम संस्कृति वाले देश का गौरव प्राप्त हो चुका है। सनातनियों को यदि उनके धार्मिक स्थल वापस न मिले तो भारत एक दिन एक नया पाकिस्तान बन जायेगा। एक और पाकिस्तान बन जाने में भी कोई हर्ज़ नहीं है ब-शर्ते यह नया पाकिस्तान इण्डोनिशिया की तरह भारतीय बना रहे। किंतु ऐसा यदि सम्भव हो पाता तो भारत खण्डित ही नहीं होता, भारत और पाकिस्तान में धार्मिक दंगे और हत्याएँ नहीं होतीं। सनातनियों को यदि उनके धार्मिक स्थल वापस न मिले तो एक दिन भारत भी मध्य एशिया के मुस्लिम देशों की श्रेणी में जाकर खड़ा हो जायेगा जहाँ वर्षों तक होने वाले गृह-युद्धों में होने वाली तबाही को पूरी दुनिया ने देखा है।

भारत के सनातनियों ने ज़र्मनी और पाकिस्तान में हुये तहर्रुश-गेमिया के किस्से सुने हैं, रक्का के बाजारों में कुर्द और यज़ीदी स्त्रियों की ख़रीद-फ़रोख़्त की ख़बरें पढ़ी हैं, भारत में यौनदुष्कर्मों को अपनी आँखों के सामने घटित होते हुये देखा है, कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थियों के रूप में बेघर देखा है... और यह भी सुना है कि हुसैन की हत्या किसी सनातनी, ईसाई, यहूदी, कुर्द या पारसी ने नहीं बल्कि कुछ मुसलमानों ने ही की थी। भारत के सनातनियों ने सेना पर स्टोन पेल्टिंग देखी है, हैवानियत देखी है, जेनोसाइड देखा है, बदलती हुयी डेमोग्रफ़ी और उनके परिणामों को भोगा है, आतंकवादियों के समर्थन में आयोजित उग्र प्रदर्शन देखे हैं, भारत के टुकड़े किए जाने के नारे सुने हैं, “एक भी हिन्दू नहीं बचेगा” जैसी दहशत भरी धमकियाँ सुनी हैं.... यह सब देख-देख कर भारत के भविष्य को लेकर सनातनियों की चिंता स्वाभाविक है। धर्म तो नितांत व्यक्तिगत आचरण है, प्रश्न देश की सुरक्षा और भारत की प्राचीनतम सभ्यता की पहचान को लेकर है। अरबी सभ्यता भारत की पहचान नहीं हो सकती। अरबी जीवनशैली भारत की जीवनशैली नहीं हो सकती। हम भारत की नदियों को रेत में तब्दील नहीं कर सकते। हम भारत में गायों की हत्या कर ऊँटों से काम नहीं चला सकते। हम भारत की प्रकृति को उसी रूप में बनाये रखना चाहते हैं जिस रूप में कभी वह जानी जाती रही है, और जिसके कारण भारत “भारत” रहा है।

समाधान

एक देश-एक विधान! भारत की प्राचीन पहचान का संरक्षण और संवर्द्धन! भारत के इतिहास का पुनर्लेखन। और मेहमान का सम्मान ब-शर्ते वह मेज़बान के घर में अपनी हुकूमत न चलाने लगे। 

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