रविवार, 1 जनवरी 2023

सांस्कृतिक क्षरण

        ईसाई नव वर्ष 2022 की अंतिम अर्धरात्रि, पूरा आर्यावर्त हर्षोल्लास में डूब गया... मुझे छोड़कर। दीपावली पर पटाख़ों से होने वाले वायुप्रदूषण से पर्यावरण को होने वाली अपूरणीय क्षति पर भाषण देने और कार्यशालायें आयोजित करने वाले महाविद्वान भी ईसाई नववर्ष पर पटाखों का आनंद लेते रहे। पर्यावरण की चिंताओं से मुक्त, कहीं कोई निषेध नहीं, कोई भाषण नहीं, कोई अनुरोध नहीं...  । पर्यावरण का यह धर्मनिरपेक्ष स्वरूप चिंतनीय होना चाहिये ...जो नहीं है, वैश्विक स्तर पर कहीं भी नहीं है।

ईसाई नववर्ष अर्धरात्रि के बाद से ही प्रारम्भ हुआ माना जाता है... भोर होने के पहले से ही बधाइयों और शुभकामनाओं की वर्षा प्रारम्भ हो गयी है। सनातन नववर्ष चैत्र प्रतिपदा को सूर्य की प्रथम किरणों के साथ प्रारम्भ हुआ माना जाता है, अर्धरात्रि के बाद से नहीं। मैंने कुछ लोगों को रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता भेज दी है।

मैं इसे सांस्कृतिक क्षरण मानता हूँ जो अपनी गौरवशाली और वैज्ञानिक परम्पराओं पर विदेशी अवैज्ञानिक और आयातित परम्पराओं के वर्चस्व का कारण बन गया है।

सांस्कृतिक क्षरण एक ऐसा कैंसर है जो समाज और राष्ट्र की स्वस्थ इकाइयों की हत्या के मूल्य पर पल्लवित और फलित होता है जिसका अंतिम परिणाम होता है सभ्यांतरण और राष्ट्रांतरण। हमने देखा है ईसाई नववर्ष के सामने सनातन नववर्ष का उल्लास बहुत फीका पड़ता जा रहा है मानो वेंटीलेटर पर अंतिम साँसे ले रहा कोई रोगी। भारत को जीवित रखने के लिए हमें इस रोगी की प्राणरक्षा करनी ही होगी।

ईसा मसीह से एक जनवरी का कोई सम्बंध नहीं, ईसाई देशों में भी नया वित्त वर्ष एक अप्रैल से ही प्रारम्भ माना जाता है। तथापि एक जनवरी से नव वर्ष मनाया जाना एक अंधानुकरण और वैश्विक हठ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। आइये! हम संकल्प लें कि आने वाले चैत्र प्रतिपदा को हम सब मिलकर पूरे हर्षोल्लास और विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ नववर्ष मनाएँगे।

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