पिछले तीन वर्षों में कोरोना ने अपनी प्रभूत वंशवृद्धि करने में सफलता प्राप्त कर ली है। न जाने कितनी औषधियों और वैक्सीन्स का सफलतापूर्वक सामना करते हुये नये-नये नामों के साथ आने वाले वैरिएण्ट्स ने पूरे विश्व को भयभीत बनाये रखा। चिकित्सा छात्रों के लिए उन सबके नाम याद रख पाना भी भारी होने लगा। प्रकृति के वैज्ञानिक मोतीहारी वाले मिसिर जी ने तब भी कहा था – “कऽतना नामकरन कऽरब हो, अतना वैरिएण्ट्स होइहन स के नमव ऐ कऽम परि जाई, कोरोनवा के बंस ना रुकी”।
इन तीन वर्षों में कोरोना ने
चिकित्साजगत और वैज्ञानिकों को धता बताने में कोई कमी नहीं छोड़ी। चिकित्सा विज्ञान
की वैज्ञानिकता, सत्यता
और निष्ठा संदिग्ध होती चली गयी। न जाने कितनी बार औषधियों और जीवनशैली में
परिवर्तन किए गये किंतु हर बार कोरोना वैज्ञानिकों को चकमा देने में सफल होता रहा।
कभी लॉकडाउन हुआ तो कभी इसे अनावश्यक समझा गया, कभी
फ़ेसमास्क लगने की बात कही गयी तो कभी उसके अनुपयोगी होने की बात कही गयी। कभी
वैक्सीनेशन पर बल दिया गया तो कभी हर्ड इम्यूनिटी को अधिक महत्वपूर्ण माना गया। चिकित्सा
जगत आज भी इन्हीं भ्रमों को बनाये रखते हुये कोरोना का सामना करने का पाखण्ड कर
रहा है।
जिस समय में भारत सहित दुनिया भर में
कोरोना ने हाहाकार मचा रखा था उसी समय हमारे पड़ोसी देश ने अपनी निर्धनता और तकनीकी
असहायता के कारण सब कुछ अल्लाह पर छोड़ दिया। मौलानाओं नें भाषण दिए कि अल्लाह ने
कोरोना को काफिरों के लिए भेजा है, मुसलमानों
को इससे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं। पाकिस्तान में लॉकडाउन का इतना कड़ा प्रतिबंध
नहीं, औषधियाँ
नहीं, फ़ेसमास्क
नहीं, प्रोटेक्टिव
किट नहीं, वैक्सीन
नहीं, रोटी
नहीं, कुछ
नहीं...। कुछ मौतें हुयीं वहाँ भी, तो कहा
गया कि उनका अल्लाह में ईमान नहीं था। अन्य देशों की तुलना में पाकिस्तान ने
कोरोना का सामना न करते हुये भी विजय प्राप्त कर ली। मौलानाओं का विश्वास अल्लाह
पर और अधिक बढ़ गया। पाकिस्तान के मित्र चीन ने इसका श्रेय हर्ड इम्यूनिटी को दिया
और अपने आर्थिक वर्चस्व को बनाये रखने के लिए कई बार लॉकडाउन को समाप्त किया।
इस बीच आयुष काढ़े की अच्छी धूम रही।
राज्याश्रय के अभाव में भी आयुर्वेदिक एण्टीऑक्सीडेण्ट्स ने मौन रहते हुये ही अपनी
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुये कोरोना का सफलतापूर्वक सामना किया। ...और अब कुछ
आधुनिक शीर्ष वैज्ञानिक भी आयुर्वेदिक
एण्टीऑक्सीडेण्ट्स को कोरोना की रोकथाम के लिए अधिक महत्वपूर्ण स्वीकार ही नहीं करने
लगे, बल्कि
उपयोग हेतु उनकी खुलकर अनुशंसा भी करने लगे हैं।
विषाणु
के नये वैरिएण्ट्स
कुछ ही समय पूर्व कोरोना के बी.ए.२.१०.१
और बी.ए.२.७५. के सम्मिश्रण से बने एक्स.बी.बी
वैरिएण्ट को अधिक घातक माना जा रहा था। अब यह स्थान बी.एफ़.७ ने ले लिया है। हर नया
वैरिएण्ट पूर्वापेक्षा अधिक सशक्त होकर सामने आ रहा है। वैज्ञानिकों के लिए यह
चिंता का विषय होना चाहिये किंतु इस तथ्य की निरंतर उपेक्षा की जा रही है।
वैरिएण्ट्स को लेकर मैं पहले भी कुछ
लेख लिख चुका हूँ, पुनः
विनम्र निवेदन कर रहा हूँ कि शिक्षित लोग, विशेषकर
जेनेटिक्स, वायरोलॉजी और
मेडिकल के छात्र एवं विशेषज्ञ वैरिएण्ट्स के निर्माण के कारणों पर ध्यान देने की
कृपा करें। क्या यह सत्य नहीं है कि हमने इन तीन वर्षों में कोरोना के नये-नये
वैरिएण्ट्स को जन्म देने के लिए इस विषाणु को भरपूर सुविधायें उपलब्ध करवायी हैं!
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