गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

.............ताकि जान न पाए कोई


रात
गहरी ......
और गहरी होती जा रही है 
पर घड़ी के काँटे       
चूकते नहीं टोकने से 
कहते हैं ......... 
रात .....?
वह तो कब की गुज़र गयी 
अब तो शुरू हो चुका है ......
नया दिन .
रात बारह बजे के बाद से
बदल गयी है तारीख. 
रात में ही शुरू हो चुका है .......
नया दिन .
कमाल है ....
तारीख बदल गयी
बिना सूरज की इजाज़त के ही ?
तो क्या मैं समझूं ............
कि अँधेरे में ही 
शुरुआत हो जाती है
नए दिन की !  
मैं 
इस गणित को 
कभी समझ नहीं पाया 
कभी नहीं .....
क्या तारीखों के साथ  
बदल जाते हैं
दिन भी.......... 
आधी रात को ही ?
....ताकि जान न पाए कोई 
तारीखों ने क्या गुल खिला दिए हैं
रात के अँधेरे में, 
क्योंकि 
बेखबर रहती है दुनिया
उस समय 
बदलते हुए इतिहास से.  







22 टिप्‍पणियां:

  1. सौर मंडल के सदस्यों,,, शक्तिशाली राजा सूर्य से शनि आदि तक,,, के केंद्र (मूलरूप में एक ही निराकार के विभिन्न स्वरुप) में उपस्थित विभिन्न शक्तियों के कारण ही उनके विभिन्न स्वरुप से हम परिचित हो चुके हैं वर्तमान में खगोलशास्त्रियों की कृपा से भी जैसे हमारे पूर्वज भी इससे अधिक गहराई में जा और अधिक जाने होंगे,,,इनके आकार के कारण ही शक्ति प्रदायक सूर्य की मजबूरी है कि वो किसी भी क्षण किसी भी ग्रह के सतह को सम्पूर्ण रूप से प्रकाशित आदि करने में अकेले सक्षम नहीं है - केवल ५०% यानि आधे गोलार्ध में उजाला होता है और दूसरे गोलार्ध में अँधेरा रहता है,,,और उस समय चन्द्रमा, जो पृथ्वी से ही उत्पन्न हुआ, उसका राज होता है जो सूर्य से ही शक्ति पा पृथ्वी के उस गोलार्ध को प्रकाशित करता है...हमारी पृथ्वी और अन्य ग्रह भी अपनी धुरी पर घूमते हैं जिस कारण सूर्य पूर्व में उगता प्रतीत होता है और पश्चिम दिशा में अस्त,,,एक दिन यूं एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक माना गया...
    सब ग्रह अपनी अपनी कक्षा में भी सूर्य की परिक्रमा कर रहे पाए जाते हैं और यूं एक चक्र पूरा होने पर एक वर्ष माना जाता है...पृथ्वी को पाया गया इस चक्र को पूर करने में ३६५ से कुछ अधिक बार अपनी धुरी पर घूमते हुए और यूं पृथ्वी पर एक वर्ष ३६५ वर्ष का माना जाता है और चौथे वर्ष को ३६६ दिन का मान गणना की जाती है...

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  2. डोक्टर साहब! अद्भुत कल्पना और गहरे भाव!!

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  3. बहुत गहन अभिव्यक्ति ...शायद इसी लिए हमारा देश भी रात में आज़ाद हुआ था ...

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  4. एक अलग ही भाव-संसार में ले जाती सुन्दर कविता ....

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  5. सारांश में देखें तो पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते और साथ-२ सूर्य की परिक्रमा करते, (यद्यपि सूर्य (चार मुंह वाले ब्रह्मा जी?) एक ही स्थान पर स्थिर रहता है), वह हम पृथ्वी-वासियों को,,, २४ घंटे के दिन में,,, १२ घंटे पूर्व और १२ घंटे पश्चिम,,, और १२ माह के एक वर्ष में,,, ६ माह उत्तर और ६ माह दक्षिण गोलार्ध को प्रकाशित और शक्ति प्रदान करता प्रतीत होताहै, और एक न्याय-प्रिय राजा समान चरों दिशाओं पर नज़र रखते भी...
    यूं शक्ति वितरण के इस कमाल के, यानी मायाजाल के (?), मूल में हाथ वास्तव में हमारे ग्रह 'पृथ्वी-चन्द्र' का ही दीखता है (?),,, क्यूंकि हमारी पृथ्वी को प्राचीन खगोल शास्त्रियों ने ब्रह्माण्ड का केंद्र भी माना, यानि इसके केंद्र में श्रृष्टि-कर्ता नादविष्णु का निवास-स्थान, जिसे शब्दों में योगनिद्रा में शेषनाग, अनंतनाग, पर लेटे दर्शाया जाता आ रहा है,,,और चन्द्रमा को विष्णु का मोहिनी रूप भी दर्शाया जाता, जिसने देवताओं को अमृत प्रदान कर हमारे सौरमंडल को अनंत बना दिया और मानव शरीर को नौ ग्रहों के रसों से बना !!!

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  6. "बेखबर रहती है दुनिया ,उस समय ,बदलते हुए इतिहास से."
    बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति | धन्यवाद ..

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  7. कमाल है ....
    तारीख बदल गयी
    बिना सूरज की इजाज़त के ही ?
    ...................

    मैं इस कविता के विश्लेषण के लिए खुद को अल्पज्ञानी पाता हूँ..
    मगर इसे बार बार पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ता हूँ..

    बधाइयाँ..

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  8. तरीख यानि इतिहास की बात करें तो हम पाएंगे कि जैसे सूर्य से शक्ति पा अन्य ग्रह आदि भी सहायक हैं पृथ्वी पर सूर्य का राज चलाने में, वैसे ही भारत में (एवं अन्य कॉलोनियों में) अंग्रेजों ने सूर्यवंशी राजाओं समान राज किया विभिन्न स्थानीय देसी राजाओं और नवाबों के माध्यम से,,, और तब यह प्रसिद्द हो गया था कि ब्रिटिश राज्य में सूर्य अस्त ही नहीं होता! अंग्रेजों का जाना सूर्यास्त समान ही माना जा सकता है क्या? और क्या रिज़र्व के पेट्रोल पर चलती गाडी समान अब संसार की गाडी भी चल रही है? शिव जी की तीसरी आँख खुलने समान ओज़ोन तल में छिद्र बड़े होते देखे गए हैं एन्टार्क्टिका के आकाश में...

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  9. यद्यपि दोनों देश एक ही दिन स्वतंत्र हुए,,, पाकिस्तान (जिसके हरे झंडे में एक तारे, सूर्य (?) के अतिरिक्त चाँद है और जिसका राष्ट्रीय पक्षी चकोर है!) अपना स्वतंत्रता दिवस प्राचीन 'हिन्दू' मान्यता अनुसार १४ अगस्त को मनाता है, दिन को सूर्योदय से सूर्योदय तक एक दिन मान,,,जबकि भारत १४ अगस्त की मध्य रात्री को (जब चाँद का राज होता है), उसे अंग्रेजों (पश्चिम) द्वारा निर्धारित अंतर राष्ट्रीय समय १५ अगस्त का शून्य काल मान (ग्रीनविच को आधार मान, काशी के निकट स्थान ८२.५ डिग्री पर आधारित भारतीय समय, आई एस टी,,, जिसे प्राचीन भारत में शिव का निवास स्थान माना गया!), अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता आ रहा है सन १९४७ से...और जो निरंतर बिगड़ते हालात दोनों देशों में हैं उन्हें तो हर कोई जानता ही है - वो भी संकेत करते हैं जैसे अब कोई एक राजा नहीं है,,, दोनों देशों में... (भारत में श्री ए राजा जैसे कई राजा अवश्य हैं!)...

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  10. क्या तारीखों के साथ
    बदल जाते हैं
    दिन भी..........
    आधी रात को ही ?


    ....ताकि जान न पाए कोई
    तारीखों ने क्या गुल खिला दिए हैं
    रात के अँधेरे में,

    बहुत ही रोचक कविता कौशलेन्द्र जी..........बधाई स्वीकारें....

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  11. hmmmmmmm
    baba..............3 baar pr chukii hun is rchnaa ko
    reaaly feelin proud of u
    veryyyyyyyyy nice baba

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  12. .

    बहुत गहन अभिव्यक्ति । बहुत कुछ बदल जाता है , बिना इज़ाज़त के ही । रातों रात दिलों में दरारें , सरकारों का बदलना और गुलशन का उजड़ना , सभी कुछ तो हो जाता है , बिना इज़ाज़त के।

    लेकिन कभी कभी कई रातें बीत जाती हैं और सरकारें सोती रहती हैं गहरी नींद में , अपनी जनता के रंजो-गम से बेखबर।

    .

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  13. कौशलेन्द्र जी, मध्य रात्री को,,, यद्यपि प्राचीन, किन्तु वर्तमान मानव की तुलना में अधिक बुद्धिमान,,, 'हिन्दुओं' ने शून्य काल और स्थान से सम्बंधित प्राचीनतम जीव, सर्वगुण संपन्न निराकार परमात्मा (नादबिन्दू विष्णु) का प्रतिबिम्ब जाना, और उसका निवास स्थान 'मिथ्या जगत', यानि हमारी पृथ्वी, वसुधा, के केंद्र में दर्शाया,,, और हम धरा पर आधारित प्रतीत होते अस्थायी प्राणियों आदि को 'वसुधैव कुटुम्बकम', यानि पृथ्वी का ही परिवार, कह 'मिटटी के पुतले' ही जाना...
    संभवतः आधुनिक डॉक्टर होने के नाते सब चिकित्सकों को यह जानना और बताना होगा कि जिसे हम अर्धमृत अथवा सुप्तावस्था कहते हैं, उस में सिनेमा समान प्रतिबिम्ब कैसे उभरते हैं? मानव के ही नहीं किन्तु कई अन्य निम्न श्रेणियों के पशुओं के 'तीसरे नेत्र' में भी?...कुछ प्रकाश डालना चाहेंगे?

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  14. तो क्या मैं समझूं
    कि अँधेरे में ही
    शुरुआत हो जाती है
    नए दिन की....

    समझ गई गुरुदेव ....!!

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  15. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 12 - 04 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  16. हमे तो भारतीय रेल से शिकायत है , सूरज के नकलने से पहले ही तारीख बदलने के चक्कर में अपनी गाड़ी छूट जाती है .

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  17. तो क्या मैं समझूं ............
    कि अँधेरे में ही
    शुरुआत हो जाती है
    नए दिन की !

    क्या खूब गहरी बात को पकड़ लिया आपने और खूबसूरती से बयां भी कर दिए.

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  18. नवागंतुक गुणीजनों का हार्दिक स्वागत है.
    अन्धेरा जितना बाहर है उससे भी अधिक हमारे अन्दर है ....हम अभ्यस्त हैं इसमें जीने के ......इन्हीं विडंबनाओं के साथ पूरा देश अपथगामी-कुपथगामी हो चला जा रहा है. मेरा भाव आप सब तक पहुँच सका ....इस गुण ग्राहकता के लिए आप सबका आभार.

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  19. क्या बात है सर...
    कहाँ शुरू हुई और कहाँ आ गयी...
    अंतिम पंक्तियों में छिपा व्यंग्य अभिव्यक्ति को दमदार बना जाता है...
    बढ़िया अभिव्यक्ति...
    सादर...

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.