लोग कहते हैं ....
कि मुम्बई कभी सोती नहीं, जब देखो तब जागती ही रहती है ।
क्या सचमुच मुम्बई जागती रहती है दिन-रात ?
मगर ....
मुम्बई जागती रहती है तो उस दिन क्यों सो गयी थी
जब कसाब ने कसाई बन कर मुम्बई को तबाह करने की ज़ुर्रत की थी ?
मैंने मुम्बई से ये प्रश्न बारम्बार पूछा, मुम्बई हर बार ख़ामोश रही।
मैंने मुम्बई की भागती मेट्रो ट्रेन्स से पूछा, वे ख़ामोश रहीं।
तब मैंने बज़बज़ाती धारावी से पूछा, वहाँ भी वही ख़ामोशी !
भीड़ भरी सड़कों से लेकर
अरब सागर के तट पर अपना सर पटकती लहरों तक
हर कहीं ख़ामोशी थी।
अद्भुत थी यह ख़ामोशी।
आख़िर इस ख़ामोशी ने ही मुझे राज बताया,
कहा - जब शहर भागता है तब लोग ठहर जाते हैं।
जब लोग भागते हैं तो उनका विवेक ठहर जाता है।
जब विवेक ठहर जाता है
तब कभी नादिर शाह आता है, कभी चंगेज़ ख़ान तो कभी कसाब।
और............
और इन सबके बीच साध्वी प्रज्ञा सिंह चीखती रहती है।
मुम्बई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस यानी पुराना बॉम्बे वी.टी. रेलवे स्टेशन
गिरता भी है उछलता भी है
कहीं ख़ामोश
तो कहीं गरजता भी है।
बात समय-समय की है
कभी नदिया में बहता
तो कभी सागर में समाता भी है
कभी डुबोता है हमें
तो कभी ख़ुद भी डूब जाता है।
हम सागर मथते रहते हैं
सारे विष उसमें डाल-डाल
अमृत सब छीना करते हैं
इन काली-काली करतूतों पर
जब सागर शोर मचाता है
लहरों के पाँव थिरकते हैं
धरती धड़क-धड़क उठती
हम अहंकार में चूर-चूर
अपने में खोये रहते हैं
उपहास शक्ति का देख, विकल तब
शिवजी ताण्डव करते हैं।
हम सागर मथते रहते हैं।
लहरों ने अवगुण्ठन डाला
नयनों का खारा नीर छिपाया।
तुम आये
कुछ सपने लेकर
मुझको
धीरे से सहलाया।
जैसे ही उमड़ा सागर पीड़ा का
तुमने मेरा
हर राज उछाला।
कभी
गौर से सुनने की कोशिश कीजियेगा
ये ख़ामोशी
बहुत शोर करती है।
गौर से सुनने की कोशिश कीजियेगा
ये ख़ामोशी
बहुत शोर करती है।
आपका अंदाज़ ए बयां सच मे अलग ही है !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सभी को रक्षाबंधन के इस पावन अवसर पर बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाये | आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है, एक आध्यात्मिक बंधन :- रक्षाबंधन - ब्लॉग बुलेटिन, के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
अलग अंदाज की प्रस्तुति के लिए बधाई,,,,,
जवाब देंहटाएंरक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
डॉक्टर साहब! मैंने इस विषय पर एक लंबी कविता लिखी थी और मेरे बेटे ने भी अलग से एक कविता लिखी थी.. मुम्बई आज भी मेरे लिए ड्रीम सिटी है... मगर अब शायद मौक़ा ना मिले वहाँ काम करने का.. मगर जितना भी समय यहां बिताया, ज़िंदगी को पास पाया!!
जवाब देंहटाएंलेकिन आपके कैमरे की नज़र सचमुच जादू का असर पैदा करती है!! मुग्ध करती है, चमत्कृत करती है!!
तो दोनो कवितायें पढ़ने से हमें वंचित क्यों रखा गया है अभी तक? हम कउनो गुनाह किये हैं का?
हटाएंमैं बहुत ख़ुश हूँ यह जानकर कि कविता के ज़ींस इन्हेरिट हुये हैं आपकी अगली पीढ़ी में। यह परम्परा चलती रहे इसके लिये शुभकामनायें।
भारत के कई शहरों में जाने का अवसर मिला है पर मुम्बई कभी मुझे अपरिचित सा नहीं लगा।
ये है मुम्बई मेरी जां ..... बात निराली है मुम्बई की।
बहुत सुन्दर............
जवाब देंहटाएंसागर
रेत पर छोड़ गया है अपने पद चिन्ह
ऐ! नदी!
तुम भटक मत जाना
लाजवाब.........आप कविताएं ही लिखा करें..
अनु
अनु जी! बहुत-बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"...कवितायें ही लिखा करें .."
संकेत समझ रहा हूँ :)
हरकीरत हीर जी कहती हैं कि मुझे कहानी लिखनी चाहिये ....आप कहती हैं कि मुझे कवितायें ही लिखनी चाहिये।
चलिये न! एक आयोग गठित कर लिया जाय, वही तय करेगा कि मुझे क्या लिखना चाहिये। मैं हीर जी को भी ख़बर किये देता हूँ .....आयोग का अध्यक्ष कौन बनेगा यह आप दोनों को ही तय करना पड़ेगा। :)
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंकहीं संदेश है तो बस पानी का
कहीं लहरें कुछ बातें करती हैं
शहर के शोर की कौन सोचे
अपने अपने शोरों से ही
बहरे हो चुके हों जब लोग
अब उनकी बातें ही बस
कुछ बातें करती हैं !
सुशील जी! बस्तर की अभिव्यक्ति में आपके प्रथम आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है।
हटाएंसागर की लहरे नहीं, होती हैं गम्भीर।
जवाब देंहटाएंमहाराष्ट्र में हुए हैं, कितने ही रणधीर।।
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खूबसूरत चित्रों के साथ कविता की जुगलबंदी... वाह! अद्भुत...
जवाब देंहटाएंसादर।
स्वागत है आपका मिश्र जी !
हटाएंबहुत ही सही कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंजब विवेक ठहर जाता है
तब कभी नादिर शाह आता है, कभी चंगेज़ ख़ान तो कभी कसाब।
सारी तस्वीरें काफी सुंदर और साथ में जुड़ी सार्थक पंक्तियाँ इनमें चार चाँद लगा रही हैं !
साभार !