प्राचीन गोवापुरी में विश्वधरोहर के खण्डहर
गोवा दीर्घकाल तक विदेशियों की दासता में रहने वाला भारतीय भूभाग रहा है
विदेशियों द्वारा विजित भूभाग पर अपने आराध्य के पूजास्थलों के रूप में अनेक चर्चों का निर्माण किया जाना स्वाभाविक है। गोवा में चर्चों की भरमार है। इन्हीं में से एक है संत अगस्तिन का चर्च।
एक ऊँचे टीले पर बने इस विशाल चर्च का निर्माण प्रारम्भ हुआ था सन् 1572 ईसवी में और पूरा हुआ सन् 1602 ईसवी में। किंतु शीघ्र ही इस भव्य चर्च को पुर्तगालियों द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया जिसके कारण देखरेख के अभाव में यह भव्य चर्च खण्डहर में बदल गया। आज यूनेस्को द्वारा इस चर्च को विश्व धरोहर के रूप में चिन्हित किया गया है।
गोवापुरी में आने वाले विदेशी सैलानियों के लिये इस चर्च के खण्डहर
आज भी दर्शनीय और आकर्षण के केन्द्र बने हुये हैं।
नारियल के बागों से घिरे
एक विशाल क्षेत्र में विस्तृत इस आराधना स्थल की भव्यता का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
भौतिकता हो या आध्यात्म
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विशालता और भव्यता हमें आकर्षित करती रही है।
समृद्धि के आकर्षण ने कभी हमारा पीछा नहीं छोड़ा । वैराग्य की बात करते समय भी इस समृद्धि और भव्यता का त्याग नहीं कर पाते हम।
जबकि हम जानते हैं कि भव्यता और समृद्धि कभी स्थायी नहीं होती। जो स्थायी है उसके लिये किसी भव्य संरचना की आवश्यकता नहीं होती। किंतु रागी मन को विरागी बना पाना इतना सरल है क्या?
....और भग्न हो गया समृद्धि का अहंकार
बच गये हैं कुछ अवशेष .....
और उन्हीं अवशेषों के सहारे जीवित हैं हमारी स्मृतियाँ...
और इन्हीं स्मृतियों में दफ़न हैं हमारे अहंकार।
भव्यता की भग्न कथा कहते ये खण्डहर
पुरुषार्थ की कथा को जीवित रखने का प्रयास करते शिलालेख
फ़र्श पर लगे पत्थरों में उकेरे अक्षर और आकृतियाँ .....
संत अगस्तिन के चर्च का एक विशाल कक्ष ....
यह वीरानी भी बहुत कुछ कहती है ....
.........क्या कहती है ये वीरानी ?
यही तो विचारण का विषय है। खण्डहर वो कहते हैं जो आध्यात्मिक उपदेश भी नहीं कह सके आज तक .....
मनुष्य के अहं के प्रतीक
इन भव्य निर्माणों के भग्नावशेष की अपनी एक विशेष लिपि है।
हम जब एकांत में होते हैं तो यह लिपि ध्वनि में बदल जाती है।
आपके पास कभी एकांत का अवसर हो तो किसी भी भग्नावशेष को कथा कहते सुनियेगा।
....और मेरा विश्वास है कि इस कथा को सुनकर आप सचमुच में आध्यात्मिक हो उठेंगे ...
इन भग्नावशेषों के पास है वैराग्य का मूल मंत्र .....
कहानियाँ .....
सिर्फ़ कहानियाँ भर बच गयी हैं अब .....
......कभी रहे अस्तित्व की कहानियाँ .......
वह अस्तित्व
जो मुखरित होकर भी तत्व को नहीं कह सका कभी
अब मौन होकर तत्व में मुखरित हो पाया है।
मौन तत्व हो गया है और ...
तत्व
मौन।
इस मौन के सन्देश को पढ़ सकने में जो भी समर्थ हो सकेगा
वह तत्व को पा लेगा।
तब
आवश्यकता नहीं रहेगी
किसी आराधना स्थल के निर्माण की.....
या उस पर प्रतिबन्ध लगाने की ....
या फिर उसे नष्ट कर देने की।
संत अगस्तिन के इस भग्न चर्च के सान्निद्य में आते ही मेरे कानों में और भी ध्वनियाँ आने लगी हैं ...
ये ध्वनियाँ बारम्बार धराशायी किये जाते रहे सोमनाथ के मन्दिर से आ रही हैं ...
ये ध्वनियाँ राम मन्दिर को ढहाकर उस पर बनी
और फिर ढहा दी गई बाबरी मस्ज़िद से आ रही हैं ...
ये ध्वनियाँ तेजोमहालय को ढहाकर उस पर बने ताज़महल से भी आ रही हैं .....
ईश्वर
मनुष्य के इन तमाशों से दुःखी होता रहा है
जिसकी परवाह
किसने की है अभी तक -
यह किसी की चिंता का विषय नहीं बन सका है आज तक।
अति सुन्दर! आभार!
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