सुना था
ख़्वाब देखने के नहीं लगते पैसे
इसलिए देख डाले
ढेर सारे ख़्वाब /
फिर ......
टूटते चले गए
एक-एक कर सारे /
मैं क्या जानूं
ये सौदा
इतना महँगा होगा !
टूटे ख़्वाब .......
और ताजिन्दगी का दर्द ........
है न महँगा ?
बेहद महँगा न !
क्या करूँ,
मैं तो ठगा रह गया हूँ
पर किसी को इलज़ाम भी तो नहीं दे सकता /
खुद ही घुटते रहने को मजबूर हूँ
.....यह एक और दर्द
शनिवार, 30 अक्टूबर 2010
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
भारतीय सेना पर अब भी चलती है हुकूमत लन्दन की महारानी की .......
आज के दैनिक भास्कर के अनुसार भिलाई निवासी एक ७७ वर्षीय महिला यस. राजेश्वरी को भारतीय सेना ने पहले तो पेंशन देने से ही मना कर दिया पर बाद में इंग्लैण्ड की महारानी की अनुसंशा पर पेंशन देना शुरू किया / उनके पति का निधन १९९७ में हुआ था / इस समाचार नें यह सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या आज भी हमारी सेना पर लन्दन की महारानी की ही हुकूमत चल रही है ? स्वतन्त्र भारत की व्यवस्था ऐसी क्यों है कि उसके एक नागरिक को अपनी सरकार पर नहीं बल्कि एक विदेशी सरकार पर भरोसा करना पडा ? आखिर भारतीय सेना मुख्यालय को किसी विदेशी की सिफारिश की ज़रुरत क्यों पडी और क्यों उस सिफारिश को ही इतना भरोसेमंद पाया गया ?
बुधवार, 20 अक्टूबर 2010
प्रेम
तुम्हें शिकायत है
मेरे आँसुओं से
किन्तु
इन आँसुओं के खारेपन का राज
उस सागर से पूछो
जिसने समेट रखा है अपने सीने में
एक समूची धरती का दर्द /
दर्द का यह अहसास ..............
जिस दिन छू लेगा तुम्हें
मेरा दावा है
तुम्हारे भी सीने में जन्म लेगी
एक तड़प
लोग
उसे ही प्रेम कहते हैं /
नक्सलियों से एक अपील
कोई घर बसाकर कभी तुम भी देखो
बेसहारा किसी को न फिर कर सकोगे /
जां किसी की बचाकर कभी तुम भी देखो
ये खूं - ख़राबा न फिर कर सकोगे /
ये खूं - ख़राबा , ये दहशत के साए
कभी माँ से पूछो , कब उन्हें रास आये /
ग़ुल कोई खिलाकर कभी तुम भी देखो
बर्बाद कुछ भी न फिर कर सकोगे /
आओ मिल- बैठ कर नेक मंथन करें
चूक गए ग़र तो कुछ भी न फिर पा सकोगे /
बेसहारा किसी को न फिर कर सकोगे /
जां किसी की बचाकर कभी तुम भी देखो
ये खूं - ख़राबा न फिर कर सकोगे /
ये खूं - ख़राबा , ये दहशत के साए
कभी माँ से पूछो , कब उन्हें रास आये /
ग़ुल कोई खिलाकर कभी तुम भी देखो
बर्बाद कुछ भी न फिर कर सकोगे /
आओ मिल- बैठ कर नेक मंथन करें
चूक गए ग़र तो कुछ भी न फिर पा सकोगे /
गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010
किताबों में खोया बचपन
रात के दस बज चुके हैं,
बुजुर्गों के हिसाब से
यह बच्चों के सोने का वक़्त है /
वह पढ़ने में मशगूल है
और माँ है
कि दस्तरखान पर बेटी का कबसे इंतज़ार कर रही है /
बुला-बुलाकर
जब थक कर चुप हो गयी माँ
तो अचानक वह चुपके से आई
और पीछे से गले में बाहें डालकर झूल गयी.......
'उठो माँ खाना खायेंगे '
.................................
दो रोटी खाकर ही उठ बैठी वह.......
'बस माँ अब और नहीं
..........नींद आयेगी
तो फिर पढ़ेगा कौन,
अभी तो थीसिस भी सबमिट नहीं हुयी है '
माँ के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच आयीं------
इतनी फिक्रमंद हो गयी है मेरी बच्ची !
और किताबों ने तो जैसे बचपन ही छीन लिया है इसका /
बच्ची की उम्र
कब फ्रॉक से सलवार-कुर्ते में बदल गयी
पता ही नहीं चला ./
पुरानी यादों में डूब गयी माँ
फिर आँखों की कोर पर छलक आयी बूंदों को पोंछ
मन ही मन
न जाने कितनी दुआएं दे डालीं बेटी को
...................
रात के दो बज रहे हैं
माँ ने फिर प्यारी सी झिड़की दी
अब सो भी जाओ
सुबह पढ़ लेना /
'बस .....थोड़ी देर और माँ '
बेटी नें आवाज़ दी
तभी बूढ़े चाँद नें खिड़की से झाँक कर कहा
'तू खुद को मेरी सहेली कहती है ना!
तो चल,
अब माँ का कहना मान ले'
बेटी ने मुस्कराकर बंद कर दी किताब
और लेट कर पलकों से ढँक लीं अपनी आखें
जैसे सो गयी हो /
...............
अब कमरे में सिर्फ वह थी
और था बूढा चाँद /
बूढ़े की आँखों में नींद कहाँ !
थोड़ी देर और ठहरा चांद
फिर इत्मीनान करने के लिए
उसके बालों को हौले से छुआ
गाल को थपथपाया
और नींद की चादर ओढाकर
आगे बढ़ गया........
अगली
किसी और खिड़की से झाँकने,
शायद और भी कोई जाग रहा हो अभी /
कितनी फिक्र रहती है बच्चों की
माँ को
और इस बूढ़े चन्दा मामा को /
बच्चे
कितने बे -फिक्र हैं
इनकी चिंताओं से !
बुजुर्गों के हिसाब से
यह बच्चों के सोने का वक़्त है /
वह पढ़ने में मशगूल है
और माँ है
कि दस्तरखान पर बेटी का कबसे इंतज़ार कर रही है /
बुला-बुलाकर
जब थक कर चुप हो गयी माँ
तो अचानक वह चुपके से आई
और पीछे से गले में बाहें डालकर झूल गयी.......
'उठो माँ खाना खायेंगे '
.................................
दो रोटी खाकर ही उठ बैठी वह.......
'बस माँ अब और नहीं
..........नींद आयेगी
तो फिर पढ़ेगा कौन,
अभी तो थीसिस भी सबमिट नहीं हुयी है '
माँ के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच आयीं------
इतनी फिक्रमंद हो गयी है मेरी बच्ची !
और किताबों ने तो जैसे बचपन ही छीन लिया है इसका /
बच्ची की उम्र
कब फ्रॉक से सलवार-कुर्ते में बदल गयी
पता ही नहीं चला ./
पुरानी यादों में डूब गयी माँ
फिर आँखों की कोर पर छलक आयी बूंदों को पोंछ
मन ही मन
न जाने कितनी दुआएं दे डालीं बेटी को
...................
रात के दो बज रहे हैं
माँ ने फिर प्यारी सी झिड़की दी
अब सो भी जाओ
सुबह पढ़ लेना /
'बस .....थोड़ी देर और माँ '
बेटी नें आवाज़ दी
तभी बूढ़े चाँद नें खिड़की से झाँक कर कहा
'तू खुद को मेरी सहेली कहती है ना!
तो चल,
अब माँ का कहना मान ले'
बेटी ने मुस्कराकर बंद कर दी किताब
और लेट कर पलकों से ढँक लीं अपनी आखें
जैसे सो गयी हो /
...............
अब कमरे में सिर्फ वह थी
और था बूढा चाँद /
बूढ़े की आँखों में नींद कहाँ !
थोड़ी देर और ठहरा चांद
फिर इत्मीनान करने के लिए
उसके बालों को हौले से छुआ
गाल को थपथपाया
और नींद की चादर ओढाकर
आगे बढ़ गया........
अगली
किसी और खिड़की से झाँकने,
शायद और भी कोई जाग रहा हो अभी /
कितनी फिक्र रहती है बच्चों की
माँ को
और इस बूढ़े चन्दा मामा को /
बच्चे
कितने बे -फिक्र हैं
इनकी चिंताओं से !
शनिवार, 9 अक्टूबर 2010
बस्तर की है माटी न्यारी
कण-कण में बिखरा है जिसके
भोला-भाला प्यार
बस्तर की है माटी न्यारी
अद्भुत है इसका संसार.
इमली की पाती पर लिख कर
दिया है उसने
केवल प्यार
भर कर भी ना पोथी-पोथी
हो पाए जिसका विस्तार .
वन महुआ, आँगन महुआ
तन महुआ, मन महुआ -महुआ
धरती महुआ, अम्बर महुआ
महुआई है चाल.
टंगिया, छाता और लंगोटी
टेढ़ी-मेढ़ी पथरीली पगडंडी
मस्त-व्यस्त हो बढ़ता जाए
नंगा-भूखा निर्मल प्यार.
तुम सा मेरा रूप नहीं है
तन उजला
मन कृष्ण नहीं है
छलना मत मेरे प्यार को प्यारे
दोने भर सल्फी की आड़.
पत्थर भी कोमल पाती से
यहाँ है पाता प्यार-दुलार
पत्थर से टकराकर पानी
हंसता
कहता
कर लो प्यार.
चहंक-चहंक कर कहती मैना
बांटो सबको केवल प्यार.
भूल न जाना
मडई आना
फिर तुम अगली बार.
भोला-भाला प्यार
बस्तर की है माटी न्यारी
अद्भुत है इसका संसार.
इमली की पाती पर लिख कर
दिया है उसने
केवल प्यार
भर कर भी ना पोथी-पोथी
हो पाए जिसका विस्तार .
वन महुआ, आँगन महुआ
तन महुआ, मन महुआ -महुआ
धरती महुआ, अम्बर महुआ
महुआई है चाल.
टंगिया, छाता और लंगोटी
टेढ़ी-मेढ़ी पथरीली पगडंडी
मस्त-व्यस्त हो बढ़ता जाए
नंगा-भूखा निर्मल प्यार.
तुम सा मेरा रूप नहीं है
तन उजला
मन कृष्ण नहीं है
छलना मत मेरे प्यार को प्यारे
दोने भर सल्फी की आड़.
पत्थर भी कोमल पाती से
यहाँ है पाता प्यार-दुलार
पत्थर से टकराकर पानी
हंसता
कहता
कर लो प्यार.
चहंक-चहंक कर कहती मैना
बांटो सबको केवल प्यार.
भूल न जाना
मडई आना
फिर तुम अगली बार.
चित्रकूट, जगदलपुर |
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