उपलब्धि का अपहरण
धरती की पुत्री सीता को धरती ने ही अपने अंक में समा जाने की जगह देकर प्रकृति के एक शाश्वत नियम की ओर संकेत किया था.
बुद्धिमान मनुष्य अपनी बुद्धि के अहम् में चूर रहा ....उस संकेत को समझ नहीं सका. या यह भी हो सकता है कि सबकुछ समझ कर भी वह प्रकृति के स्वभाव को चुनौती देने की चेष्टा करता रहा.
परिणाम सामने है.....पूरा विश्व भयातुर है.
पूरी मानव सभ्यता विनाश, अनिश्चितता, संदेह और अशांति के कगार पर आ खड़ी हुयी है. कब क्या हो जाय कोई नहीं जानता. मनुष्यकृत या प्रकृतिकृत किसी भी प्रकार का विनाश या खंडविनाश कभी भी हो सकता है.
धरती की पुत्री सीता को धरती ने ही अपने अंक में समा जाने की जगह देकर प्रकृति के एक शाश्वत नियम की ओर संकेत किया था.
बुद्धिमान मनुष्य अपनी बुद्धि के अहम् में चूर रहा ....उस संकेत को समझ नहीं सका. या यह भी हो सकता है कि सबकुछ समझ कर भी वह प्रकृति के स्वभाव को चुनौती देने की चेष्टा करता रहा.
परिणाम सामने है.....पूरा विश्व भयातुर है.
पूरी मानव सभ्यता विनाश, अनिश्चितता, संदेह और अशांति के कगार पर आ खड़ी हुयी है. कब क्या हो जाय कोई नहीं जानता. मनुष्यकृत या प्रकृतिकृत किसी भी प्रकार का विनाश या खंडविनाश कभी भी हो सकता है.
कथानक है कि रावण ने ऋषियों से टैक्स के रूप में उनका रक्त लिया था जिसके जींस से जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा उसने एक सर्वगुण संपन्न टेस्टट्यूब बेबी का निर्माण किया था. अपने समय के प्रख्यात बालरोग विशेषज्ञ तथा स्त्री एवं प्रसूति विज्ञान विशेषज्ञ रावण की जैव वैज्ञानिक उपलब्धि थी सीता जो अंतत रावण की मृत्यु का कारण बनी.
आज भी हमारी बहुत सी वैज्ञानिक उपलब्धियां हमारे विनाश के लिए तैयार बैठी हैं. हमारी खोजें हमारे लिए ही विनाश का कारण बनती जा रही हैं .
गड़बड़ी कहाँ है / शोध में या उसकी उपलब्धि में ...या उसके प्रयोजन में ...?
उपलब्धि की सफलता अहंकार को जन्म दे सकती है ..और यह अहंकार उपलब्धि के प्रयोजन को दूषित कर देता है.
प्रयोजन की शुचिता और मर्यादा को बनाए रखने के लिए विवेक और कल्याण की भावना का होना अनिवार्य है अन्यथा प्रयोजन अकल्याणकारी हो जाता है.
सीता रावण की उपलब्धि थी. अपनी ही उपलब्धि का अपहरण किया रावण ने और अपने विनाश को आमंत्रित किया.
वैज्ञानिक उपलब्धियाँ यदि व्यक्तिगत लाभ के लिए व्यवहृत की जाने लगें तो उनके दुरुपयोग की ही संभावनाएं अधिक बलवती हो जाती हैं.
नाभिकीय ऊर्जा पर कुछ लोग अपना वर्चस्व चाहते हैं ....यह वर्चस्वता अधिकार के दुरुपयोग का स्पष्ट संकेत है.
सीता जहाँ से आयी वहीं चली गयी. पृथिवी से निकली थी ...पृथिवी में समा गयी. प्रकृति का दुरुपयोग होगा तो प्रकृति उसे अपने में समेटने का प्रयास करती है.
यह संकेत है प्रकृति का ....कि संभल जाओ .
नदियाँ ...पर्वत ....धरती ....जल ....जंगल ....जो भी हमारे होने में कारण हैं उनका असम्मान न करो.....असम्मान करोगे तो रावण की तरह विनाश को प्राप्त हो जाओगे.
क्या वैज्ञानिक , सत्ताएं और आम आदमी इस दिशा में इमानदारी से सोचने और फिर सोच को अपनाने का प्रयास करेंगे ?
गड़बड़ी कहाँ है / शोध में या उसकी उपलब्धि में ...या उसके प्रयोजन में ...?
उपलब्धि की सफलता अहंकार को जन्म दे सकती है ..और यह अहंकार उपलब्धि के प्रयोजन को दूषित कर देता है.
प्रयोजन की शुचिता और मर्यादा को बनाए रखने के लिए विवेक और कल्याण की भावना का होना अनिवार्य है अन्यथा प्रयोजन अकल्याणकारी हो जाता है.
सीता रावण की उपलब्धि थी. अपनी ही उपलब्धि का अपहरण किया रावण ने और अपने विनाश को आमंत्रित किया.
वैज्ञानिक उपलब्धियाँ यदि व्यक्तिगत लाभ के लिए व्यवहृत की जाने लगें तो उनके दुरुपयोग की ही संभावनाएं अधिक बलवती हो जाती हैं.
नाभिकीय ऊर्जा पर कुछ लोग अपना वर्चस्व चाहते हैं ....यह वर्चस्वता अधिकार के दुरुपयोग का स्पष्ट संकेत है.
सीता जहाँ से आयी वहीं चली गयी. पृथिवी से निकली थी ...पृथिवी में समा गयी. प्रकृति का दुरुपयोग होगा तो प्रकृति उसे अपने में समेटने का प्रयास करती है.
यह संकेत है प्रकृति का ....कि संभल जाओ .
नदियाँ ...पर्वत ....धरती ....जल ....जंगल ....जो भी हमारे होने में कारण हैं उनका असम्मान न करो.....असम्मान करोगे तो रावण की तरह विनाश को प्राप्त हो जाओगे.
क्या वैज्ञानिक , सत्ताएं और आम आदमी इस दिशा में इमानदारी से सोचने और फिर सोच को अपनाने का प्रयास करेंगे ?