हंसी बेशर्म है उनकी, करम बेशर्म है उनका
वतन को बेचते हैं वो, धरम बेशर्म है उनका.
खुदी में डूब कर खुद को, खुदा ही मान बैठे जो
बता औकात दे उनकी, नहीं अब वक्त है उनका.
ज़माने से उन्हें हमने, ज़रा भी है नहीं छेड़ा .
उन्होंने हर समय फिर भी, जी भर-भर के दिल तोड़ा .
हदों को ढूँढते हैं हम, हदें फिर भी नहीं मिलतीं .
हदें उनके इशारों पे, न जाने अब कहाँ रहतीं
सुना है तोड़कर सारी, हदें मरघट में हैं फेकी
अपनी रोटियाँ जी भर, शवों की आँच पर सेकी .
मंदिर की दिवारों पर, न होगा नाम अब तेरा
छलक कर आ गया बाहर, भरा है पाप घट तेरा.
डॉक्टर साहब!
जवाब देंहटाएंसच तो यही है और सच सबको पता है.. लेकिन साधो इस मुर्दों के गाँव में कौन जगाने आएगा!!
बहुत खूब....कौशलेन्द्र जी.......
जवाब देंहटाएंखुदी में डूब कर खुद को, खुदा ही मान बैठे जो
जवाब देंहटाएंबता औकात दे उनकी, नहीं अब वक्त है उनका.
बस्तर की यह अभिव्यक्ति तो कहीं से भी बासी नहीं है -चिर नवीन ऊर्जा से ओतप्रोत !
मिश्र जी ! बस्तर में सब ताज़ा ही ताज़ा है बासा कुछ नहीं मिलता..
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं@-हदों को ढूँढते हैं हम, हदें फिर भी नहीं मिलतीं .
हदें उनके इशारों पे, न जाने अब कहाँ रहतीं
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जिन्हें अपनी हदें नहीं मालूम ,
वो ज़माने की हदें तय करते हैं।
रुलाकर अपनी जनता को ,
नरक के कर्म वो करते हैं...
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दिव्या जी ! गहरी बात पकड़ कर सुर मिलाया है आपने ......इन नयी पंक्तियों के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंहदों को ढूँढते हैं हम, हदें फिर भी नहीं मिलतीं
जवाब देंहटाएंहदें उनके इशारों पे, न जाने अब कहाँ रहतीं ।
सुना है तोड़कर सारी, हदें मरघट में हैं फेकी
अपनी रोटियाँ जी भर, शवों की आँच पर सेकी ।
बेहतरीन शायरी का नमूना प्रस्तुत किया है आपने।
बेहतरीन शायरी ||
जवाब देंहटाएं@ "सुना है तोड़कर सारी, हदें मरघट में हैं फेकी
जवाब देंहटाएंअपनी रोटियाँ जी भर, शवों की आँच पर सेकी ."
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सत्यम शिवम् सुन्दरम वाले शिव के निवास स्थान में
किन्तु यह कलियुग है सतयुग नहीं
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