भारतीय इस मामले में अन्यों से विशेष हैं कि वे प्रायः सर्वज्ञ होते हैं...और न केवल सर्वज्ञ बल्कि न्यायाधीश भी. मुझे ऐसे कई लोगों से मिलने का सौभाग्य मिला है जिनकी अकादमिक उपलब्धियां भले ही कुछ न हों पर वे सर्वज्ञ होते हैं. आप जिस भी विषय पर उनसे चर्चा करें वे उसके निष्णात पंडित होते हैं. ऐसे लोगों को मैंने मेडिकल, इंजीनियरिंग, विधि, साहित्य, संगीत, दर्शन, आध्यात्म.....दुनिया में जितने भी ज्ञान के विषय हैं सभी में पारंगत देखा है. इतने पारंगत कि इन विषयों के उपाधिधारकों को भी धूल चटाने में नहीं हिचकते. ऐसे लोग न्यायाधीश भी होते हैं. किसी भी प्रकार के विवाद के अंतिम निपटारे के लिए भारत सरकार को इनकी सेवायें लेनी चाहिए. ...स्वैच्छिक निःशुल्क सेवायें. पर दुर्भाग्य उनका कि ऐसे विद्वानों को कोई पूछता ही नहीं. यह मात्र संयोग की बात है कि लोगों द्वारा उपेक्षित ऐसे बहुमुखी प्रतिभा संपन्न विद्वानों को अंततः अपनी प्रतिभा प्रदर्शन के लिए बिन बुलाये मेहमान की तरह दूसरों के प्रकरणों में हस्तक्षेप के लिए बाध्य होना पड़ता है.
विदेशों में ऐसे मार्गगामी ( "राह-चलते" थोड़ा सस्ता सा शब्द लगता है इसलिए इसे किंचित गरिमामय बनाने के लिए इस "मार्गगामी" शब्द का चयन यहाँ किया गया है ) विशिष्ट ज्ञान की सहज सुविधा की कल्पना तक नहीं की जा सकती. आप इस बात को यूँ भी कह सकते हैं कि विदेशों में लोग अत्यल्प ज्ञानी होते हैं जिन्हें अपनी किताबों के अतिरिक्त और कुछ भी पता नहीं होता. हमारे छत्तीसगढ़ में तो और भी विद्वान लोग रहते हैं. ऐसे ही एक विद्वान से ज्ञान का लाभ मैं भी प्राप्त कर चुका हूँ. आपकी खिदमत में पेश है ज्ञान प्राप्ति का यह नायाब और असली किस्सा .
हुआ यूँ कि एक बार अलस्सुबह, होटल से नीचे उतर मैं रायपुर में फूलचौक की तलाश में संयोग से फूलचौक तक पहुँच कर भी अज्ञानतावश यह जानने के लिए कि अभी फूलचौक कितनी दूर और है एक चाय वाले की दूकान पर पहुँच गया. पूछा - भैया अभी फूलचौक कितनी दूर और है ? उसने बड़ी गंभीर मुद्रा में पहले कुछ क्षण चिंतन किया, इधर -उधर देखा जैसे कि कुछ तलाश कर रहा हो फिर पूछा -"आपको फूलचौक जाना है ?" मैंने उत्तर दिया -हाँ भैया ! वह फिर कुछ क्षण चुप रहा ......फिर गंभीर मुद्रा में कहा- " आप एक काम करो, यहाँ से एक रिक्शा ले लो वह आपको फूलचौक पहुंचा देगा "
मैंने पूछा - पर होटल वाले ने तो यहीं कहीं बताया था .....५-७ मिनट की दूरी पर ही.
उसने कहा -आप नए आदमी लगते हैं ....कहाँ-कहाँ पूछते रहोगे ...रिक्शा कर लीजिये वही ठीक रहेगा.
इतनी सुबह रिक्शा खोजना भी मुश्किल.
जैसे-तैसे कर एक रिक्शे वाले को रोका, झट से चढ़कर बैठ गयाऔर बोला फूलचौक ले चलो.
अब रिक्शेवाले ने मेरी और देखा और अपनी सीट से उतर कर बोला - बाबू सुबह-सुबह क्यों मज़ाक करते हैं, फूलचौक तो यही है ...किसके यहाँ जाना है ?
हुआ यूँ कि एक बार अलस्सुबह, होटल से नीचे उतर मैं रायपुर में फूलचौक की तलाश में संयोग से फूलचौक तक पहुँच कर भी अज्ञानतावश यह जानने के लिए कि अभी फूलचौक कितनी दूर और है एक चाय वाले की दूकान पर पहुँच गया. पूछा - भैया अभी फूलचौक कितनी दूर और है ? उसने बड़ी गंभीर मुद्रा में पहले कुछ क्षण चिंतन किया, इधर -उधर देखा जैसे कि कुछ तलाश कर रहा हो फिर पूछा -"आपको फूलचौक जाना है ?" मैंने उत्तर दिया -हाँ भैया ! वह फिर कुछ क्षण चुप रहा ......फिर गंभीर मुद्रा में कहा- " आप एक काम करो, यहाँ से एक रिक्शा ले लो वह आपको फूलचौक पहुंचा देगा "
मैंने पूछा - पर होटल वाले ने तो यहीं कहीं बताया था .....५-७ मिनट की दूरी पर ही.
उसने कहा -आप नए आदमी लगते हैं ....कहाँ-कहाँ पूछते रहोगे ...रिक्शा कर लीजिये वही ठीक रहेगा.
इतनी सुबह रिक्शा खोजना भी मुश्किल.
जैसे-तैसे कर एक रिक्शे वाले को रोका, झट से चढ़कर बैठ गयाऔर बोला फूलचौक ले चलो.
अब रिक्शेवाले ने मेरी और देखा और अपनी सीट से उतर कर बोला - बाबू सुबह-सुबह क्यों मज़ाक करते हैं, फूलचौक तो यही है ...किसके यहाँ जाना है ?