मुझे ज़ाहिदा हिना की पाकिस्तान डायरी पढ़ना बहुत अच्छा लगता है। ....और तब एक ही बात दिमाग में गूँजती रहती है कि -
बड़ा गुरूर है
अपनी सरहदों पर
ज़रा इस ख़ुश्बू को रोक के दिखाओ।
वो दूर कितने भी हों हमसे
उनके गम में, हमें
ग़मगीन
और खुशी में
खुश होने से
रोक के दिखाओ।
दो मुल्कों की सियासी लड़ाई से जाहिदा जी स्थायी भाव से आहत रहती हैं। वे परिंदे की मानिन्द दोनों मुल्कों में जब जी चाहे तब उड़ना चाहती हैं। पाकिस्तान की बदहाली और मज़हबी खूं- ख़राबे का आज़ाद माहौल उनकी अपनी आज़ादी का आहिस्ता-आहिस्ता खून किये दे रहा है। उनके अन्दर की बेइंतेहा तड़प को बड़ी आसानी से महसूस किया जा सकता है। अभी अपनी हाल की डायरी में उन्होंने जयपुर लिटिरेचर फेस्टिवल की तर्ज़ पर कराची में भी लिटिरेचर फेस्टिवल का ज़िक्र किया है। पाकिस्तान की प्रकाशक अमीना सैय्यद के हवाले से उन्होंने एक मजेदार चुटकी कुछ इस अंदाज़ में ली -
" हमें हिन्दुस्तान से मुकाबले का बहुत शौक है । उन्होंने एटम बम फोड़ा तो हमने भी एटमी पटाखा चला दिया; हिन्दुस्तानियों को बता दिया कि भैया तुम ही गरीबों के मुंह का निवाला छीनकर आतिशबाजी का दिखावा नहीं कर सकते, हम तुम से ज़रा भी कम नहीं, तुम कुँए में छलांग लगा कर दिखाओ, हम तुम्हारे पीछे छलाँग लगा देंगे"
सन सैंतालीस के बाद से चिनाव और सिंध में इतना पानी बह जाने के बावजूद दोनों मुल्कों के कुछ इंसान किस्म के लोग एक-दूसरे के लिए एक तड़प के साथ अमन और मिलन के खैरख्वाह हैं। काश ! दोनों मुल्क फिर से एक हो पाते। ( पाकिस्तान का भविष्य भारत में विलय के साथ ही सुरक्षित हो सकेगा..इस बात को अब कुछ लोग महसूस करने लगे हैं )
याद आया, अभी एक दिन कहीं पढ़ा था कि बलूचियों ने इस्लाम के नाम पर हो रही दहशतगर्दी से परेशान हो कर एक जुदा मुल्क की माँग तो की ही उन्होंने अपनी कौम की सलामती के लिए हिन्दू हो जाने की बात भी की। खैर ! यह एक संजीदा मुद्दा है, हम तो इंसानियत के नाम पर दोनों मुल्कों की आम जनता की बेहतरी और अमन-चैन के लिए ईश्वर से प्रार्थना ही कर सकते हैं।
बड़ा गुरूर है
अपनी सरहदों पर
ज़रा इस ख़ुश्बू को रोक के दिखाओ।
वो दूर कितने भी हों हमसे
उनके गम में, हमें
ग़मगीन
और खुशी में
खुश होने से
रोक के दिखाओ।
दो मुल्कों की सियासी लड़ाई से जाहिदा जी स्थायी भाव से आहत रहती हैं। वे परिंदे की मानिन्द दोनों मुल्कों में जब जी चाहे तब उड़ना चाहती हैं। पाकिस्तान की बदहाली और मज़हबी खूं- ख़राबे का आज़ाद माहौल उनकी अपनी आज़ादी का आहिस्ता-आहिस्ता खून किये दे रहा है। उनके अन्दर की बेइंतेहा तड़प को बड़ी आसानी से महसूस किया जा सकता है। अभी अपनी हाल की डायरी में उन्होंने जयपुर लिटिरेचर फेस्टिवल की तर्ज़ पर कराची में भी लिटिरेचर फेस्टिवल का ज़िक्र किया है। पाकिस्तान की प्रकाशक अमीना सैय्यद के हवाले से उन्होंने एक मजेदार चुटकी कुछ इस अंदाज़ में ली -
" हमें हिन्दुस्तान से मुकाबले का बहुत शौक है । उन्होंने एटम बम फोड़ा तो हमने भी एटमी पटाखा चला दिया; हिन्दुस्तानियों को बता दिया कि भैया तुम ही गरीबों के मुंह का निवाला छीनकर आतिशबाजी का दिखावा नहीं कर सकते, हम तुम से ज़रा भी कम नहीं, तुम कुँए में छलांग लगा कर दिखाओ, हम तुम्हारे पीछे छलाँग लगा देंगे"
सन सैंतालीस के बाद से चिनाव और सिंध में इतना पानी बह जाने के बावजूद दोनों मुल्कों के कुछ इंसान किस्म के लोग एक-दूसरे के लिए एक तड़प के साथ अमन और मिलन के खैरख्वाह हैं। काश ! दोनों मुल्क फिर से एक हो पाते। ( पाकिस्तान का भविष्य भारत में विलय के साथ ही सुरक्षित हो सकेगा..इस बात को अब कुछ लोग महसूस करने लगे हैं )
याद आया, अभी एक दिन कहीं पढ़ा था कि बलूचियों ने इस्लाम के नाम पर हो रही दहशतगर्दी से परेशान हो कर एक जुदा मुल्क की माँग तो की ही उन्होंने अपनी कौम की सलामती के लिए हिन्दू हो जाने की बात भी की। खैर ! यह एक संजीदा मुद्दा है, हम तो इंसानियत के नाम पर दोनों मुल्कों की आम जनता की बेहतरी और अमन-चैन के लिए ईश्वर से प्रार्थना ही कर सकते हैं।
खुशबू कब कैद की जा सकी है भला
जवाब देंहटाएंडॉक्टर साहब! हमारे सम्बन्ध तो अभी भी बने हुए हैं.. एक रिश्ता जो कायम हुआ है वो मज़बूत हो रहा है.. नेट पर चैट कर लेते हैं, फ़ोन करते हैं कभी कभी..अफ़सोस होता है इन सरहदों के कारण..
जवाब देंहटाएं( पाकिस्तान का भविष्य भारत में विलय के साथ ही सुरक्षित हो सकेगा..इस बात को अब कुछ लोग महसूस करने लगे हैं ) ....काफी साल पहले से पकिस्तान के कुछ लोग इस तरह के विचार व्यक्त करते आए हैं...पर ये कुछ लोग कभी 'काफी' नहीं बने...
जवाब देंहटाएंभले ही भारत में इसका विलय ना हो...पर वहाँ के लोग अमन-चैन से रहें तरक्की करें...और दोनों मुल्कों के बीच प्रेम पनपे..बस यही कामना है
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंरंगों के त्यौहार होलिकोत्सव की अग्रिम शुभकामनाएँ!
मैं भी शौक से पढ़ता हूँ ज़ाहिदा हिना जी को। बीच में काफ़ी समय कुछ नहीं लिखा दिखा था इनका, फ़िर से कॉलम देखा अभी ही।
जवाब देंहटाएंजी, 6 दशक तक पाकिस्तान झेलने के बाद अब काफ़ी पाकिस्तानी भारत से अलग होने के निर्णय को एक बड़ी भूल मान रहे हैं। लेकिन लाखों लोग हलाक़ होने, अनेक युद्ध लड़ने, विकास को बाधित करने और दो पीढियाँ गुज़रने के बाद अक़्ल आना क्या वाक़ई समझदारी है? पाकिस्तान के निर्माण की ऐतिहासिक ग़लती का सुधरना तो नैसर्गिक ही है। शायद उनका एक बड़ा वर्ग आसानी से भारत में समाहित भी हो जाये परंतु क्या हम उनके अतिवादी वर्ग से पुनर्मिलन झेल पायेंगे?
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