गुरुवार, 9 मई 2013

एक हद बनाइये

   
    आये हो क़रीब मेरे दिल में बैठिये।
      दिल में बैठकर मगर न ज़ुल्म ढाइये॥ 

    दिल खोल जाम आज फिर से टकराइये।
      महफ़िल में आये हो तो एक हद बनाइये॥

    कितना किया सफ़र न हमको यूँ बताइये।
      महंगा है ढोल पीटना, कुछ शर्म खाइये॥ 

    सेवक से बन गये कुबेर, कैसे बताइये।
      अब इनसे, देशवासियो हिसाब लीजिये॥

    काटे जो सिर शहीदों के, छीन लाइये।
      न कोई वार्ता, न कोई खेल खेलिये॥ 

    कर कत्ल टुकड़े लाश के न अब चुराइये।     
        दुश्मनी की भी तो एक हद बनाइये॥
 

6 टिप्‍पणियां:

  1. कर कत्ल टुकड़े लाश के न अब चुराइये।
    दुश्मनी की भी तो एक हद बनाइये॥
    वाकई :(.

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  2. hmmmmmmm.....baba...dul ke bhaaaw umad umad ke aa rhe hain..is rchnaa me....jawlant...gusaa...rosh...aajkal ke haalaton ko dekhr...sochne pr mazboor krne wali rchnaa..aur sath me sach ki kdwaaht honthon pe chod jaane wali rchnaaa

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    1. बिटिया रानी जी! यहाँ चुनाव पूर्व के मौसम में जनता को बताया जा रहा है कि उन्होंने कितना विकास किया है उनके लिये ...करोडों रुपये खर्च करके सिर्फ़ बताया भर जा रहा है। इन रुपयों से कई लघु उद्योग खड़े किये जा सकते थे जो वास्तव में विकास को ख़ुद बयान करते। विकास ख़ुद को दिखाई पड़ना चाहिये ....कोई दूसरा दिखाये ढोल पीटकर ...तो यह कैसा विकास?

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  3. बेशर्म हैं जो उनकी तो कोई नहीं है हद,
    वे चुप रहेंगे, हम भले कह दें - बताइये!
    सब लूट और खसोट के बाज़ार में नंगे,
    अब आँख बंद कीजिये या नग्न होइए!
    परिवार खानदान है बस एक नज़र में,
    दिखता है कहीं देश, तो फिर ढूंढ लाइए!

    डॉक्टर साहब!! ये तुकबन्दियाँ क्षणिक आणंद देती हों, पर कचोटती भी बहुत हैं.. एक लंबी सुरंग है अंधेरी, पता नहीं उधर भी रोशनी है या नहीं!!

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    1. सलिल भइया जी!
      वक़्त मुश्किल है ज़रूर,बेशर्मों को मगर मिलके उल्टा लटकाइये।
      रोशनी तो होगी यकीं है, बुझते दिलों में एक दीपक जलाइये॥

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  4. वाह...
    आज झरने से ग़ज़ल बही ???

    बहुत बढ़िया..सशक्त!!!

    सादर
    अनु

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.